लव यू म्हारी जान राजस्थानी सिनेमा के लिए नये दौर की मिशाल हो सकती है - हनु रोज

० आशा पटेल ० 
जयपुर ।  जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल-जिफ में सिनेमा के कई रंग देखने को मिल रहे हैं. दर्शक फिल्मों को देखकर गदगद हो उठते हैं. उनके मुहं से निकल रहा है, क्या लाजवाब फ़िल्में, क्या शानदार सलेक्शन है फिल्मों का. जीवन की खोज की एक क्लोजर के रूप में है हर फिल्म. आपको बता दें. इस बार जिफ में केवल टॉप और बेस्ट अवार्डेड फ़िल्में दिखाई जा रही है. तेलुगू फिल्म बिम्बिसारा को देखर UFO के जनरल मैनेजर नितिन शर्मा कहते हैं इसके सामने तो बाहुबली भी फीकी है.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त तमिल फिल्म डायरेक्टर सीनू रामासामी द्वारा निर्देशित तमिल फिल्म "कन्ने कलाईमाने" एक नहीं कई बातें समाज के सामने रखती है. जीवन के कई पहलू पेश करती है. पत्रकारिता की छात्रा ऐश्वर्या कहती है खुद को बदल देने वाली, अंदर से झकझोर देने वाली, मनोरंजन से भरपूर फिल्मों का लुत्फ़ उठाना है तो जयपुर में जिफ में आइये .लव यु म्हारी जान राजस्थानी सिनेमा के लिए नया जोश, नया आगोश और नये दौर की मिसाल बन गया -हनुरोज
जिफ के तीसरे दिन मनोज कुमार पांडेय द्वारा निर्मित राजस्थानी फ़िल्म “लव यू म्हारी जान” की स्क्रीनिंग की गई। फ़िल्म में अंकित भारद्वाज, गरिमा शर्मा, लक्षित झाँझी, कश्मीरा वरसा लीड रोल में है।ग़ौरतलब है कि अंकित भारद्वाज जिफ में 2013 में वॉलंटियर के तौर पर आये थे। वे उस वक़्त बिट्स से फ़िल्म मेकिंग पढ़ रहे थे। उस वक़्त भी वे “डिज़ायर्स ऑफ़ हर्ट्स” में काम कर चुके थे। फ़िल्म जगत को और गहराई से समझने के लिए वे जिफ आये थे।
“लव यू म्हारी जान” की बात करें तो कहानी की शुरुआत राजस्थान के गाँव में संयुक्त परिवार से होती है।फ़िल्म में दो जेनरेशन को दिखाया गया है। रोज़गार की बेहतर तलाश में बेटा (किशन) शहर का रुख़ कर लेता है। किशन के दो बेटे कार्तिक(लक्षित) और उदय(अंकित) होते हैं जो स्वभाव से एकदम पूरब और पश्चिम होते हैं। उदय जितना सीधा और पढ़ने में अच्छा है, कार्तिक उतना ही ऊधमी और बदमाश है।साथ में उदय-कार्तिक के बूढ़े दादा-दादी की परिस्थितियों को बताया है, जब किशन उन्हें पैसे भेजना बंद कर देता है तो उनकी स्थिति बिगड़ती जाती है।फ़िल्म में उदय(अंकित) और सुधा(गरिमा) की और कार्तिक(लक्षित)-डॉली(कश्मीरा) की लव स्टोरी दिखायी है।
फ़िल्म के गाने भी एक से बढ़कर एक हैं। “चंद्र-गोरजा” गाने में राजस्थानी संस्कृति को, कलबेलियों को दिखाया है। लव स्टोरीज़ के अनुसार गानों की थीम भी अलग है। कहानी में हंसी-मज़ाक़, सोशल मुद्दे, प्रेम को अलग तरीक़े से दिखाया है।उदय के जीवन में संघर्ष के चलते उसकी, सुधा के साथ सगाई भी टूट जाती है। फ़िल्म में मुंबई से एक लड़की डॉली(कश्मीरा), कार्तिक , उदय के कॉलेज में पढ़ने आती है, जो राजस्थानियों से चिढ़ती है। फिर कार्तिक और डॉली में नोंक-झोंक चलती रहती है।कहानी में कॉलेज में राजनीति और पैसों की हेराफेरी को बताया है। 

कार्तिक हमेशा करप्शन, पेपर लीक, दंगा-फ़साद में फँसा रहता है। जबकि उदय अपनी मेहनत से कॉलेज टॉप करता है।कहानी के ज़रिए शिक्षा व्यवस्था, प्रशासन पर सवाल खड़ा किया जाता है कि वाक़ई में शिक्षा के तौर पर क्या सिखाया जा रहा है? उदय जी तोड़ मेहनत करके 90% लाता है, लेकिन रिश्वत न दे पाने के कारण उसको नौकरी नहीं मिल पाती। कार्तिक उदय के सिद्धांतवादी होने का मज़ाक़ उड़ाता है और ख़ुद पॉलिटिक्स में नेतागीरी करके गाड़ी ले लेता है।इधर किशन( पिता) का भी रवैया उदय के लिए बदल जाता है।

