नृत्य मेरा प्राण, सम्मान और मेरी आत्मा है : शोवना नारायण
आज हम जो कथक नृत्य देखते हैं, वह कथक समुदाय से बहुत अलग है। आज के खड़े मंदिरों में नृत्य रूपों को दर्शाती मूर्तियां, सबसे अच्छे रूप में लगभग 1000 से 1100 वर्षों के बीच की हैं। गुप्त और मौर्य काल के मंदिर और मूर्तियां कहां हैं जो वास्तुकला और मूर्तियों से बहुत समृद्ध थे! हम भारत के छोटे संग्रहालयों और अभिलेखागार पर ध्यान नहीं देते हैं, जो पुराने जमाने की सूचनाओं का भंडार समेटे हुए है। यहीं पर हमें कत्थक नृत्य के रूप और भाव में निरंतरता को देखना और इसे ढूंढना है। कोलकाता : “नृत्य मेरा प्राण, सम्मान और मेरी आत्मा है’’। मैं अपने जीवन के दोनों अलग हिस्से, एक नृत्यांगना और एक सरकारी अफसर दोनों ही मुझे काफी प्रिय था और मुझे दोनों से हीं काफी लगाव था। औपचारिक शिक्षा ग्राहण करने के पहले तीन वर्ष की उम्र में ही मै नृत्य की दुनिया में प्रवेश कर चुकी थी। मेरे घर में मेरा एक काफी सुंदर लहंगा है, जिसे देख आज भी वह छवि नजरों के सामने आ जाती है कि मैने कितनी कम उम्र में डांस शुरू की थी। श्री सीमेंट एवं प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रुप से आयोजित ‘‘एक मुलकात’’ नामक ऑनलाइन व...