स्मृति आयोजन : यादों की खिड़कियों से सुरेश सलिल : पंद्रह सौ लोकार्पित पुस्तकों के कक्ष का उद्घाटन

० ओम पीयूष ० 
उन्नाव : विश्वंभर दयालु त्रिपाठी राजकीय जिला पुस्तकालय के सभागार में एक भव्य समारोह का आयोजन हुआ। विगत बाइस फरवरी को कवि, लेखक, अनुवादक, संपादक, समीक्षक सुरेश सलिल की प्रथम पुण्य तिथि पर स्मरण सुरेश सलिल आयोजन के साथ उनकी तकरीबन पंद्रह सौ लोकार्पित पुतकों के कक्ष का उद्घाटन हुआ। इस कार्यक्रम का आयोजन रंग सस्था "अनुष्ठान" ने किया था।
 रंग सस्था के आयोजक द्वय मृदुला पंडित और विजय पंडित की विशिष्ट भागीदारी और उनके सहयोगी सदस्यों की सक्रिय भूमिका ने आयोजन को बेहद शानदार - जानदार बना दिया। कार्यक्रम स्मरण सुरेश सलिल की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार - कवि डॉ महेश चंद्र मिश्र विधु, मुख्य अतिथि उप जिलाधिकारी, उन्नाव नम्रता सिंह, विशिष्ट अतिथियों प्रोफेसर डॉ. रश्मि दीक्षित, लखनऊ, इतिहासकार लेखक सुधीर विद्यार्थी बरेली, पूर्व विशेष कार्याधिकारी पुस्तकालय प्रकोष्ठ, उत्तर प्रदेश शासन डॉ मृदुला पंडित लखनऊ, 
सलिल जी के सुपुत्र नाट्य आलोचक संगम पांडेय जनकवि कमल किशोर श्रमिक कानपुर कवयित्री एक्टिविस्ट रेणु शुक्ला पूर्व प्राचार्य, साहित्यकार डॉ रामनरेश, लेखक नाट्य निर्देशक विजय पंडित मुंबई एवम अन्य  जनों की उपस्थिति में सलिल जी के व्यक्तिगत संकलन से लोकर्पित तकरीबन पंद्रह सौ पुस्तकों के कक्ष का मुख्य अतिथि उप जिलाधिकारी नम्रता सिंह ने फीता काटकर उद्घाटन किया। संगम पांडेय को भी इसमें उन्होंने सहभागी बनाया  उप जिलाधिकारी नम्रता सिंह ने कक्ष में प्रबंधित लोकार्पित पुस्तकों का सरसरी निगाह से अवलोकन किया । सधे कदमों से कदम ताल मिलाते मृदुला पंडित ने उन्हें शिष्ट विशिष्ट शैली में संदर्भित जानकारी प्रदान करने अहम भूमिका निभाई। लोकार्पित पुस्तकों के कक्ष के उद्घाटन अवलोकन के बाद
स्मरण सुरेश सलिल कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। सर्वप्रथम माँ सरस्वती की प्रतिमा, जनपद के प्रथम सांसद जननायक विश्वंभर दयालु त्रिपाठी और सलिल जी के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन किया गया। तत्पश्चात समस्त वक्ताओं और अतिथियों को अंग वस्त्र और प्रतीक चिन्ह देकर पुस्तकालय की ओर से स्वागत किया गया। सलिल जी के सबसे छोटे अनुज ज्ञानेंद्र पांडेय को भी अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया। ओम पीयूष द्वारा संपादित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित सलिल के लेखों के संकलन वाली पुस्तक "यादों की खिड़कियाँ" का विमोचन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।
राधाकृष्ण इंटर कालेज की छात्राओं साक्षी और श्रद्धा ने वाणी वंदना और स्वागत गान की मनोरम प्रस्तुति से सभागार में उपस्थित सभी जनों का दिल जीत लिया। डॉ मृदुला पंडित ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि सलिल जी जिला पुस्तकालय के हर पुस्तक महोत्सव में पधार कर उन्नाव के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते थे और चाहते थे कि उन्नाव के साहित्य व संस्कृतिकर्मी विश्व साहित्य से परिचित हों और उनकी लेखनी और भी धारदार हो । 
उन्नाव जनपद के ग्राम गंगादासपुर में जन्मे सुरेश सलिल के जीवन का सफर बहुत ऊंची नीची टेढ़ी-मेढ़ी डगर से होकर गुजरा और बिना लाग लपेट वाली अक्खड़ता उनके स्वभाव में थी, किन्तु अपनों के प्रति उनका आत्मीय भाव प्रगाढ़ था। 22 फरवरी 2023 को उन्होंने भौतिक रूप से दुनिया को अलविदा किया ।उन्होंने साहित्य के लिए विशद रूप से कार्य किया।भविष्य के लिए बहुत सी योजनाएँ भी उन्होंने बनायीं , लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण सब टलती रहीं और सब अधूरी रह गयीं। सलिल जी के सुपुत्र संगम पाण्डेय जो स्वयं नाटयालोचक व संस्कृति कर्मी हैं ने सलिल जी के व्यक्तिगत संग्रह की दुर्लभ व महत्वपूर्ण पुस्तकें देकर सराहनीय मिसाल पेश की है।
सलिल जी मुझसे हमेशा कहते थे कि तुम और विजय जी आ कर इन पुस्तकों को ले जाओं पर वह सुयोग उस समय न बन सका.आज उनके न होने पर उनकी पुस्तकें हमें उनकी उपस्थिति और उनके आशीर्वाद का बोध करा रहीं हैं।आज सलिल जी भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं,पर अपनी रचनात्मकता, पुस्तकों व विचारों के साथ वे हमेशा हम लोगों के साथ रहेंगे।
विजय पंडित ने सलिल जी द्वारा विश्व की अलग-अलग भाषाओं की रचनाओं के हिंदी अनुवाद और उनके बहुमुखी प्रतिभा को लेकर बात करते हुए उन्हें स्मरण किया और साथ ही उनके साथ बिताये हए क्षणों की भी चर्चा की। उन्नाव के प्रति प्रेम के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्नाव सदा उनकी स्मृतियों में रहता था उन्होंने उन्हें एक ‘नास्तिक संत’ की संज्ञा देते हुए उन्हें स्मरण किया।
सलिल जी के सुपुत्र संगम पांडेय ने अपने पिता की साहित्यिक और जीवन यात्रा को संस्मरणों के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी एक अलग यूटोपियन दुनिया निर्मित की थी जबकि मैं स्वयं यथार्थवादी हूँ। इस कारण उनसे वैचारिक मतभेद भी होते थे । हाँ, उनकी जिज्ञासाएँ और जानकारी धर्म, दर्शन, इतिहास, लोक, प्राचीन और पाश्चात्य साहित्य सब में समान रूप से थी।भारतीय स्वाधीनता आंदोलन और क्रांतिकारियों पर गहन शोध करने वाले सुप्रसिद्ध लेखक इतिहासकार सुधीर विद्यार्थी ने उनके साथ बिताये हुए पल को याद किया
और किस तरह क्रांतिकरियों के जीवन के लेखन में उनकी मदद मिलती थी, उसको उद्धृत किया.जब भी किसी तथ्य की प्रामाणिकता की बात होती थी, मैं सलिल जी से संपर्क करता था.उन्होंने कहा कि उन्नाव आना जनपदीय अस्मिता की पक्षधरता को बल देना भी है. सलिल जी के साथ बैठ कर हम दोनों ने बहुत सी योजनाये बनायीं .कुछ पूरी हुईं कुछ पूरी नहीं हुईं। लेकिन अब भी बहुत से कार्य हैं जिसे हम पूरा करेंगे. जनकवि कमल किशोर श्रमिक ने युवावस्था के दिनों में उनके साथ मिल कर किये गए संघर्ष को याद करते हुए उनकी कृतियों और रचनाओं पर प्रकाश डाला।

