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विभिन्न बोलियों की ऐसी गंगा बही कि सब उसमें डूबते-उतरते गए

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नयी दिल्ली - हिंदी दिवस के उपलक्ष में विश्व मैत्री मंच की दिल्ली इकाई द्वारा ऑनलाइन बहुभाषी काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्ष डाॅ भावना शुक्ला और मुख्य अतिथि सरोज गुप्ता थी। अर्चना पांडेय द्वारा दीप प्रज्वलन के बाद सुषमा भंडारी ने राजस्थानी सरस्वती वंदना सुमधुर स्वर में गाई। इस अवसर पर संतोष श्रीवास्तव ने अपने स्वागत भाषण में संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि " संस्था उन प्रतिभागीयो को मंच प्रदान करने का प्रयत्न करता है जिन्हें ये अवसर प्राप्त नही होता। इसके उपरान्त सुषमा के कुशल संचालन में संतोष श्रीवास्तव,डाॅ शुभ्रा,नीलम दुग्गल,वीणा अग्रवाल,डाॅ दुर्गा सिन्हा ,डाॅ भावना शुक्ला,सुरेखा जैन ,डाॅ सरोज गुप्ता,शकुन्तला ,पूनम गुप्ता,वंदना,पुष्पा सिन्हा ,डाॅ कल्पना पांडेय, राधा गोयल ,अंजू जैमिनी ,शारदा मितल ,अर्चना पांडेय आदि ने हिन्दी ,पहाड़ी ,पंजाबी,मारवाड़ी,भोजपुरीआदि भाषाओं में काव्य पाठ करके सबका मन मोह लिया। अध्यक्ष भावना शुक्ला ने अपने उदबोधन में कहा कि ," ज्येष्ठा हिन्दी वंचिता देती है धिक्कार आजादी के बाद भी मिला नही अधिकार" मुख्य अतिथि स...

सुखमय जीवन अच्छे मित्रों के संग

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विजय सिंह बिष्ट दोस्त दिलाएंगे लंबी उम्र की सौगात वास्तव में यह छोटी-सी टिप्पणी जीवन जीने की कला है। मनुष्य ही नहीं समस्त प्राणी आपस में मिलजुल कर रहना चाहते हैं। चींटियों का समूह हो या आकाश में उड़ते पक्षियों का कलरव एक दूसरे के साथ मित्रवत ही चलते हैं।जल बिहार करती मछलियां झुण्ड में तैरती हैं।भले ही हम सोचते हैं कि इनमें बाणी का अभाव है। फिर भी उनमें संदेश वाहन की पूर्ण संवेदना होती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ईश्वर ने समस्त जीव जंतुओं में उसे वाणी और बुद्धि प्रदान की है।उसी के आधार पर सामाजिक संरचना का ढांचा तैयार हुआ है।जो विभिन्न धर्मों जातियों और सीमाओं में बंटकर अलग अलग देशों का नामांकन करता है। आज कोरोना काल में समाज के आपसी भाईचारे को छिन्न-भिन्न कर दिया है। जिसका परिणाम तनाव, चिड़चिड़ापन बेचैनी ,स्ट्रोक और हृदय रोग को निमंत्रण देना है।  हम विगत दस पंद्रह सालों से पार्क में रामायण, महाभारत तथा धार्मिक ग्रंथों का वाचन और श्रवण किया करते थे।अपनी मित्र मंडली एक निश्चित समय पर आती और जाती थी। कथा के श्रवण में हम भूल जाते थे कि हमें सांसारिक कुछ दुःख या सूख भी है। कभी कभार ...