त्याग और कर्मपथ से सबसे बड़ी जनसंख्या वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री तक
विजय सिंह बिष्ट प्राचीन काल में जो लोग योग धारण करते थे कहते हैं कि उन्हें एक बार अपने घर भिक्षाटन करने आना आवश्यक था तभी उनका योग सफल माना जाता है। किन्तु जिसको दाता ने सब कुछ दे दिया है वह घर की भिक्षा और अनुमति के बिना भी कर्मपथ पर आगे बढ़ कर राज सिंहासन प्राप्त कर सकता है। उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री इसके प्रतीक हैं। पौड़ी गढ़वाल में यमकेश्वर ब्लाक के एक छोटे से गांव पंचूर में आनंद सिंह बिष्ट सुपुत्र स्व0 जितिन सिंह बिष्ट के घर बालक अज्जू का जन्म हुआ। विद्यालय में अजय सिंह बिष्ट के नाम से आप ने यमकेश्वर से ग्यारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर बीएससी कोटद्वार और ऋषिकेश से सम्पन्न की। प्रखर बुद्धि और ओजस्वी व्यक्तित्व के धनी तो आप थे ही,यम यस सी के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय का चयन किया , किंतु कोटद्वार में कमरे से सारी सामग्री के साथ मूल प्रमाण पत्रों की चोरी हो जाने से प्रवेश नहीं हो पाया। गोरखपुर में रहकर आप अधिकांश गोरखनाथ मन्दिर जाया करते थे। क्योंकि भक्ति भावना आप में बचपन ही भरी हुई थी। वहां आपको मंदिर के महंत अवैद्यनाथ जी से मिलने का लगातार अवसर मिलता रहा। सुयोग्य बस महंत ...