आपातकाल का काला अघ्याय के 48 वर्ष

० विनोद तकियावाला ० 
नयी दिल्ली = देश में आपातकाल लगे 48 साल पूरे हो चुके हैं।आज हम आपात काल लगाने के पीछे पूरी कहानी जानने की कोशिस करेगें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आपातकाल क्यूं लगानी पड़ी । देश को आपातकाल जैसे कोठर र्निणय लेने की क्या मजबुरी थी। क्या इंदिरा जैसे नेत्री के पास इसके अलावे कोई रास्ता नही बचा था।या इसत्रे पीछे कोई वाह्य शक्ति का दबाब था या कोई उनकी पार्टी के बाह्य या आन्तरिक व्यक्तित्व का गलत सलाह या दबाब था।इस बार में किसी निर्णय पर पहुँचे इसके लिए आपातकाल के घटनाक्रम पर सरसरी निगाह डालते हुए यह समझने की कोशिस करते है।भारत के राजनीति के इतिहास का 26 जून 1975 की काली सुबह थी।

आसमान में सूर्य की किरणे चमक रही थी लेकिन भारतीय राजनीति के इतिहास का सूर्य को आज ग्रहण लग गया है। भारतीय राजनीति के पंडितयो के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें है। सूचना व संचार के माध्यम इतने विकसित नही थे।उस समय सुचना के श्रोत के रूप में दैनिक समाचार पत्र व आकाशवाणी के कुछ सीमित संख्या में रेडियो स्टेशन थे।आज प्रातःकाल मेंऑल इंडिया रेडियो पर जो सबसे पहली आवाज आई थी वो देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी ।जिन्होने देश वासियों को बताई कि राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है।इसमें घबराने की कोई बात नहीं है।
 उसके समय के प्रत्यक्ष दर्शी के कुछ व्यक्तित्व जिन्होने आप नाम का उल्लेख नही करने पर बताते है कि आपात काल की घोषणा के पीछे इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला था।माननीय उच्च न्यायालय के कारण इमरजेंसी की नींव पड़़ी थी।वे बताते है कि आपात काल की पटकथा 12 जून 1975 को लिखी गई थी।इंदिरा के खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ने वाले राजनारायण ने यह याचिका दायर की थी।याचिकाकर्ता ने इंदिरा गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होने अपने चुनाव में सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया है। 

 इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इस दिन इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था तथा 6 साल के लिए किसी भी संवैधानिक पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था।24 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।जस्टिस कृष्णा अय्यर ने कहा कि जब तक कोर्ट में मामला चलेगा तब तक इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद पर बनी रह सकती हैं।लेकिन उन्हें संसद में किसी भी चर्चा और बिल पर वोट करने का अधिकार नहीं होगा।

इस संदर्भ में कैथरीन फ्रैंक इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं कि यह फैसला ना ही इंदिरा गांधी को रास आया ना ही उनके समर्थकों को।ये कुछ ऐसा था कि वो पद पर तो रहती, लेकिन उस पद की शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती थीं। अगले दिन यानी 25 जून को जयप्रकाश नारायण ने नई दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकार के खिलाफ बड़ी रैली बुलाई थी।तब देश में महंगाई और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर लोगों में गुस्सा पनप रहा था।जयप्रकाश पूरे देश में घूम-घूमकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

25 जून की सुबह इंदिरा गांधी ने बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे को फोन किया। उस समय सिद्धार्थ शंकर दिल्ली में ही बंग भवन में रुके हुए थे।इंदिरा गांधी के सेक्रेटरी आर के धवन थे।उन्होंने रे को बताया कि प्रधानमंत्री जी ने उन्हें1सफदरजंग रोड अपने आवास पर तुरंत बुलाया है।जब रे1सफदरजंग रोड पहुंचे।उन्होंने देखा इंदिरा गांधी अपनी स्टडी रूम में बैठी हुई थीं।कमरे में एक टेबल था जिस पर ढेर सारी फाइलें फैली हुई थीं।

दोनों करीब 2 घंटे तक देश की हालात पर बातें करते रहे।इस संदर्भ में प्रणब मुखर्जी अपनी किताब ‘द ड्रमैटिक डेकेड’ में जिक्र करते हैं कि रे ने शाह कमीशन के सामने अपने बयान में बाद में बताया कि जब वह पहुंचे तो इंदिरा ने उनसे कहा कि उन्हें कई रिपोर्ट्स मिली हैं।इनमें कहा गया है कि देश बड़ी मुसीबत में फंसने वाला है।सब तरफ अव्यवस्था फैली हुई है। बिहार और गुजरात की विधान सभाएं भंग की जा चुकी हैं। विपक्ष सिर्फ आंदोलन पर उतारू है।इस तरह तो विपक्ष की मांगों का कोई अंत नहीं है।देश में कानून का राज नहीं रह गया है। इस समय कोई कड़ा कदम उठाने की सख्त जरूरत है।

