कट्टरता को छोड़े विना विश्वशांति की परिकल्पना असंभव – प्रो. जेएस राजपूत

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली । धर्म ख़तरा नहीं है, कट्टरता बड़ी समस्या है। हमारा डीएनए एक है इस हिसाब से हम सभी भारतीय एक हैं। ये विचार आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य और राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच डॉ इंद्रेश कुमार ने दिल्ली में आयोजित  कार्यक्रम में व्यक्त किए।  हम सब स्वयं में परिवर्तन लाकर ही दुनिया में शांति ला सकते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच की द्विभाषी त्रैमासिक शोध पत्रिका --- लोकसंभाषण का विमोचन करते हुए डॉ इंद्रेश कुमार ने कहा कि संप्रेषण के अनेक माध्यम हैं। प्यार और संकेत की भाषा पूरी दुनिया में एक है।

 हम भारतीयों के डीएनए में प्यार और सहिष्णुता है जिसे दुनिया स्वीकार करती है। महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हे श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि गांधी के बलिदान और उनके त्याग को दुनिया मानती है। भारत ने हर युग में दुनिया को शांति और त्याग का संदेश दिया है। आज चीन, अमेरिका, जापान समेत दुनिया के कई देश शक्तिशाली होने का दम भरते हैं लेकिन सोने कि चिड़िया होने का गौरव सिर्फ भारत को प्राप्त है। त्याग और बलिदान की सोच केवल भारत की मिट्टी में है। जब भारत समृद्ध होता है दो दुनिया को शांति और त्याग का संदेश देता है।

 भारत का चरित्र उसकी सभ्यता और संस्कृति में साफ झलकता है। सभी भारतवासी एक पिता --- ईश्वर, अल्लाह, वाहे गुरु, ईशू की संतान हैं और हमारी माता भी एक है और वो हैं धरती माता। इसीलिए हम भारतवासी धरती पर रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं से प्यार और स्नेह करते हैं। हम वसुधैव कुटुम्बकम का अनुसरण करते हैं। भारतीय समाज स्वीकारिता पर विश्वास करता है जबकि बाक़ी सभ्यता विस्तारवाद का द्योतक है। हम सभी के कल्याण को अपना धर्म समझते हैं।

 भारतीय विनाश के बारे में सोचते भी नहीं हैं तो वो विनाश कर कैसे सकते हैं। उन्होंने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस उत्सव को पूरे ब्रह्मांड ने हर्षोल्लास के साथ मनाया। उन्होंने कहा कि राम सबके हैं क्योंकि वो ग़रीबों के थे। सभा को संबोधित करते हुए प्रख्यात शिक्षाविद् और एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक पद्मश्री प्रो. जेएस राजपूत ने कहा कि भारत को विकसित करने के लिए समाज के हर वर्ग को अपना दायित्व निभाना चाहिए।

 उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत प्राइमरी स्कूल स्तर से होनी चाहिए। स्कूल शिक्षकों का दायित्व सबसे अधिक है इसलिए की बच्चे देश का भविष्य होते हैं और उनकी बुनियाद स्कूल के स्तर पर ही मज़बूत रखी गई तो वो समृद्ध समाज और देश के निर्माण में अहम रोल निभा सकते हैं। अपने पंथ और मान्यताओं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की हठधर्मिता को छोडे विना विश्वशांति के सपने को साकार नहीं किया जा सकता। प्रो जेएस राजपूत ने कहा कि सभी धर्मों के मूल तत्वों को स्कूली शिक्षा का हिस्सा बनाया जाना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि सत्य पर चलें और सत्य को प्रसारित करें।

इस अवसर पर शोध पत्रिका के संपादक गोलोक बिहारी ने कहा कि विकसित भारत का अर्थ है दिव्य भारत। हमारे विकसित भारत की कल्पना ही है वैश्विक शांति। श्री गोलोक बिहारी ने कहा कि हमारा उद्देश्य जनमानस में संस्कृति के साथ जागरण पैदा करना है। उन्होंने आरएसजेएम का परिचय कराते हुए कहा कि ये सामाजिक, आर्थिक, भू-राजनीतिक रणनीतियों और समकालीन discourse के लिए एक सामाजिक संगठन है।

 उन्होंने कहा कि इसकी स्थापना 2014 को एक राष्ट्रीय थिंक टैंक के रूप में की गई थी जिसमें विद्वानों, विशेषज्ञों और सरकारी संस्थानों एवं सेना के सेवानिवृत कर्मियों को शामिल किया गया था। आरएसजेएम आंतरिक और वाह्य सुरक्षा , अंतरर्राष्ट्रीय, सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध, रक्षा, सैन्य रणनीति, वैश्विक शांति और समृद्धि, आतंकवाद, माओवाद, साइबर सुरक्षा , कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मनोवैज्ञानिक युद्ध पर केन्द्रित है।

 दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन प्रो बीडब्ल्यू पांडेय ने कहा कि ये शोध पत्रिका राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा कि डॉ इंद्रेश कुमार के सानिध्य में ये संस्था पूरी ऊर्जा के साथ देशहित में अपना सक्रिय भूमिका निभा रही है। 

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