आज तंत्र यंत्र और षड़यंत्र का बोलबाला है, जिसने इस विद्या को सीख लिया वह परांगत व्यक्ति
लेखक > विजय सिंह बिष्ट बदलता परिवेश,समय समय पर संसार में कई परिवर्तन हुए हैं। कुछ प्राकृतिक होते हैं और कुछ मानवीय परिवर्तन कहलाते हैं। आदिकाल का इतिहास जिसमें मानव चेतना का समय कहा जा सकता है सतयुग में उसे नामित किया गया। उस समय के लोगों का आचरण मात्र सत्य पर निर्भर था, शिक्षा प्रणाली मंत्र प्रधान थी, वेदों और ऋचाओं का अध्ययन भी बोधगम्य करना होता था।लेखन कार्य भोज पत्रों अथवा शिला लेखों पर आधारित था। शिक्षा आचार्यों और मंत्र दृष्टाओं पर गुरुकुल या आश्रमों में दी जाती थी। इसके उदाहरण मिलते हैं श्री राम की धनुष विद्या ,पुष्पक विमान का चालन ,तीर कमान का अभिमंत्रित होकर चलाना। रिद्धि सिद्धि के प्राप्त होने पर हनुमान जी का आकार प्रकार बढ़ाना,मात्र मंत्र शक्ति थी। त्रेतायुग में मंत्र दान गुरु दक्षिणा के आधार पर शिष्ठ समाज का निर्माण हुआ। द्वापर में मंत्र के साथ तंत्र विद्या का प्रादुरभाव हुआ, इसमें वेद के साथ लवेद और सत्य के साथ असत्य का उद्भव भी होने लगा। राज्य प्राप्ति के लिए समय समय पर शकुनि और द्रुयोधन का छल कपट, जोड़ तोड़ की राजनीति तंत्र पर आधारित हो गई। भगवा...