इंदिरा गांधी ने उसी शाम जयप्रकाश नारायण की रामलीला मैदान में होने वाली सभा को लेकर भी एक इंटेलिजेंस रिपोर्ट दिखाई।रिपोर्ट में कहा गया था कि जयप्रकाश नारायण की योजना पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का आह्वान कर एक सामानांतर प्रशासन चलाने की है।कोर्ट से लेकर पुलिस और सेना से लेकर सरकार की बात न मानने को कहेंगे।इमरजेंसी की जांच के लिए बनी शाह कमीशन के सामने सिद्धार्थ शंकर रे ने यह खुलासा किया कि इंदिरा गांधी उनसे पहले भी दो-तीन मौकों पर कह चुकी थी कि भारत को एक ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की जरूरत है।

ठीक उसी तरह जब एक बच्चा पैदा होता है और उसमें कोई हरकत नहीं होती,तब उसमें जान लाने के लिए शॉक दिया जाता है।इंदिरा का कहना था कि देश में एक बड़ी शक्ति का उभरना जरूरी है। सल,सिद्धार्थ शंकर रे संवैधानिक मामलों के जानकार माने जाते थे।दूसरी वजह वो इंदिरा गांधी के करीबी लोगों में से एक थे।1969 में जब कांग्रेस टूटी थी तब से सिद्धार्थ बाबू इंदिरा फ्रैक्शन के साथ वफादार रहे।इंदिरा गांधी इस मामले में रे पर कितना भरोसा करती थी,इसका अंजादा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने अब तक अपने कानून मंत्री एस आर गोखले से कोई चर्चा नहीं की थी।

इंदिरा ने 2 घंटे चली बातचीत में कहा कि अमेरिकी प्रेसिडेंट रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में मैं सबसे ऊपर हूं।मुझे डर है कि सी आई ए की मदद से मेरी सरकार ना गिरा दी जाए।ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका ने चिली में जनरल ऑगस्टो पिनोचेट का तख्तापलट किया।दरअसल इंदिरा गांधी का अमेरिका को लेकर यह डर बेवजह ही नहीं था।नवंबर 1971 इंदिरा गांधी अमेरिका के दौरे पर गई थीं। .1971 में भारत-पाक युद्ध से एक महीने पहले उनकी यात्रा का मकसद था कि अमेरिका पाकिस्तान में हथियार ना भेजे।निक्सन ने ऐसा करने से मना कर दिया।

25 जून दोपहर बाद सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा को धारा 352 लगाने का सुझाव दिया।इंदिरा गांधी की सारी बातें सुनने के बाद सिद्धार्थ बाबू ने कहा कि उन्हें सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिए।ताकि वो कोई समाधान सोच सकें।उन्होंने शाम 5 बचे तक का वक्त मांगा।कमरे पर आकर सिद्धार्थ रे ने भारतीय संविधान के साथ अमेरिकी संविधान को उलटा-पलटा। दोपहर 12 बचे तक वो इसी काम में लगे रहे। पुनःशाम 3:30 बजे फिर1सफदरजंग रोड कर

इंदिरा गांधी को तसल्ली से समझाने बैठे।रे ने कहा कि भारतीय संविधान की धारा 352 बाह्य और आंतरिक अव्यवस्था के समय इमरजेंसी लगाने की छूट देता है।रे ने साफ किया बाह्य और आतंरिक अव्यवस्था कैसे अलग है।उन्होंने उदाहरण के लिए 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय लगाए गए इमरजेंसी के बारे में इंदिरा को समझाया कि कैसे युद्ध एक देश के लिए बाह्य खतरा है।जो देश के अंदर परिस्थियां हैं उसके लिए आंतरिक इमरजेंसी लगाना होगा।यह सुनकर इंदिरा गांधी ने कहा कि ऐसा करने से पहले वो इस मामले को मंत्रिमंडल के सामने नहीं लाना चाहती।

