थाई-भारत गौरव सम्मान से सम्मानित हुए प्रो. रवि शर्मा 'मधुप'

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली | देश के प्रतिष्ठित महाविद्यालय श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रवि शर्मा ‘मधुप’ थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में आयोजित एक समारोह में थाई-भारत गौरव सम्मान से अलंकृत किए गए | हिंदी के जाने-माने साहित्यकार एवं समर्पित शिक्षक प्रोफेसर ‘मधुप’ को उनके सुदीर्घ हिंदी शिक्षण एवं साहित्य-सृजन हेतु यह सम्मान प्रदान किया गया |
थाईलैंड हिंदी परिषद् के अध्यक्ष सुशील धनुका, थाई-भारत कल्चरल लॉज (बैंकॉक), के सचिव राकेश माटा, जी.आई.एस. बैंकॉक की विभागाध्यक्ष एवं कवयित्री शिखा रस्तोगी, टोक्यो (जापान) की पत्रिका ‘हिंदी की गूँज’ की संपादक रमा पूर्णिमा शर्मा, मारवाड़ी युवा मंच कुआलालंपुर (मलेशिया) की संरक्षक अंजु पुरोहित, केंद्रीय हिंदी संस्थान में नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग के अध्यक्ष प्रो. उमापति दीक्षित, साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन के अध्यक्ष मनोज कुमार, सचिव डॉ. सुमन रानी की गरिमामयी उपस्थिति में सम्मान समारोह संपन्न हुआ |

थाई-भारत कल्चरल लॉज, थाईलैंड हिंदी परिषद एवं साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वावधान में थाईलैंड में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव का आयोजन किया गया | इस अवसर पर द इंडिया-थाई चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के सभागार में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एव साहित्योत्सव आयोजित किया गया था | संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में 'विश्व में मानक हिंदी शिक्षण' विषय पर अपने शोधालेख पर आधारित वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए प्रो. रवि शर्मा 'मधुप' ने विश्व में हिंदी शिक्षण के एक मानक पाठ्यक्रम निर्माण पर बल दिया | 

उन्होंने कहा, “21वीं सदी में हिंदी के वैश्विक विस्तार के लिए यह आवश्यक है कि विश्व के विभिन्न भाषा भाषियों के लिए हिंदी शिक्षण की व्यापक स्तर पर व्यवस्था की जाए | यह कार्य तभी प्रभावशाली ढंग से संभव हो पाएगा, जब हम प्रत्येक देश की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना एवं उस देश की मुख्य भाषा को ध्यान में रखते हुए हिंदी शिक्षण का एक ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करें, जिसमें 50% भाग उस देश विशेष से संबंधित हो और शेष 50% सामान्य भाग हो |यह हिंदी शिक्षण यथासंभव देवनागरी लिपि में हो और इसमें प्रयुक्त हिंदी संस्कृतनिष्ठ हो, क्योंकि संस्कृत अनेक विदेशी भाषाओँ के भी निकट है |

 इस पाठ्यक्रम को वैश्विक स्तर पर हिंदी के हित में कार्य करने वाली संस्थाओं यथा विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस; महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, भारत एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, भारत आदि द्वारा विचार-विमर्श के उपरांत तैयार किया जाए, तो यह प्रयास हिंदी के वैश्विक प्रचार-प्रसार में अत्यंत सहायक सिद्ध होगा|” इस संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में हिंदी के वैश्विक स्वरूप, थाईलैंड एवं भारत के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंधों, भारत की स्वतंत्रता में थाईलैंड के योगदान आदि पर व्यापक चर्चा हुई | प्रत्येक सत्र में शोधपत्रों का वाचन इस संगोष्ठी की विशेषता रही |

थाईलैंड में आयोजित इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्योत्सव में भारत के विभिन्न प्रदेशों यथा राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि तथा विभिन्न देशों जैसे जापान, थाईलैंड, मलेशिया आदि के 80 से अधिक हिंदी प्रेमी विद्वानों, शिक्षकों एवं साहित्यकारों ने सोत्साह भाग लिया | इनमे प्रमुख थे - रवि सहगल, पूर्व अध्यक्ष, इंडिया-थाई चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स, प्रो. कुसुमलता मलिक, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, प्रो. संध्या गर्ग, उप प्राचार्या, जानकी देवी मेमोरियल महाविद्यालय, डॉ. जोगिंद्र सिंह बिसेन, उपकुलपति, 

स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, नांदेड, प्रो. मधुप्रभा सिंह, प्रो. कल्पना गवली, प्रो. एन. शांति कोकिला, प्रो. राजलक्ष्मी, प्रो. इशरत जहां, डॉ. मधुबाला मीणा, डॉ. निशा मलिक, डॉ. इंदुमति, डॉ. मंजू रानी, डॉ. सुनीता मीणा, डॉ. नवजोत भनोट, डॉ. ज्ञानेश पांडे, डॉ. प्रतिभा रानी, डॉ. कुमारी मनीषा, डॉ. अभय कुमार, डॉ. सुनीता, डॉ. सुधा शर्मा ‘पुष्प’, सुरम्या शर्मा, सरिता गुप्ता, अभिमन्यु पांडे, कुमार ललित, पुष्पा त्रिपाठी आदि | थाईलैंड में हिंदी सीख रहे विद्यार्थी इस आयोजन का मुख्य आकर्षण थे |

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