प्रेम पथिक बसंत को भुला दिया रे

० विनोद तकियावाला ० 
 प्रकृत्ति प्रेमी के लिए शुभ संकेत मिल रहे है कि ऋतु राज बंसत का आगमन हो चुका है।जिसका प्रमाण देश की राजधानी में दिख रही है। पुरब दिशा उदित होने वाला भुवन भास्कार की सुनहरी रशिम की किरणें से दिल्ली वालो को थोडी राहत मिलती दिख रही है।प्रकृति के वातावरण में बसंत के बहते ब्यार स्पर्श मात्र से सम्पूर्ण प्रकृति आज पुलकित व पल्लवित हो गई है।प्रकृति ने अपना शोलह श्रंगार कर लिया है। किसानों के खेतों में खड़े सरसों के पीले फूल से बसंत व्यार के साथ अल्लड नव यौवनाओं की तरह अठखेलियाँ करने लगी है।आम के पेड़ पर नव मंजरीयों की मादक महक से जग जाहिर हो गया है 

कि ऋतराज बसंत का आगमन हो गया है। स्वयं ऋतुराज अपने चाहने वालों के लिए खुला निमंत्रण दे रहा है। वह आप सभी के लिए प्राकृतिक आनंद लेने के सुखद सौगात लेकर आपके घर आंगन में अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी है।जिसकी चर्चा गाँव में बुजुर्गों के चौपालो,पनघट पर पनिहारी की लम्बी घुंघट के अंदर निकलती विरह वेदनाओं के गीतों के स्वर कानों में पड़ने लगी है। बसंत ऋत के आगमन के खुशी में बाग बगीचे,वन-उपवन में सुमन की सुगंध से चहुँ दिशाएँ मंद मंद महक उठी है।चिड़िया के सुमधुर कलरवों से चहकने लगी है।
प्रकृति का परागकण इस पर्यावरण के अंदर इस कदर छलका है कि देश व परिवेश के संपूर्ण वातावरण आनंदित व उल्लाहित सा हो गया है।सारे जहान में सरसता ही सरसता है।आजकल प्रातःकाल में के आकाश में काले धने बादल के आगोश में सूरजदेव का लुका -छिपी का खेल खेल रहा है,

हम भी दैनिक कार्यक्रम के निवृत हो गए।चुंकि आज रविवार है । अधिकांश लोगों का सप्ताहिक अवकाश का दिन है।तभी मेरी नजर का अनायस ही समाने दीवार पर टंगे कैलेंडर पर पड़ी।जिससे पता चला कि यह मास तो मधुमास है।विक्रम संवत के अनुसार माध मास के शुक्ल पक्ष से वसंत का ऋतु का आगमन हो चुका है।

बसंत के शुभ शुभागमन से मनमोहक वातावरण में जहाँ प्रकृति ने नव - नवेली दुल्हन की तरह अपना शोलह श्रृंगार करने को तत्पर सी है,वहीं दूसरी ओर स्फेद हिम खण्ड से अच्छादित पवर्तराज हिमालय से आने वाली सर्द हवाओं के स्पर्श मात्र से हॉड कपाने वाली सर्दी हमें कहानी व उपान्यासकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास पुस की रात की यादें ताजा कर रही है।इतने में हमारे बगल में बैठे हुए एक वरिष्ट पत्रकार ने हमसे कहा देखिए ना धूप तो खिली हुई है लेकिन हवा में ठंडक है।क्योंकि यहां पर दिल्ली की सर्दियों को रिकार्ड को पीछे छोड़ते हुए पारा नीचे चला गया है। 

बाजार वाद के वैश्विक हाईटेक का भौतिकवाद इस युग में बसंत की यादें लगभग धूमिल सी हो गयी है।अन्धाधुंध विकास के नाम पर आज विशालकाय कंक्रीट के जंगल,कॉरपोरेट जगत वह अन्ध समर्थकजो अपने जीवन को मशीनों की तरह जीने को आदि हो चुके हैं।वह हर कार्य को फटाफट फास्ट फूड ,फास्ट लव,फास्ट लाइफ,फास्ट डेथ सोएंगे अपने जीवन को फास्ट फास्ट कर ब्रेक लगाकर यमराज के पास सुपरफास्ट पहुंच जाते हैं।फटाफट के फास्ट इस चक्रव्यूह में उलझ कर रह गया है।प्रकृति के अलौकिक सौंदर्य की वह माधुर्यता के सुखद आनंद लेना भूल चुके हैं।ये पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति हमारे ऊपर इतना हावी हो चुका है कि हम अपने पर्व त्यौहार सभ्यता संस्कृति को भूलकर भौड़ी फुहड़ संस्कृति के रंग में रह चुके हैं।

इस संदर्भ में प्रेस क्लब ऑफ इण्डिया के परिसर मे बैठे हुए वरिष्ठ पत्रकारो से गहन चर्चा के बाद हम यह सोचने को मजबूर हो गए हैं कि काश इस समय मैं भी काश अपने गांव में होता ,जहां वसंत के आगमन के स्वागत में गाँव के सभी बच्चे बूढ़े नवयुवक नवयुवतियाँ किसान ग्रहणीयाँ सभी अपने स्तर पर बसंत के आगमन के स्वागत में जुड़ जाते हैं ऋतुराज बसंत का आगमन हो चुका है।किसान अपने खेतों में लहराते हुए रवि के फसलों में लगे गेहूं की बालियाँ,चने,मटर और तीसी के रंग-बिरंगे फूलों के संग वसंत के बहारों में अल्लहड़ यौवन की अटखेलियाँ करते हुए थकते नहीं।