सिद्धार्थ रे ने कहा कि इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति से कहना होगा कि मंत्रिमंडल को बुलाने के लिए उनके पास पर्याप्त समय नहीं था।इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ बाबू से कहा कि उन्हें तुरंत राष्ट्रपति के पास जाना होगा।इंदिरा जी की इस बात का रे ने विरोध करते हुए कहा कि वो एक मुख्यमंत्री हैं,देश के प्रधानमंत्री नहीं।अंत मे रे इंदिरा के साथ राष्ट्रपति भवन जाने के लिए राजी हो गए।शाम 5:30 बजे इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे राष्ट्रपति आवास पहुंचे।तब देश के राष्ट्रपति थे फखरुद्दीन अली अहमद।राष्ट्रपति को सारी बात बताई। इस पर राष्ट्रपति ने कहा कि आप मुझे इमरजेंसी के दस्तावेज पहुंचाइए।

इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे वहां से वापस1सफदरजंग रोड पहुंचे। सिद्धार्थ बाबू ने आते ही तुरत-फुरत में इंदिरा गांधी के सचिव पी एन धर को ब्रीफ किया।धर ने अपने टाइपिस्ट को बुलाया और इमरजेंसी की घोषणा के दस्तावेज तैयार कराए।धर खुद ही ये दस्तावेज लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे।अब तक रात हो चुकी थी।इधर इंदिरा गांधी ने निर्देश दिया कि यह बात मंत्रिमंडल को सुबह 5 बजे बताया जाए।25 जून रात 12 बजे: विपक्षी नेताओं समेत लाखों लोगों को गिरफ्तार करने की प्लानिंग

1सफदरजंग रोड पर सिद्धार्थ शंकर रे इंदिरा गांधी को उनके सुबह दिए जाने वाले भाषण को लिखने में मदद कराने लगे।एक दूसरे कमरे में आर के धवन, संजय गांधी और ओम मेहता जो संसदीय राज्य मंत्री थे।वो सुबह गिरफ्तार किए जाने वाले विपक्षी नेताओं की लिस्ट बना रहे थे। वहां इस बात की भी योजना बनाई जा रही थी कि कैसे सुबह अखबारों और कोर्ट की बिजली काट दी जाएगी।इंदिरा गांधी जब तक अपने भाषण को पूरा कर पाई,रात के 3 बच चुके थे। सिद्धार्थ शंकर रे अब तक वहीं थे। 

भाषण पूरा होने के बाद उन्होंने इंदिरा से विदा ली।वो बाहर निकल रहे थे,ओम मेहता से टकरा गए।ओम मेहता ने उन्हें बताया कि अगले दिन दिल्ली अखबारों की बिजली काटने और देश भर की अदालतों को बंद रखने का बंदोबस्त कर लिया गया है। रे ये सुनकर चौंके और विरोध करते हुए कहा कि ऐसा करना बेतुका है।हमारी तो इस बारे में कोई बात भी नहीं हुई है। संविधान के आपातकाल को इस तरह से लागू नहीं कर सकते।

रे तुरन्त वापस आर के धवन के पास पहुंचे और कहा कि वो इंदिरा गांधी से मिलना चाहते हैं।धवन ने कहा कि वो तो सोने जा चुकी हैं।पर रे ने जोर देते हुए कहा कि मेरा उनसे मिलना जरूरी है।धवन जब तक इंदिरा को बुलाने गए ओम मेहता ने रे को बताया कि अखबारों की बिजली काटने और कोर्ट को बंद करने का विचार संजय गांधी ने दिया था।

इधर थोड़ी झिझक के साथ धवन इंदिरा गांधी के पास गए और उन्हें बाहर लेकर आए।इंदिरा जी की आंखें लाल थी,जाहिर था वो रो रहीं थीं।रे ने इंदिरा गांधी को प्रेस की बिजली काटने की बात बताई।इस पर इंदिरा जी ने कहा कि किसी अखबार की बिजली नहीं काटी जाएगी ना ही कोई कोर्ट बंद होगा।इंदिरा गांधी के मुंह से इतना सुनने के बाद ही रे वहां से निकले।जो कि बाद में झूठ साबित हुआ।दिल्ली के अखबारों की बिजली सप्लाई काट दी गई।26 जून की सुबह बस हिंदुस्तान टाइम्स और स्टेट्समैन अखबार ही निकल पाए।किस्मत से उनके प्रेस में बिजली कनेक्शन दिल्ली म्युनिसिपालिटी की जगह नई दिल्ली से था।

