बहादुर सिंह बिष्ट ‘मथुरादत्त मठपाल स्मृति सम्मान-2023’ से स्म्मानित

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली। दुदबोलियों का महत्व भी तभी है जब वह अपने सरोकारों और परिवेश को बचाने के काम आये। दुदबोलियों के लिए उनकी जमीनों का बचा रहना जरूरी है क्योंकि वह उसी में पुष्पित-पल्लवित होती हैं। यह बात प्रखर सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता और अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा ने ‘दुदबोलि’ पत्रिका के नये अंक के लोकार्पण के मौके पर कही। कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति, दिल्ली के तत्वावधान में दिल्ली के गढ़वाल भवन में ‘दुदबोलि’ के संस्थापक-संपादक मथुरादत्त मठपाल जयन्ती पर उन्हें याद करते हुए लोकभाषाओं और लोक साहित्य पर उनके योगदान पर संगोष्ठी का आयोजन किया।
 इस मौके पर ‘दुदबोलि’ के नये अंक का लोकार्पण किया गया। यह अंक मथ्ुारादत्त मठपाल पर केन्द्रित है। कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति, दिल्ली’ अब ‘दुदबोलि’ को त्रैमासिक निकालेगी। मथुरादत्त मठपाल स्मृति न्यास, रामनगर की ओर से युवा नवोदित कवि बहादुर सिंह बिष्ट को इस वर्ष के ‘मथुरादत्त मठपाल स्मृति सम्मान-2023’ प्रदान किया गया। उल्लेखनीय है कि कुमाउनी भाषा के सुपरिचित कवि और ‘दुदबोलि’ पत्रिका के संस्थापक-संपादक मथुरादत्त मठपाल की जयन्ती थी। कुमाउनी भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक समिति, दिल्ली ने उन्हें याद करते हुए यह आयोजन दिल्ली पंचकुइया रोड स्थित गढ़वाल भवन में रखा।
 इस मौके पर मथुरादत्त मठपाल पर केन्द्रित ‘दुदबोलि’ के नये अंक का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम में साहित्य, संगीत, कला, पत्रकारिता, रंगमंच से जुड़े लोगों के अलावा कई सामाजिक संगठनों के प्रतिनिनिधि भी शामिल रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली सरकार में शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक रहे प्रेम राम आर्य ‘कुमाउनी’ ने की। मुख्य वक्ता अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा थे। मुख्य अतिथियों में हिन्दी और गढ़वाली रंगमंच का सुपरिचित नाम रंगकर्मी सुशीला रावत, दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक प्रो. हरेन्द्र असवाल और मथुरादत्त मठपाल स्मृति न्यास के सचिव नवेन्दु मठपाल थे।
मथुरादत्त मठपाल के व्यक्तित्व और कृतित्व पर मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के सचिव पुरूषोत्तम शर्मा ने कहा कि हम अपनी लोकभाषाओं को तभी बचा सकते हैं जब हम उन्हें प्रयोग में लायें। अपने गांव तालेश्वर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि तालेश्वर में मिले अभिलेख ब्राह्मी लिपि में थे। इस भाषा का विस्तार भारत के सुदूर क्षेत्रों तक था। फिर पाली भाषा को लोगों ने जाना, बाद में संस्कृत भी आई, लेकिन समय के साथ इन भाषाओं को बोलने-लिखने वाले नहीं रहे तो यह भाषायें या तो विलुप्त हो गई या बहुत सीमित हो गई। 

उन्होंने कहा कि यदि भाषायें प्रचलन में रहेंगी और वह अपने सरोकारों से भी जुड़ी रहेंगी तो उनके जीवंत रहने की गारंटी है। वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रमोहन पपनै ने मथुरादत्त मठपाल के साथ अपनी पहली मुलाकात और उनसे दुदबोलि की महत्ता के बारे में मिली समझ के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि मठपाल जी ने दुबोलियों को आत्मसात करने के लिये जो रास्ता निकाला वह नई पीढ़ी को अपनी भाषाओं और जड़ों से जोड़ने का काम कर है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर हरेन्द्र असवाल ने दुदबोलियों के महत्व और उन्हें आगे बढ़ाने में मठपाल के योगदान का जिक्र करते हुए कहा कि हमारी संवाद की सबसे अच्छी भाषा दुदबोलि ही हो सकती है। 

उन्होंने कहा कि मठपाल ने दुदबोलि के माध्यम से नई पीढ़ी को भी अपनी भाषाओं और लोक के प्रति चेतना जगाने का काम किया है। मथुरादत्त मठपाल स्मृति न्यास के सचिव नवेन्दु मठपाल ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि मथुरादत्त मठपाल ने जिस विचार के साथ ‘दुदबोलि’ पत्रिका शुरू की थी उसे आगे ले जाने के लिये नये लोग प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने न्यास की ओर से कुमाउनी भाषा साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति, दिल्ली का आभार व्यक्त करते हुए भविष्य में हर तरह के सहयोग देने की बात कही। 

उन्होंने कहा कि हम अपनी भाषाओं के माध्यम से समसामयिक सवालों को और अधिक प्रखरता से संबोधित कर सकते हैं। ‘दुदबोलि’ के प्रकाशन की यात्रा और भविष्य में यह आगे बढ़े इसके लिए अपने सुझाव भी समिति को दिये। सुपरिचित रंगकर्मी सुशीला रावत ने कहा कि हम लोग भ्लंबे समय से अपनी दुदबोलियों में नाटक और फिल्में बना बना रहे हैं। अपनी दुदबोलियों के प्रसार के लिए इस तरह के माध्यम बहुत कारगर होते हैं। हम जहां भी रहे, लेकिन अपनी दुदबोलियों में बातचीत करनी चाहिए। 

अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रेम कुमाउनी ने कहा कि कुमाउनी भाषा, साहित्य और संस्कृति के लिए यह जरूरी है कि हम अपनी दुदबोलियों में न केवल बोलें बल्कि अपनी नई पीढ़ी को भी इसके लिये प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से महानगरों में आकर हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि दुदबोलियों के लिए मथुरादत्त मठपाल जैसे लोगों के काम को आगे बढ़ाने के लिए एक पीढ़ी खड़ी है।

इस मौके पर नवोदित कवि बहादुर सिंह बिष्ट को ‘मथुरादत्त मठपाल स्मृति सम्मान-2023’ से स्म्मानित किया गया। यह पुरस्कार हर वर्ष ‘मथुरादत्त मठपाल स्मृति न्यास’ किसी रचनाकार को देती है। कार्यक्रम की शुरुआत कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति के महासचिव सुरेन्द्र रावत के स्वागत संबोधन और समापन समिति के अध्यक्ष डाॅ. मनोज उप्रेती के आभार वक्तव्य के साथ हुआ। इस मौके पर सुप्रसिद्ध रंगकर्मी गंगादत्त भट्ट को श्रद्धांजलि दी गई।

 मंच का संचालन चारु तिवारी ने किया। इस मौके पर कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति, दिल्ली के उपाध्यक्ष सुरेन्द्र हालसी, संगठन सचिव नीरज बवाड़ी, कोषाध्यक्ष राजू पांडे, पारिशा कुंवर, डाॅ. प्रकाश उपे्रती, अभिव्यक्ति कार्यशाला के महासचिव मनोज चंदोला के अलावा बड़ी संख्या में साहित्य, संगीत, कला, रंगमंच और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग मौजूद रहे।

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