जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2024, साहित्यिक मैराथन का समापन

० आशा पटेल ० 
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2024, का 5-दिवसीय साहित्यिक मैराथन का समापन हुआ| फेस्टिवल में संस्मरण से लेकर स्पोर्ट्स, हिस्ट्री से माइग्रेशन और फूड से लेकर कई विषयों पर बात हुई| अंतिम सुबह की शुरुआत सप्तक चटर्जी के प्रदर्शन के साथ हुई, जो तीसरी पीढ़ी के हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक थे, जिन्होंने अपने शास्त्रीय वायलिन से मधुर धुनें बजाईं। सत्र ‘शाहजहानाबाद: ऑन देल्ही’स ब्रोकन हिस्ट्री’ में तीन इतिहासकारों, स्वप्ना लिडल, राणा सफवी और विलियम डेलरिम्पल ने शाहजहानाबाद/दिल्ली के इतिहास पर दिलचस्प चर्चा की
 इतिहासकार और लेखिका स्वप्ना ने कहा, “अभी हाल ही में प्रकाशित मेरी किताब (शाहजहानाबाद) मेरे दिल के काफी करीब है| उसमें अकबर द्वितीय और उनके पुत्र बहादुर शाह ज़फर द्वितीय के जीवनकाल को वर्णित किया गया है|” शाहजहाँ ने 17वीं सदी में शाहजहानाबाद की स्थापना की थी, जो वर्तमान में देश की राजधानी दिल्ली है| लेखिका राणा सफवी ने दिल्ली पर छह किताबें लिखी हैं, “मुझे अतीत को देखना और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता तलाशना अच्छा लगता है|” हाल ही में मेहरौली, दिल्ली में प्रशासन द्वारा गिराई गई मस्जिद के सन्दर्भ में उन्होंने कहा, “उस मस्जिद का नवीनीकरण का कार्य 1983 में हुआ था और वो पुरातत्वविभाग के स्मारक में शामिल थी|”
‘प्रणब माय फादर: ए डॉटर रेमेम्बेर्स’ सत्र की शुरुआत शर्मिष्ठा मुखर्जी द्वारा अपने पिता को याद करने से हुई| उन्होंने अपने पिता की डायरी एंट्रीज का भी खुलासा किया, जिस पर उनकी नई किताब, प्रणब माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स आधारित है। उन्होंने स्नेहपूर्वक याद करते हुए कहा, “उन्होंने अपनी डायरी में दर्ज किया कि उनके समय के दौरान कांग्रेस का कमजोर होना शुरू हुआ था| इसकी वजह थी उनके (इंदिरा गांधी) द्वारा किए गए दो विभाजन और सत्ता की पूरी एकाग्रता| शर्मिष्ठा ने कांग्रेस और अपने पिता से जुड़ी कई यादों को साझा किया|

‘माइग्रेंट्स: इंटरकनेक्शंस अक्रॉस टाइम’ सत्र में न केवल मनुष्यों, बल्कि पौधों और पशु प्रजातियों के प्रवासन पैटर्न और आदतों की चर्चा हुई| पूर्व बीबीसी संवाददाता और लेखक, सैम मिलर ने बताया कि सीमाएँ, पासपोर्ट और वीज़ा हाल ही में ईजाद हुए हैं, और मनुष्यों की आवाजाही का इतना राजनीतिकरण भी नया ही है। उन्होंने कहा, “हम अक्सर भूल जाते हैं कि हमारे सभी पूर्वज प्रवासी थे।” लेक्चरार और लेखक, सुरेशकुमार मुथुकुमारन ने सीमाओं के पार जाने वाली फसलों और पौधों की भूमिका के बारे में जानकारी प्रदान की, और ये भी बताया कि इसने व्यापार व राजनीतिक संबंधों को कैसे प्रभावित किया है|

‘अराउंड द वर्ल्ड इन एट्टी गेम्स’ सत्र में लेखक, गणितज्ञ और विज्ञान की सार्वजनिक समझ के प्रोफेसर, मार्कस डू सौतोय की नई किताब, अराउंड द वर्ल्ड इन एट्टी गेम्स पर चर्चा हुई, जिसमें उन्होंने खेलों की उत्पत्ति की खोज करते हुए दुनिया भर की यात्रा की और समझा कि क्या उन्हें आकर्षक बनाता है। सौतोय ने कहा, "...मुझे लगता है कि खेल और कहानियों में बहुत कुछ समान है, उनमें एक तरह का नाटक होता है, एक शुरुआत, एक मध्य और एक अंत लेकिन मुझे लगता है कि खेल विशेष हैं क्योंकि एक कहानी आपको दुखी कर सकती है... लेकिन एक गेम के नतीजे आपके एक्शन पर निर्भर होते हैं, क्योंकि गेम में आप कहानी से अधिक सक्रिय भागीदार होते हैं|”

सत्र ‘द नरेटिव आर्क’ में अनुभवी लेखिका, मृदुला गर्ग और साहित्यिक कार्यकर्ता और अनुवादक, कल्पना रैना ने अपनी शानदार साहित्यिक यात्राओं और अनुवादों में प्रतिष्ठित योगदान पर बात की| रैना ने ‘वर्ड्स विदाउट बॉर्डर्स’ के बारे में बात की जो उन लोगों को एक मंच प्रदान करता है, जिनके पास अंग्रेजी भाषी दुनिया में कोई आवाज नहीं है। अनुवाद की शक्ति के बारे में बोलते हुए गर्ग ने कहा, “अनुवाद भी सृजन है। यह लिखने जैसा ही है कि आपको अपने अहंकार को लेखक के अधीन बनाना होगा।''

