राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणापत्रों में सांसदों और विधायकों के लिए आचार संहिता को शामिल करें


नायडू ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र लोगों के प्रति उत्तरदायित्व पूरा करने का जरिया है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में 'विधान, विचारशीलता और उत्तरदायित्व' शामिल हैं। उन्होंने कहा, 'हमसे आशा कि जाती है कि हम देश और जनता की बेहतरी के लिए आवश्यक कानून बनाएंगे, लोकहित के मुद्दों पर चर्चा करेंगे और सरकार के उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करेंगे।'     


नयी दिल्ली - उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के अध्यक्ष एम. वेंकैया नायडू ने सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया है कि अपने घोषणापत्रों में सांसदों और विधायकों सहित सभी जन प्रतिनिधियों के लिए आचार संहिता को शामिल करें।


आचार संहिता में यह बात शामिल की जाए कि कोई भी सदस्य सदन में आसन के सामने हंगामा नहीं करेगा, नारेबाजी नहीं करेगा, कार्यवाही में व्यावधान नहीं डालेगा और कागज फाड़ने तथा उसे सदन में फेंकने जैसा उद्दण्ड व्यवहार नहीं करेगा।


 नायडू ने कहा कि संसद का जो सत्र अभी समाप्त हुआ है, वह बहुत सफल रहा है। उन्होंने कहा कि राज्यसभा में इस बार जितने सवाल उठाए गए और उनके जवाब दिए गए, वह बहुत ऐतिहासिक है। उन्होंने सत्र के दौरान शून्य काल और विशेष उल्लेख का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस बार राज्यसभा के सत्र में 35 बैठकों के दौरान 32 विधेयक पास हुए, जो पिछले 17 वर्षों में सबसे ज्यादा है।


उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि सभी राजनीतिक दलों का नेतृत्व और सांसद क्रियाशील संसद के महत्व को पहचानेंगे और यही सकारात्मक गतिशीलता आगे भी कायम रखेंगे। उन्होंने कहा कि हमेशा इस बात पर जोर देते रहे हैं कि सदस्य चर्चा में भाग लें और संसद की कार्रवाई में कोई व्यावधान न डालें, क्योंकि इस तरह के व्यवहार से लोगों में बेचैनी पैदा होती है।


 नायडू ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि कुछ राज्यों में विपक्षी दलों में सदन का बहिष्कार करने का रुझान देखा जा रहा है, जबकि ऐसी घटनाएं भी हुईं हैं जहां विपक्ष को बाहर भेज दिया गया है। कुछ राज्यों में विधानसभा थोड़े दिनों के लिए बुलाई जाती है, जबकि अन्य विधानसभाओं में लगातार व्यावधान होता रहता है।


उपराष्ट्रपति ने सभी राजनीतिक दलों से अपील की कि वे संसद और विधानसभाओं की कार्यवाही सुचारू रूप से चलने में सहयोग करें और यह भी प्रयास करें कि चर्चा का स्तर ऊंचा हो। उन्होंने कहा, 'लोग यह अनुभव करते हैं कि सार्वजनिक चर्चा का स्तर गिर रहा है'।


उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल एक-दूसरे के विरोधी हैं न कि दुश्मन। उन्होंने कहा कि उनकी राय है कि सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष को लगातार आपस में संवाद करना चाहिए, ताकि संसद और विधानसभाओं की कार्यवाही सुचारु रूप से चल सके।


 


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