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जून 14, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लोक संगीतकारों द्वारा राजस्थानी लोक संगीत और नृत्य प्रदर्शन का सीधा प्रसारण

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जयपुर : राजस्थान के लोक संगीतकारों की पीड़ा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, विख्यात लोक संगीतकारों द्वारा राजस्थानी लोक संगीत और नृत्य प्रदर्शन का सीधा प्रसारण, 14 जून शाम 5 बजे लोक संवाद संस्थान के सभी ऑन लाइन माध्यमों जैसे facebook, Instagram, linked आदि माध्यमों से किया जाएगा। https://www.facebook.com/ loksamvadsansthan2000 https://www.instagram.com/ loksamvadsanthan/ https://www.linkedin.com/ company/lok-samvad-santhan/ राजस्थान के लोक संगीतकार और लोक नर्तक एक मंच पर एक साथ आ रहे हैं जिनमें कुसुम कछवाहा, सकूर खान लंगा, इरफान खान लंगा, सफी खान लंगा और हयात खान लंगा जैसे कलाकार शामिल हैं। ये कलाकार है जो की राजस्थानी लोक नृत्य और संगीत की सदियों पुरानी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। इस कार्यक्रम का प्रदर्शन म रु  मणि ’के एक भाग के रूप में ऑनलाइन होगा, जो की एक सामाजिक मीडिया अभियान है, जिसका उदेश्य डिजिटल चैनल के माध्यम से ब्रांड जागरूकता पैदा करना , सामुदायिक जुटाव और क्राउड-फंडिंग के माध्यम से इन कलाकारों को आर्थिक रूप से समर्थन देना है। इस आयोजन पर टिप्पणी करते हुए, जयपुर स्थित ए

5 दिव्यांगों की एक टीम ने 40000 से अधिक फेस मास्क और 525 पीपीई किट बनाई

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जयपुर : महात्मा गांधी ने चरखे के जरिए भारतीय स्वतंत्रता की कहानी लिखी । यह सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है जब भारत "आत्मानिर्भर" बनने की दिशा में काम कर रहा है। राष्ट्रीय सिलाई मशीन दिवस पर वैश्विक कोविड-19 महामारी के रूप में, बैकलाइन कार्यकर्ताओं के रूप में कई पुरुषों और महिलाओं ने बच्चों, गरीबों और जरूरतमंदों के लिए पीपीई किट, फेस मॉस्क की सिलाई शुरू की है।   ऐसे कठिन समय के दौरान, नारायण सेवा संस्थान के 5 दिव्यांगों की एक टीम ने 40000 से अधिक फेस मास्क और 525 पीपीई किट जरूरतमंदों, रेलवे कर्मचारियों, पुलिस, वंचितों और पिछड़ों की सेवा कर रहे है। मध्यप्रदेश के सागर जिले से 28 साल के एक दिव्यांग व्यक्ति, देवेंद्र लोधी भी उदयपुर के नारायण सिलाई केंद्र में स्किल ट्रेनिंग के बाद, पीपीई किट, फेस मॉस्क, फेस शील्ड अभियान में योगदान दे रहे हैं। देवेंद्र कहते हैं कि नब्बे के दशक में, नवविवाहित महिलाएं अपने घरों में सिलाई मशीन  के जरिए "आत्मानिर्भर"  घर की आजीविका चलाने में सहयोग करती थी । धीरे-धीरे समय बदला और मशीनें महिलाओं के हाथों से पुरुषों के हाथों में चली गईं। और आज दोनों

विकास का आधार स्तंभ प्रवासी श्रमिकों का पलायन

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डॉ रचना सिंह "रश्मि"   कोरोना का कहर पूरे विश्व में छाया है कोरोना  को फैलाव को रोकने के लिए सरकार सम्पूर्ण भारत मे लॉकडाउन कर रखा है जिससें पूरा देश थम गया है सभी गतिविधियां बंद है हवाई ,रेलवें,सड़क यातायात बंद है सभी शहरों व गांवों की सड़कें और गलियां सुनी पड़ी हैं। जो जहाँ है वो वही ठहर.गया सभी देशवासी अपने घरों में कैद जीवन को जी रहे है सरकार ने मुलभूत आवश्यकओं के लिए राशन,दवाई आदि की दुकानों को सोसल डिसटेंस के साथ खोलने और होम डिलीवरी की सुविधा दी है. लेकिन एक वर्ग  ऐसा भी है जो शहरों में दिहाड़ी कर शाम को अपने तथा अपने परिवार की रोटी का जुगाड़ करता था वह कहां? जाए। इन प्रवासी मजदूरों की जेब में न तो पैसे हैं और न ही खाने के लिए घर में राशन घर में बैठकर कोरोना वायरस से जंग जीतने के लिए कोई विकल्प नहीं है।   लॉकडाउन के कारण सारा कामकाज ठप है। व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। दिहाड़ीदार मजदूर जो छोटे-मोटे उद्योगों, दुकानों व ढाबों पर कार्य करते थे उनके पास भी कुछ करने को नहीं है। उनके पास काम नहीं तो पैसा नही खाने के लाले उपर कमरे के किराए के लिए प्रेशर भूखे और बदहाली में कोरोना, स