सभी वन -उपवन रंग-बिरंगे सुमन से प्रकृति रानी अपनी श्रृंगार किया है।ऐसे वातावरण में रसिक भँवरा ने भी अपने मधुर प्रेम गीत छेड़ दी है।विधार्थी समुदाय अपने विद्या मंदिर की सफाई व सजावट में लग गए है व अपने आराध्य देवी माँ सरस्वती देवी की पूजा अर्चना की तैयारी में जुट गए हैं।सुर संगीत के मर्मज्ञ संगीतकार ने इस साज व बाध्य यंत्रों से कान में मधुर रस धोलने वाली तान का रियाज करने व्यस्त हो गए है। बंसत के इस वास्तविक स्पर्श से साधकों का अंतरण जैसे कैसे अछूता रह सकता है।साधक के संकल्प में सुमन खिले हैं।साधना की सुगंध बिखर रही है।

अपने सद्गुरु के सानिध्य में साधक वह द्वारा साधनों के द्वारा सातों स्वर आस्था श्रद्धा समर्पण त्याग करुणा प्रेम से अपना मधुर बरसने लगा है।सरगम ने साधकों के अंतःकरण में इस कदर छेड़ी है कि आज संपूर्ण वातावरण सुंगधित व सुवासित हो गया है।यहाँ तक की अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश का अर्थात ज्ञान की देवी भाव विभोर होकर स्वयं ज्ञान की देवी विभोर व भाव विहल हो कर स्वयं माँ सरस्वती महाप्रज्ञा की ऋतम्भरा बनकर समस्त मानव को वरदान देते हुए

 साधकों के अतंस में अस्तित्व स्वयं अवतरित हो गया है।बसंत की उपस्थिति में सदा मौन रहने वाला पर्वतराज हिमालय भी आज अपने आप को अछूत नहीं रख पाया है।मधुर व्यारों से हिमखंड के सम्राट को मुखर कर दिया है।उससे गुजरने वाले वायु के बातरस में बहने वाली जलधारा में मिठास घोल दी है। मधुमास के रंग में मधुमती हो गई है।देवदार और चीर-चिनार के अनेक जड़ी बूटियाँ पेड़ पौधों में अपने गुणकारी औषधियो में अभयदान का अमृत रस घोलने शुरू कर दिया है।

हिमालय के कन्दराओं में साधना रत ऋषि मुनियों ने अपना मौन तोड़कर मुखर हो गया है।हिमखंड से अच्छादित कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले स्वयं सतगुरु अपने संतानों को साधना द्वारा अंतरकरण के द्वार खोलने की चाबी में सौंप कर उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं।अपने मलयाचल पर्वत की अमृतवेला के ब्यार के संग संदेश भेजा है कि यह साधना की बेला है।आत्म जागरण का सही समय है। आध्यात्मिक क्रांति के माध्यम से नर से नारायण बनने की बेला है।

 जो जागृति है,साधना रत है, लेकिन जो इस सांसारिक उलझनों के जाल अ में उलझे हुए वह यह नहीं जानते हुए कि बाहर दिखने वाला स्वर्ण कलश में भड़कीले चमकीलें पश्चिमी सभ्यता ने हमारे समाज में शनै शनै विष घोल रहा है।इस पश्चिमी सभ्यता के समर्थक ने हमारी प्राचीन सभ्यता संस्कृति मिट्टी के कलश में छिपे हुए अमृत की अनदेखी की है।आज आप सभी इसके आदी हम हो गए हैं। विगत दिनों कोरोना काल व प्राकृतिक विपदा रूपी दुष्परिणाम हमारे समाने है।ऐसे में स्वतः प्रेम पथिक बसंत ने आज गौतम,नानक,

कृष्ण -मीरा कबीर,राम के भूमि में निवासी से यह कहने को मजबूर हो गया कि - तुमने तो मुझे भुला दिया रे - -- भुला दिया,मुझे तुमने तो भुला दिया - - - मुझे भुला दिया रे - - -लेकिन मैं तुझे कैसे भूल सकता हुँ।मुझे तो इस देवभूमि से प्रगाढ़ प्रेम है आपके पूर्वजों से वेशर्त प्रेम है उन्होंने मुझे किसी नुमाईश की वस्तु बनाकर नहीं रखा है।बाजार में बिक्री हेतु कभी नहीं उतारा है। उन्होंने तो अपने दिल में हमेशा हमें जगह वह सम्मान दिया है।मैं भी इसके लिए प्रत्येक वर्ष अपने चाहने वालों के लिए आता रहता हुँ।

सो मै आ गया हुँ,आगे भी मै आता रहुँगा।आपके जीवन में आनंद का रस घोलकर अमृत पान कराने हेतु,आपको हंसाने के लिए पसंद का एक बार फिर दलहीज पर आ गया।बसंत ने आपको हंसा दिया रे,हँसा दिया रे जीवन जीना सिखा दिया रे सिखा दिया।प्रेम अनुराग और उल्लास के इस पर्व में विवेक बुद्धि को सबल बना रहे।प्रकृति के इस यौवन स्वरूप इस मधुमास में हमारा तन मन भी एक सुहानी माधुरी मादकता से खनक उठा है,छलक उठाया है।

पश्चिमी सभ्यता के इस युग के प्रत्येक व्यक्ति अभावों व कुंठाओ से भरे जीवन जीने में उल्लास भरने के ऋतु मास में ऋतु राज वंसत आया है। जिसका सभी स्वागत करें।अपने जीवन के सुःखद व उल्लासपूर्ण जीयें।यही बंसत का सुःखद संदेश है। ऋतुराज बंसत के शुभ आगमन की मधुर बेला में जीवन के सभी रंग व सुगंध को अपने अनंतस में उतारे । इसकी नाम जिन्दगी है।

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