सोशल मीडिया अब शोषण मीडिया बन चुका है
एक जमाना था जब चिठ्ठी-पत्री और टेलीग्राम के माध्यम से अपनी बातो को एक दुसरे के पास पहुँचाया करते थे,अच्छा खासा समय भी लगा करता था,और संदेश प्राप्ति पर उन्हे जो खुशी मिलती थी वो अकल्पनीय होती थी,लिखित शब्दो की अपनी गरिमा होती थी और उनका महत्व ऐसा हुआ करता था जैसे मानिए उन्हे अलादीन का चिराग मिल गया हो। । इसी बीच इन्सान वक्त के अनुसार बदलते परिवेश के अन्तर्गत दूरभाष,टेलीफोन,पेजर से गुजरते हुए मोबाईल तक पहुँच कर दूरियो को तो मानो अपने गिरफ्त मे ही कर लिया,और अपनी अभिब्यक्तीयो को तो पंख ही लगा दिया हो और उसे नियमितता की दायरे मे बांध दिया हो,और अपना कद बढ़ाते हुये स्मार्ट फ़ोन वाले युग मे कब पहुँचा दिया,पता ही नही चला। अद्भूत व अद्वितीय वैचारिक क्रांती के तहत आज फोर जी मोबाईल हम सबो के बीच ऐसी पैठ बना चुकी है,जैसे मानिए इसके बिना हमारी जिन्दगी ही अधुरी हो,और सोशल मिडिया के दौर मे सिमित्तता का दायरा तो खत्म ही हो गया,कोई भी अपनी बात कही ...