आज़मगढ़-जौनपुर की घटनाओं का किया जा रहा है साम्प्रदायिकरण

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लखनऊ । रिहाई मंच ने आज़मगढ़ सरदहां और जौनपुर के ग्राम भरेठी में वंचित समाज के बीच होने वाली मारपीट और आगज़नी की कड़ी निंदा की और प्रशासन पर साम्प्रदायिक रंग देने का आरोप लगाया। मंच ने कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं बचा है ऐसे में साम्प्रदायिकरण कर समाज को विभाजित किया जा रहा है। रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि एक तरफ पूरा देश कोरोना महामारी के चलते संकट में है। जन साधारण के जाति–धर्म के भेद को परे रखकर एक दूसरे की पीड़ा को समझने और आपस में सहायक बनने का अद्भुत नज़ारा देश की सड़कों, महानगरों की गलियों से लेकर गांवों तक ने देखा है। लेकिन इस बीच कुछ अप्रिय घटनाएं भी सामने आईं जिनमें जौनपुर के ग्राम भरेठी और आज़मगढ़ के गांव सरदहां में हाशिए पर खड़े दो समूहों के बीच मारपीट और आगज़नी की घटना खासतौर से उक्त भावना को आहत करने वाली है। मंच महासचिव ने कहा कि संकट की इस घड़ी में इन घटनाओं के बाद शासन और प्रशासन की भूमिका ऐसी ही अन्य घटनाओं की तुलना में काफी असंतुलित रही है। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले इसी तरह की घटना कानपुर में घटित हुई थी लेकिन पुलिस और उत्तर प्रदेश श

पुराने जमाने में 20का अंक अशुभ माना जाता था

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विजय सिंह बिष्ट वर्ष 2020ई0 प्रारम्भ जिस प्रकार हुआ वह बहुत ही दुखद रूप लेकर आया है। एक ऐसा रोग जो अज्ञांत रूप में विश्वभर में महामारी लेकर आया। इस आक्रांता ने जहां मृत्यु का तांडव मचाया वहां इस रोग की रोकथाम में वैज्ञानिकों, चिकित्सकों ,बैद्यों, और ओझाओं को भी हरा दिया। यहां तक इनको काल के गाल में पहुंचा दिया। पुराने जमाने में 20का अंक अशुभ माना जाता था।बीस ,बिस्सी विष के रूप में देखे जाते थे।चार सौ बीस ऐसे लोगों को संज्ञा दी जाती थी जो गलत से गलत काम किया करते थे। इनसे बचने की सलाह दी जाती रही है। संविधान की यह धारा बहुत खराब मानी जाती है। लाभ और हानि में हानिकारक किसी भी क्रय विक्रय में बीस बर्जित माना जाता था। इक्कीस लो या उन्नीस बीस का सौदा नहीं होता था। बीमार आदमी को इक्कीस दिन का उपवास दिया जाता था,जब पूछा जाता था जबाब न तो बीस का उन्नीस हुआ नहीं उन्नीस का बीस।अर्थात बीस का अंक घृणित समझा जाता था। भारतीय संस्कृति में ऐसा रचा-बसा है उसे डर कहो या मनोवैज्ञानिक प्रभाव।हमें याद है*1857ई0के भय से 1957ई0को दो भागों में बांटने की बात गांव में प्रचलित थी। आज बंगाल का चक्रवात  और जन हानि

किसानों की समस्याओं को लेकर ज्ञापन सौंपा

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नोएडा , प्रदेशव्यापी मुहीम के तहत भारतीय किसान यूनियन भानु के कार्यकर्ताओं ने किसानों की समस्याओं को लेकर गौतमबुद्ध नगर ज़िलाधिकारी कैम्प कार्यालय सेक्टर 27 नोएड़ा पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया। प्रशासन की तरफ़ से अपर ज़िलाधिकारी बलराम सिंह ने ज्ञापन लिया। राष्ट्रीय महासचिव बेगराज गुर्जर ने ज्ञापन में देश, उत्तर प्रदेश के किसानों की समस्याओं को उठाते हुए कहा कि गौतमबुद्ध नगर में प्राधिकरणों द्वारा किसानों की ज़मीनें अधिग्रहण हो जाने के कारण किसान व मज़दूर बेरोज़गार हो गए। जिससे गुजर बसर करने के लिए इन्होंने अपने घरों व दुकानों को किराए पर दिया हुआ है। कोविड 19 की महामारी के चलते लोकडाउन से किराएदार  बेरोज़गार होने से ज़्यादातर अपने घर  चले गए व जो मकानों में रह रहे हैं उनका किराया माफ़ करना पड़ा।  इस कारण अब मकान मालिक ही भूखे मरने के कगार पर पहुँच गए हैं और अब बिजली का बिल व बच्चों के स्कूलों की फ़ीस भी देने में असमर्थ हैं। इसलिए चार महीने के ( मार्च,अप्रेल,मई व जून )बिजली के बिल व बच्चों के स्कूलों की फ़ीस माफ़ की जाये । गन्ना किसानों का मिलों पर बक