80वीं पुण्यतिथि पर याद किये गए भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के

० संत कुमार गोस्वामी ० 
गोरेगांव ( मुम्बई ) दादा साहेब फाल्के चित्र नगरी,फिल्म सिटी स्टूडियो में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के की 80 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर फिल्मसिटी स्टूडियो द्वारा एक समारोह आयेजित किया गया। इस समारोह में भारतीय फिल्म जगत से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, बॉलीवुड के नामचीन शख्सियतों व महाराष्ट्र सरकार के प्रशाशनिक पदाधिकारियों के अलावा दादा साहेब फाल्के के ग्रैंडसन चंद्रशेखर पुसालकर, मृदुला पुसालकर और नेहा बंदोपाध्याय भी अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और सभी ने दादा साहेब फाल्के की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।

 इसके बाद दादा साहेब फाल्के की स्मृति में बॉलीवुड के चर्चित अभिनेता, सिंगर और उद्घोषक राजू टांक के द्वारा सन् 1989 से संचालित बैनर बॉम्बे एंटरटेनमेंट के तत्वाधान में निर्धारित दादा साहेब फाल्के चित्रनगरी(फिल्म सिटी)अवॉर्ड 2024 के लिए फिल्म विधा से जुड़े चयनित नवोदित प्रतिभाओं को दादा साहेब फाल्के के ग्रैंडसन चंद्रशेखर पुसालकर, फैशन डिजाइनर मूनमुन चक्रवर्ती और राजू टांक द्वारा संयुक्तरुप से अवार्ड दे कर सम्मानित किया गया। 

फिल्मसिटी स्टूडियो प्रबंधन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में झारखंड के वरिष्ठ फिल्म पत्रकार काली दास पाण्डेय और पंडित अवधेश निर्मलेश पाठक की भी खास भागीदारी रही। दादा साहेब फाल्के के ग्रैंडसन चंद्रशेखर कुशेलकर ने कार्यक्रम के दौरान अपने संक्षिप्त भाषण में दादा साहेब फाल्के के संघर्ष काल की चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पूरी दुनिया मे हर साल सबसे ज्यादा फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है। देश का हर दूसरे नौजवान फिल्मों में काम करने की या फिर फिल्मों से जुड़ी अन्य विधाओं से खुद को जोड़ कर अपना कैरियर बनाना चाहता है।

 लेकिन देश में जब दादा साहेब फाल्के जी ने फिल्म निर्माण को शुरू किया होगा तो उनको कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा इसको हमेशा दिल और दिमाग में रखना होगा। आज सिनेमा उद्योग कई तरह के संकटों के दौर से गुज़र रहा है। इससे घबराना नहीं है। आज धैर्य के साथ संघर्ष करने की आवश्यकता है। विदित हो कि दादासाहब फाल्के का असल नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। उनका जन्म 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के त्रिम्बक (नासिक) में एक मराठी परिवार में हुआ था।

 उनके पिता गोविंद सदाशिव फाल्के संस्कृत के विद्धान और मंदिर में पुजारी थे। सन1910 में तब के बंबई के अमरीका-इंडिया पिक्चर पैलेस में ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ दिखाई गई थी। थियेटर में बैठकर फिल्म देख रहे धुंदीराज गोविंद फाल्के ने तालियां पीटते हुए निश्चय किया कि वो भी भारतीय धार्मिक और मिथकीय चरित्रों को रूपहले पर्दे पर जीवंत करेंगे। इसके बाद दादा साहेब ने फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' का निर्माण कार्य शुरू किया जो देश की पहली फीचर फिल्म के रूप में जानी जाती है। दादा साहेब अपनी इस फिल्म के सबकुछ थे। उन्होंने इसका निर्माण किया, निर्देशक भी वही थे,

 कॉस्ट्यूम डिजाइन, लाइटमैन और कैमरा डिपार्टमेंट भी उन्हीं ने संभाला था। वही फिल्म की पटकथा के लेखक भी थे। 3 मई 1913 को इसे कोरोनेशन सिनेमा बॉम्बे में रिलीज किया गया। यह भारत की पहली फिल्म थी। राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद दादा साहेब फाल्के ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद दादा साहेब फाल्के ने देश की पहली फिल्म कंपनी 'हिंदुस्तान फिल्म्स' की स्थापना की। 'राजा हरिश्चंद्र' से शुरू हुआ उनका करियर 19 सालों तक चला। राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद अपने फिल्मी करियर में उन्होंने 95 फिल्म और 26 शॉर्ट फिल्में बनाईं। 

उनकी सफल फिल्मों में मोहिनी भस्मासुर (1913), सत्यवान सावित्री (1914), लंका दहन (1917), श्री कृष्ण जन्म (1918) और कालिया मर्दन (1919) के नाम उल्लेखनीय हैं। उनकी आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी और आखिरी फीचर फिल्म 'गंगावतरण' थी। उनका निधन 16 फरवरी 1944 को नासिक में हुआ था। उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1969 में 'दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड' देना शुरू किया। यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। सबसे पहले यह पुरस्कार पाने वाली देविका रानी चौधरी थीं। 1971 में भारतीय डाक विभाग ने दादा साहेब फाल्के के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया।

 आज भले ही दादा साहेब फाल्के हमारे बीच नहीं है लेकिन आज भी उनका संदेश व उनके संघर्षों को बयां करते पदचिन्ह भारतीय फिल्म जगत के फिल्मकारों को कर्मपथ पर धैर्य के साथ अग्रसर रहने के लिए सदैव प्रेरित करता है और युगों युगों तक करता रहेगा।

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