कन्या कुमारी से कश्मीर तक जलें दीप इतने
जलाओ दीये , पर रहे ध्यान इतना। मन में अंधेरा कहीं रह न जाये। उजागर बना दें, मनों को सबल इतना। जाति धर्म में हम कहीं बंट न जायें। आलोक बनकर सत्य उभर करके आये। कलुषता कहीं मनों में रह न पाये। रहें परस्पर प्रगाढ़ बन के इतना। निशाचर पतंगें स्वयं भाग जायें। रहे ध्यान इतना मन के दीपक कहीं बुझ न पायें। करें पूजा अर्चना नैवेद्य से इतना। धरा से अम्बर तक महक जाये। कन्या कुमारी से कश्मीर तक जलें दीप इतने। मां भारती का हृदय खुशी से झूम जाये। जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना। धरा पर अंधेरा कहीं रह न जाये। मनों में बहे ज्ञान गंगा, अज्ञान कहीं रह न जाये। जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना। हर भारतीय खुशी से झूम जाये लेखक > विजय सिंह बिष्ट हिन्दी साहित्य विशारद ।