सारी विद्याओं की जड़ों में वेदों का ही चिन्तन प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप में समाहित रहा है

० योगेश भट्ट ० 
वाराणसी,प्रतियोगिताओं में समस्यापूर्ति में जहां प्रतिभागियों को तत्क्षण ही श्लोक का निर्माण करना था वहीं श्ललोकान्तराक्षी में शब्द क्रम से अपने कण्ठाग्र प्रतिभा से श्लोकों को सद्य: सुनाना था ।इनमें रघुवंश, अभिज्ञानशाकुन्तल,किरातार्जुनी,यम्, मेघदूत , श्रीमद्भगवद्गीता आदि को चयनित ग्रथों से सुनाना था ।इससे उनकी अवधान शक्ति भी भव्य रुप में उजागृत हुई । निर्णयाकों ने उनकी उच्चारण शुद्धता पर विशेष ध्यान रखा और भाषण की अन्य प्रतियोगिताओं में भी निर्णायकों ने शास्त्र के गूढ स्थलों पर सुक्ष्म प्रश्नों को भी उठाये और छात्र-छात्राओं ने इनका तओषजनक जवाब भी दिया । 

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी की अध्यक्षता में अखिल भारतीय शास्त्रस्पर्धा के आयोजन वैदिक विज्ञान केन्द्र ,बीएचयू में संपन्न हुआ । कुलपति प्रो वरखेड़ी ने प्रसन्नता अभिव्यक्त करते कहा कि इसमें देश के विविध प्रान्तों से पधारे छात्र -छात्राओं ने भारतीय शास्त्रीय परंपरा का विलक्षण स्मरण शक्ति तथा सद्य:रचनाधर्मिता की प्रतिभा का प्रदर्शन किया और अपने भाषण प्रतियोगिताओं से भारतीय संस्कृति की जीवन्तता की प्रस्तुति दी । वैदिक विज्ञान केन्द्र ,वीएचयू के समन्वयक प्रो उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने भी कहा कि सारी विद्याओं की जड़ों में वेदों का ही चिन्तन प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप में समाहित रहा है । अतः इसके प्रांगण में इसका आयोजन महत्त्व की बात है ।

 शास्त्र प्रतियोगिताओं में समस्यापूर्ति, अक्षरश्लोकी, साहित्यभाषण , ज्योतिषभाषण, धर्मशास्त्रभाषण ,वेदान्तभाषण,न्यायभाषण,व्याकरणभाषण, शास्त्रविचारचर्चा, अष्टाध्यायी कण्ठपाठ , सुभाषितकण्ठपाठ, अर्थशास्त्र शलाका परीक्षा,काव्यकण्ठपाठ तथा भगवद्गीताकण्ठपाठ से वैदिक विज्ञान केन्द्र समुल्लिसत तथा गुंजित हो उठा । ध्यातव्य है कि इन सारी प्रतियोगिताओं के निर्णय के लिए देश के लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों को सीएसयू ,दिल्ली द्वारा इनके निर्णय देने के लिए आमन्त्रित भी किया गया था ।इन प्रतियोगिताओं में प्रतिभागियों ने संस्कृत की विविध विधाओं की युगीनता ,समीचीनता तथा जीवंतता को ज्वलन्त रुप में प्रस्तुत किया ।इससे शास्त्र की शक्ति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । 

इस प्रतियोगिता के आयोजन का सही अर्थ - शास्त्र रक्षण तथा उसका सम्यकतया संबर्धन भी करना है जो ऐसे ही आयोजनों से संभव हो सकता है । कुलपति प्रो वरखेड़ी ने इस अलौकिक शास्त्र आयोजन की अनेक प्रतियोगिताओं के प्रत्यक्षदर्शी के रुप में भी समुपस्थित रहें ।साथ ही साथ श्रीकाशीविश्वनाथ धाम न्यास के सदस्य प्रो ब्रज भूषण ओझा ,डा फिरोज, वीएचयू तथा जाने अन्य संस्कृत विद्वान तथा संस्कृत अनुरागियों भी उपस्थित रहें ।

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