‘द डे आई बिकेम ए रनर’ सत्र में पुरस्कृत पत्रकार, सोहिनी चट्टोपाध्याय ने अपनी नई किताब, द डे आई बिकम ए रनर पर चर्चा की, जो 1940 के दशक से लेकर स्वतंत्र भारत के वर्तमान क्षणों तक आठ महिला एथलीटों की कहानी प्रस्तुत करती है। उन्होंने आगे कहा, “मैं नौ महिला एथलीटों के माध्यम से 1940 के दशक के उत्तरार्ध से लेकर वर्तमान क्षण तक भारत की एक कहानी बताती हूं... यह खेल के माध्यम से भारत की महिलाओं का इतिहास है, क्योंकि खेल महिलाओं को आगे बढ़ने की वैधता देते हैं,

 घर के निजी क्षेत्र से सार्वजनिक क्षेत्र की दहलीज तक।" चट्टोपाध्याय ने भारतीय शहरों में विशेषकर महिलाओं के लिए दौड़ने की घटिया स्थितियों पर चिंता व्यक्त की। चट्टोपाध्याय द्वारा देश भर में एथलीटों के लिए मजबूत बुनियादी ढांचे और निवेश की आवश्यकता पर जोर देने के साथ सत्र समाप्त हुआ।
‘कैन आई स्पीक फ्रीली?’ सत्र में ऑल सोल्स कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड में सामाजिक और राजनीतिक सिद्धांत की प्रोफेसर और प्रसिद्ध लेखिका, अमिया श्रीनिवासन ने सार्वजनिक और निजी स्थानों में पुलिसिंग की भूमिका और ‘कैंसल कल्चर’ पर बात की। श्रीनिवासन ने कहा, "हम सभी एक-दूसरे की आलोचना करने में शायद कुछ ज्यादा ही तेज हैं, खासकर सोशल मीडिया पर... यह एंटी-इंटेलेक्चुअल है।"

 उन्होंने सभी क्षेत्रों में स्वतंत्र भाषण की रक्षा और संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया, चाहे वे शैक्षणिक, राजनीतिक या सामाजिक हों। फेस्टिवल की बहुचर्चित 'क्लोजिंग डिबेट' में 'फ्री स्पीच विल सर्वाइव सर्वाइवेलेंस टेक्नोलॉजी एंड प्राइवेसी इन्वेजन' पर चर्चा हुई| मोशन के पक्ष में बोलते हुए, मोहित सत्यानंद ने कहा, “बिना फ्री स्पीच के ये जेएलएफ भी नहीं होता... भविष्य खुले हाथों से लिखा जाता है, हाथ बांधकर आप भविष्य नहीं लिख सकते|”

मोशन के विपक्ष में ऑक्सफोर्ड के शिक्षाविद मार्कस दू सौतोय ने कहा, “डिजिटल मोबिंग के समय में अपनी बात कहना बहुत मुश्किल है... ये तकनीक डर का माहौल पैदा कर रही है| यहां आप कुछ कहते या पोस्ट करते हैं और तुरंत ही उसके नतीजे भुगतने पड़ते हैं|”मोशन के पक्ष में वकील पिंकी आनंद ने कहा, “आज के समय में सबसे पास फोन है, टैब हैं... और किसी न किसी तरह से हमारी निगरानी भी हो रही है, लेकिन एक मायने में वो हमारी सुरक्षा के लिए ही है| तकनीक की वजह से ही निर्भया के मुजरिम पकडे गए|”

मोशन के विपक्ष में हिंदू के रेजिडेंट एडिटर और लेखक वर्गीस के.जॉर्ज ने कहा, “हर चीज की एक कीमत होती है| फ्री स्पीच से पहले आपको मुक्त रूप से सोचने की जरूरत होती है| आज के समय में कुछ ख़ास ग्रुप आपके सोचने की क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं... जब भी आप अपने मन की बात कहते हैं, तभी आप पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाते हैं|”मोशन के पक्ष में ऑक्सफोर्ड की शिक्षाविद अमिया श्रीनिवासन ने कहा, “ये हमारे ऊपर है... हम लोकतान्त्रिक देश के नागरिक हैं| फ्री स्पीच की कीमत को बहुत देर से जाना गया है... कोई तकनीक या कोई निगरानी अब फ्री स्पीच को रोक नहीं सकते|”

मोशन के विपक्ष में राजनेता और लेखक पवन के. वर्मा ने कहा, “थ्योरी अलग है और प्रैक्टिकल अलग है, हम किसी काल्पनिक भविष्य की बात नहीं कर रहे हैं, हम वर्तमान की बात कर रहे हैं... वर्तमान में आपकी सारी कॉल्स, सारे कम्युनिकेशन को मॉनिटर किया जा सकता है| लोग अब व्हाट्सएप पर बात करने से डरते हैं... यहां मैं ग़ालिब को उद्धृत करना चाहूँगा, ‘हरेक बात में कहते हो तुम कि ये क्या है, तुम्हीं कहो कि ये अंदाजे गुफ्तगू क्या है|’”

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