26 जून सुबह 6 बजे: राउंड टेबल पर बैठा पूरा मंत्रालय आवाक नजरों से एक दूसरे को देखता रहा।सुबह के 6 बजे थे।1 अकबर रोड पर इंदिरा गांधी के ऑफिस में 8 कैबिनेट मंत्री, 5 राज्य मंत्री मौजूद थे। बाकि 9 कैबिनेट मंत्री तब दिल्ली में नहीं थे।एक राउंड टेबल पर सभी नाम के अल्फाबेटिकल ऑर्डर में बैठे थे।उन सबको इमरजेंसी के घोषणा की एक-एक कॉपी और विपक्ष के उन नेताओं की लिस्ट दी गई जो गिरफ्तार हुए थे।इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा की और ऐसा करने की वजहें बताई।वहां मौजूद सभी के लिए ये किसी सदमे की तरह था।

इससे पहले किसी को इस बात की कानो-कान खबर नहीं थी। वहां के माहौल में घुले तनाव को कोई भी महसूस कर सकता था। चूकि ये मीटिंग सिर्फ इमरजेंसी को अप्रूव करने के लिए बुलाई गई थी।इसलिए कोई वोटिंग नहीं हुई।पी एन धर ने इस बारे में बाद में बताया कि वहां कोई चर्चा नहीं हुई।प्रधानमंत्री के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि आधी रात को ये इतना बड़ा कदम क्यों उठाया गया।पूरी मीटिंग सिर्फ 30 मिनट में खत्म हो गई।26 जून 1975 का स्टेट्समैन अखबार विपक्षी नेताओं समेत1लाख लोगों को जेल में डाल दिया।आप को याद दिलाना चाहुंगा कि भारतीय राजनीति का काला अध्याय

25 जून1975 से19जनवरी 1977 तक आपात काल लागू रहा।मेंनटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा कानून और डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत करीब एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया।मीसा एक्ट के संदर्भ में हमारे वरिष्ट मीडिया मित्र साहिद आवास साहब ने एक दिलचस्प वाकिया बता ते है।मीसा एक्ट के तहत लालु यादव को इमरजेन्सी के विरोध में कारावास डाल दिया था।इसी दौरान लालू व रावडी देवी के घर पर एक कन्या का जन्म हुआ।

इस कन्या का नाम यादव परिवार के द्वारा मीसा भारती का नाम दिया गया।आप को बता दे कि लालू यादव व रावड़ी देवी दोनो बिहार के मुख्य मंत्री पर रह चुके है।कुलदीप नैयर अपनी आत्मकथा‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ में कहते हैं कि आम लोगों को पता यह भी नहीं पता था कि आपातकाल का क्या मतलब होता है।लोग सकते और दुविधा में थे।सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया।या उन्हें हाउस अरेस्ट कर लिया गया।आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जयप्रकाश नारायण से लेकर मोरारजी देसाई,अटल बिहारी वाजपेयी,लालकृष्णआडवानी,

अरूणजेटली,जॉर्जफर्नांडीस,चंद्रशेखर जैसे शीर्ष विपक्षी नेता शामिल थे। 25 जून की आधी रात को ही सभी राज्यों के मुख्य सचिव की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया गया था।जयपुर की महारानी और ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया को भी इमरजेंसी के दौरान तिहाड़ जेल में डाल दिया गया था।65 साल की गायत्री देवी को फॉरेन एक्सचेंज और स्मगलिंग के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया।वहीं राजमाता सिंधिया पर पैसों की हेरा-फेरी का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया था।26 संगठनों को एंटी-इंडिया कहकर उन पर बैन लगा दिया गया था।इसमें आर एस एस से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सिस्ट शामिल थे।प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई।

 समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो जाती थी। 23 जनवरी 1977 तक सब ऐसे ही चलता रहा जब तक लोकसभा चुनाव की घोषणा नहीं हो गई।भारतीय राजनीति का यह काला अध्याय समाप्त हुई।जनता पार्टी को जनता का विशेष आर्शवाद व स्नेह मिला तथा इन्दिरा गाँधी को पराजय का मुहें देखनी पड़ी।भारत के प्रधान मंत्री के रूप मे लोक नायक जयप्रकाश नारायण जिन्हे सम्पूर्ण क्रान्ति के जनक भी कहा जाता है।उनकी कृपा प्राप्त कर के मोरार जी देसाई बनें।हालाकि वे अपने कार्य काल पुरा नही पाये। कुछ राजनीतिज्ञ जानकारों का मानना है कि इसके पीछे चौघरी चरण सिंह का हाथ था जिन्होने दोहरी सदस्यता की बातें उठाई थी,

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