कहानी में पलायन के मुद्दे को बखूबी ढंग से उठाया है।दो पीढ़ी में अंतर से शुरू हुई फ़िल्म दो पीढ़ियों के अंतर की समाप्ति पर ख़त्म होती है। जिफ वॉलिन्टियर से बॉलीवुड और लव यु म्हारी जान तक का सफर तय किया है अंकित भारद्वाज ने. लव यु म्हारी जान की लीड कास्ट में है अंकित. दर्शक इस फिल्म को देखने के बाद बाहर निकले तो उनकी आँखों में आंसू थे. ये फिल्म राजस्थानी सिनेमा के लिए टर्निंग पॉइंट का काम कर रही है. एआई और सिनेमा उद्योग: चुनौतियाँ - ओपन डायलॉग

रेडिओ को अखबार, अखबार को टीवी इसी तरह सिनेमा हॉल को ओटीटी और रोजगार को कंप्यूटर खत्म कर देगा, ये धरणाएँ सही साबित नहीं हुई इसी तरह ए आई (आर्टीफिशियल इंटेलिजेंसी - कृत्रिम बुद्दिमत्ता) क्या सिनेमा के लिए ख़तरा है, ये सोच रखना सही नहीं है. ए आई क्या फिल्मों के स्क्रीनप्ले खुद लिख देगी ये भी सही नहीं है. एक सिद्धांत है कला, अनुकरण का अनुकरण है तो ए आई इस अनुकरण के अनुकरण का भी अनुकरण है. कुछ उदाहरण देखते है. लेखन को लेकर ए आई के साथ. ए आई भी एक समानांतर खोज या साधन है जो मानव विकास में सहयोगी भूमिका निभा सकता है.जिफ के तीसरे दिन का आग़ाज़ एआई(आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) पर चर्चा हुई ।

जिफ के फाउंडर हनु रोज़ कहते हैं कि दर्शन में प्लेटो, सुकरात कला के बारे में बताते हैं की कला, अनुकरण का अनुकरण है, और एआई उसका भी अनुकरण है। जो भी अविष्कार हो चुके हैं, उनके अणु पहले से ही मौजूद थे। चाहे वह परमाणु बम हो या एआई।टेक्नोलॉजी का कवर्जेंस और डेवलपमेंट बढ़ता जा रहा है। एआई आने वाले समय में ख़तरा नहीं है, हनुरोज बताते हैं कि पहले जब अख़बार के बाद रेडियो आया तो हम उसे ख़तरा समझने लगे, लेकिन आज सभी संचार के डिजिटल साधन, नोन डिजिटल साधन उपयोगी है। ये सभी पैरेलल चलेंगे , जैसे कोट के उपर हम मफलर, टोपी आदि लगाते चले जाते हैं।

हमें फ्रीडम ऑफ़ स्पीच और फ़्रीडम ऑफ़ शेयर को समझने की ज़रूरत है। एआई की अपनी क्षमताएँ, सीमाएँ हैं। एआई पर्सनल कमेंट नहीं करता है। आइनॉक्स और जिफ के साझेदारी पर एआई से लिखने पर कहतें हैं कि अगर ये डेटा गूगल पर उपलब्ध है तो एआई उसका एप्लीकेशन फ़ॉर्मेट बना कर दे देगा।
जिफ के ऑर्गनाइज़र कमिटी के मेम्बर और यूएफओ के जनरल मैनेजर नितिन शर्मा क़हते हैं कि पूरे एनिमेशन्स का टच एआई पर है। टेक्नोलॉजी को आप रोक नहीं सकते इसे आना ही होगा।एआई में यूजर ही मेकर होता है। प्रोम्प्ट इंजीनियरिंग के माध्यम से कमांड दिये जा सकते हैं और उसे और एडवांस्ड बनाया जा सकता है।

जैसा कमांड देंगे वैसे ही एआई बुद्धिमान होता जायेगा।एआई को आजकल लव लेटर लिखने के लिये भी शशि थरूर और शेक्स्पियर के फ़ॉर्मेट के कमांड दिये जाते हैं। नितिन शर्मा ने एथिकल एआई पर समापन करते हुए कहा की नेगेटिव चीज़ो का असर जल्दी होता है। वास्तविक और ग़ैर वास्तविक कंटेंट में अंतर कैसे किया जाये प्रश्न पर नीतेश क़हते है कि वॉटरमार्क के ज़रिए पहचान की जा सकती है। पुष्कर फेयर जैसी फ़िल्में समाज में कला , संस्कृति को बढ़ावा देती हैं-

जिफ के 16 वें संस्मरण में देश विदेश की फिल्मों की स्क्रीनिंग रखी गई जिसमें आग और पानी एक मेडिकल बैकग्राऊंड की कविता रखी गई, जो समाज में जागरूकता लाती है। पुष्कर फेयर जैसी फ़िल्में समाज में कला , संस्कृति को बढ़ावा देती हैं। - वैभव पाठक, छत्तीसगढ़ से आया फिल्म लवर.

टिप्पणियाँ

The_Titikshu ने कहा…
Sir these poster is of a different film "KHEER" directed by Titikshu Raj, whicb is not even mentioned in the entire article.

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