शोध के क्षेत्र में स्थानीय समस्याओं का भी समाधान रेखांकित हो -प्रो वरखेड़ी

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - प्रवचन, प्रशिक्षण तथा प्रकाशन की बहुत ही शोध पद्धति में बहुत आवश्यकता होती है जिसमें उपासना , ध्यान तथा श्रद्धा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । स्वाध्यायोपासना से शिक्षा में आठ गुणा फल मिलता है लेकिन उसमें नैतर्य परमावश्यक है । शोध में स्थानीय समस्या के समाधान को अपने शोध क्षेत्रों में रेखांकित करने का सार्थक प्रयास किये जाने की भी बात की।

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , दिल्ली के शोध केन्द्र द्वारा शैक्षणिक गुणोत्कर्ष नामक सप्त दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है. केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि जिस प्रकार चाकू शान से रगर खा कर चमक उठती है उसी प्रकार बुद्धि भी तर्क तथा विवेक आदि से उत्कर्षोन्मुखी होती चली जाती है ।  इस संदर्भ में उन्होंने महात्मा गांधी के नई तालीम शाला और वर्धा के सेवाग्राम का भी जिक्र किया ,ताकि शोध के क्षेत्र में भी हम लोकल से वोकल हो सकें और संस्कृत की महत्ता तथा सदुपयोग उन तक पहुंच सके ।

 प्रो वाई.एस्.रमेश ,अधिष्ठाता, बहुविषयक विज्ञान प्रविधि ने शोध छात्र -छात्राओं को संबोधित करते बताया कि अन्वेषण के क्रम में परीक्षण , निरीक्षण, चिन्तन तथा शोधन ही आवश्यक है और इसमें स्वाध्याय , शिक्षा तथा शोध के महत्त्व पर व्यापक महत्त्व होता है। प्रो रमेश ने आगे यह भी कहा कि इससे सीएसयू की नैक द्वारा प्राप्त A++ ग्रेड और उन्नयनी बन सकेगा।  प्रो बनमाली बिश्बाल ,डीन , अकादमी ने कहा कि शोध में निरन्तर सुधार करने से ही यह गुणवत्ता के साथ उत्कर्षोन्मुखी होगा और सीएसयू को वर्तमान वर्ष को गुण उत्कर्ष वर्ष के रूप में संमान्य कुलपति जी द्वारा जो घोषित किया गया है उस ऊर्जा को सीएसयू के वैश्विक शोधोत्कर्ष में लगाया जा सकता है ।

प्रो मदन मोहन झा , डीन , छात्र कल्याण ने भाषिक प्रौद्योगिकी के महत्त्व को लेकर शोध छात्रों को ज्ञानार्जन की बात कही । साथ ही साथ उनके निर्देशन में जो सृजन झा द्वारा 16 भारतीय भाषाओं से जुड़े शब्दकोश का निर्माण किया गया है उसकाभी जिक्र किया और पावर प्वाइंट से उसकी उपयोगिता को समझाया और कहा कि शोध के क्षेत्र में ऐसा प्रयास समय की मांग है ।  आर. जी .मुरली कृष्ण, प्रभारी कुलसचिव ने शोधार्थियों को अपने संबोधन में कहा कि शोध में शब्दचौर्य कला से सर्वथा बचना चाहिए और शोधक्रम में विश्वनीयता,वैधता तथा अनुप्रयुक्तता का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकि उन्नत शोध से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा की वृद्धि होती है ।

 इस कार्यशाला में शास्त्र शिक्षण पद्धति तथा उसके नवाचार , राष्ट्रीय शिक्षा नीति और संस्कृत पाठ्यक्रम भारतीय ज्ञान परम्परा में शोध की संभावना,बहुविषयक अध्ययन तथा अनुसन्धान, व्यवसायिक विकास तथा शास्त्र परिचर्चा तथा संस्कृत शिक्षण में नवाचार के अतिरिक्त इस कार्यशाला से जुड़ी अनेक गतिविधियां , समूह चर्चा तथा पुस्तक विमोचन होना भी तय हुआ है ।  डा गणेश टी .पण्डित तथा डा पवन व्यास ने अतिथियों का स्वागत तथा मंच संचालन किया ।

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