खेजड़ली के पर्यावरण प्रेमियों का बलिदान देख आंखें हुई नम

० अशोक चतुर्वेदी ० 
जयपुरः रंगायन सभागार में मौजूद दर्शकों की आंखें उस समय नम हो गयी जब उन्होंने ग्रामीणों को वृक्ष बचाने के लिए जान न्यौछावर करते देखा। मौका था नाटक ‘खेजड़ी की बेटी’ के मंचन का। इसका लेखन व निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी अशोक राही ने किया। कार्यक्रम का आयोजन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, जवाहर कला केंद्र व ओरियन ग्रीन्स के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। इसी के साथ तीन दिवसीय राष्ट्रीय पंचतत्व महोत्सव का समापन हुआ।

300 साल पुरानी है घटना खेजड़ी की बेटी की कहानी तीन सौ साल पुरानी एक सत्य घटना पर आधारित है। खेजड़ली गाॅंव निवासी बिशनोई समाज के 363 लोगों ने दीवान गिरधर दास भंडारी की आज्ञा के विरुद्ध जाकर पेड़ कटवाने से इंकार कर दिया। वे पेड़ों से लिपट गए और जान गंवाकर भी खेजड़ी के पेड़ नहीं कटने दिए। नाटक में जाम्भोजी महाराज की महिमा का बखूबी वर्णन किया गया।अतिथियों में पंकज ओझा, रजिस्ट्रार राजस्थान सिविल सेवा अपील ट्रिब्यूनल, देवेंद्र बोर्डिया अध्यक्ष अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा, कला मर्मज्ञ विनीता अग्रवाल उपस्थित रहे। सभी ने अपने उद्धबोधन में तीन दिवसीय राष्ट्रीय पंचतत्व महोत्सव के तहत हुए कार्यक्रमों की सराहना की।

वेशभूषा और लोकगीतों ने मन मोहा नाटक में करीब तीस कलाकारों ने जीवन्त अभिनय किया, इनमें नितिन सैनी, प्रतिभा पारीक, राहुल शर्मा, अनिल बैरवा, योगेश जांगिड़, हनी मिश्रा, प्रियांशु पारीक, यशवंत सिंह, जय सोनी, अंशु कटारिया व अन्य शामिल रहे। कलाकारों की रंगबिरंगी वेशभूषा और मरुभूमि के लोकगीतों ने भी दर्शकों को खूब प्रभावित किया। रवि बाॅंका ने रूप सज्जाकार जबकि नितिन सैनी, संजय महावर और सुप्रिया शर्मा ने सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई।

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