आंजनेय पर्वत : चट्टानी गुफाओ के बीच हनुमान व अंजनी मंदिर

० लक्ष्मण बोलिया ० 
कर्नाटक के होस्पेट विजयनगर जिले का रामायण कालीन नगर हम्पी जो 11 वीं शताब्दी तक विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र और समृद्घ नगर था, अब होस्पेट विजयनगर के नाम से जाना जाता है। यहीं पर किष्किंधा का शासक वानर राजा बाली का शासन था। इसी के पास है आंजनेय पर्वत ,जहां हनुमानजी का जन्म हुआ ।  वानर राज बाली के गुफा नुमा किले ,हनुमानजी के जन्म स्थान, अंजनी पर्वत पर स्थित हनुमान मंदीर जाने का कार्यक्रम तय हुआ 
लेकिन कमलापुर निवासी विजयनगर मे केन्द्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से सेवानिवृत 75 वर्षिय यूसुफ भाई, होटल क्लार्क इन के एक यात्री, अन्य शुभ चिंतक तथा डा.सेवदा भी दबी जुबान से आजनेय पर्वत पर जाने के लिए लगभग 600 संकरी , छोटी तथा गुफाओं के बीच उबड़ खाबड़, सीधी सीढिया चढ़कर कर जाना जोखिमपूर्ण मान कर नहीं चढने की सलाह दे रहे थे। कारण मेरी दो बार ओपन हार्ट सर्जरी, हार्ट के दोनो वाल्व आर्टिफिशल लगे हुए होने तथा उम्र भी 84 वर्ष होना ।
 मेरे साथी डा.ओम प्रकाश सेवदा भी असमंजस मे थे कि कुछ समस्या होगई तो क्या होगा ? हम दोनो इसी उहापोह में हनुमान जन्म स्थान आंजनेय पर्वत पर जाने के लिए होटल से निकल गये। यह तय हुआ कि मै नहीं चढ़ पाया तो वहीं रुक जाऊँगा।  कर्नाटक की पवित्र तुंगभद्रा नदी हंपी के बीच से निकलती है। नदी को पार कर हम पर्वत के प्रवेश द्वार से आगे बढे। मेरे मन में बार- बार हनुमान जी के जन्म स्थान पर जाने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी। कुछ सीढियां चढने के बाद मैने डा.सेवदा को सूचना देदी कि वे आगे पहुंच जाए ।मै धीरे धीरे ऊपर आरहा हूं। उन्होने मुझे पुनः कहा कि मै यहीं रुक जाऊं ।
लेकिन मै धीरे धीरे आगे बढता रहा। गोकिल कंपनी की घडी से हार्ट बीट को चेक करता हुआ सीढियां चढता जा रहा था। जब धड़कन की गति 125 से अधिक होजाती तो रूक जाता और 80 आने पर फिर चढ़ने लग जाता। धूप तेज होगई और जाने व लौट कर आने वालों की भीड भी बढती जारही थी। किसी तरह सारी रिस्क ऊपरवाले को सौंप कर प्रबल आत्मविश्वास के साथ आखिरकार मैं हनुमान मंदिर पहुँच गया। डा. सेवदा आश्चर्य चकित थे।
हनुमान जन्म स्थान आंजनेय पर्वत मंदिर के पीठाधिपति महंत श्री विद्या दास जी को डा. ओम प्रकाश जी नेजब मेरे बारे मे जानकारी दी तो वे भी मेरी हिम्मत और आत्मविश्वास की प्रशंसा किए बिना नहीं रहे। वहां अनुभूत समस्याओं पर काफी लंबी बातचीत के बाद एक इंटरव्यू भी मैने लिया। वे हम दोनो को किष्किंधा के अंजनी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान पर निर्मित मंदिर के गर्भ गृह तक लेगये और स्वयं ने मूर्ति के सिंदूर से तिलक लगा कर दर्शन कराए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

हस्तशिल्प आर्टीजंस के प्रमोशन हेतु हुआ फ्लो जयपुर चैप्टर का ' जयपुर आर्ट फेयर

“द ग्रेट इंडियन ट्रेवल बाजार 2024“ का आयोजन 5 से 7 मई जयपुर में

वाणी का डिक्टेटर – कबीर