स्वस्थ आलोचना को दंडित करने का अर्थ है, विरोध का मुंह बंद कर देना
इलाहाबाद // सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशान्त भूषण को अवमानना का दोषी घोषित किये जाने के खिलाफ इलाहाबाद का नागरिक समाज द्वारा बालसन चैराहे पर एक जनविरोध आयोजित हुआ। प्रदर्शन मे वक्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि श्री भूषण के दोनो ट्वीट आम वादकर्ताओं द्वारा न्याय की उम्मीद में सर्वोच्च न्यायालय में मामले दर्ज करने के दौरान आ रही कठिनाईयों को रेखांकित करती हैं। पहली ट्वीट सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे लाॅकडाउन प्रणाली की आलोचना करते हुए कहती है कि यह “नागरिकों की न्याय की खोज के मौलिक अधिकार” को बाधित करती है। दूसरी ट्वीट भारत में लोकतंत्र के विनाश का जिक्र करते हुए कहती है कि जब इतिहासकार इसका मूल्यांकन करेंगे तो तब वे “विशेष तौर पर इस विनाश में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका और इससे भी ज्यादा 4 मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका को चिन्हित करेंगे”। ये सारा कुछ हमारी न्याय व्यवस्था के कामकाज का एक आलोचनात्मक मूल्यांकन है। यह चिन्हित की गयी कमियों में सुधार प्राप्त करने का प्रयास है। सच्चाई की खोज के लिए हमारा संवैधानिक ढांचा और सभ्य रवैया आलोचना और प्रतिआलोचना को स्वीकार करता...