प्रोफेसर रश्मि दीक्षित ने बड़े ही मार्मिक उद्बोधन में कहा कि पुस्तकालय हमारे पिता जी के नाम से स्थापित हुआ और हमारे आवास पर सलिल जी का अक्सर आगमन हम सभी को सदैव भाव विभोर करता था। डॉ दीक्षित ने सलिल जी द्वारा उनको लिखे हुए एक पत्र के कुछ मार्मिक अंशों का पाठ किया ।.जिसमें उन्होंने एक कविता के माध्यम से उन्नाव को याद किया था।इस क्रम में कवयित्री रेनू शुक्ल ने कहा कि विश्व कविता को हिंदी पाठकों से परिचित कराने का बड़ा श्रेय सलिल जी को जाता है।

रेड क्रॉस उप सभापति डॉ मनीष सेंगर ने भी सलिल जी के अत्यंत सक्रिय साहित्यिक योगदान और उनकी स्मृतियों को करीने से संरक्षित करने में जिला पुस्तकालय की महती भूमिका पर वकतव्य दिया। कार्यक्रम अध्यक्ष कवि डॉ. विधु ने जिला पुस्तकालय और सलिल जी के कई दशकों से रिश्ते की पुष्टि करते हुए उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व की मुखर होकर प्रशंसा की और कहा कि एक विश्वस्तरीय अनुवादक व लेखक के रूप में वे सदैव साहित्य जगत में दीप्तमान रहेंगे।

इस अवसर पर लेखक और पूर्व कमिश्नर(चकबंदी)रवि कुमार ‘रवि’ द्वारा उन्नाव के गजट में दर्ज़ प्राचीन इतिहास का हिंदी रूपांतरण कर उसमें बहुत से गूढ़ तथ्यों को स्वयं शोध कर जोड़ने के बाद लिखी गयी पुस्तक ‘उन्नाव का इतिहास’ का विमोचन भी मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। अतिथियों सहित पुस्तकालय को पिछले कई दशकों से सहयोग देने वाले सक्रिय सहयोगियों श्रीमती सुरभि श्रीवास्तव, डॉ सुधीर शुक्ला, डॉ मनीष सिंह सेंगर, रंगकर्मी जब्बार अकरम,डॉ रेनू शुक्ला, नीता, मोहित को ‘विभूति सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

 मुख्य अतिथि नम्रता सिंह ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि मुझे सुख की अनुभूति हो रही है कि मैं प्रथम ‘स्मरण सुरेश सलिल’ आयोजन की साक्षी हो रही हूँ। सलिल जी की पुस्तकों से यह पुस्तकालय और भी समृद्ध होगा और आने वाली पीढियां उनसे प्रेरणा लेंगी। मैं आप सभी को विश्वास दिलाती हूँ कि मैं पुस्तकालय में स्वयं समय-समय पर आकर यहां की व्यवस्थाओं में अपना योगदान दूंगी।

पूर्व प्राचार्य व साहित्यकार डॉ. राम नरेश ने अपने अनूठे संचालन में उन्नाव जनपद के साहित्य इतिहास के विस्तार से चर्चा की।उन्होंने सलिल जी के जीवन वृत्त पर अपने उद्गार रखते हुए कहा कि वे हमारे जनपद ही नहीं बल्कि पूरे देश की विरासत हैं। अंत में पुस्तकालयाध्यक्षा सुरभि श्रीवास्तव ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया और हर वर्ष २२ फरवरी को ‘सुरेश सलिल स्मरण’ का आयोजन हो इसका संकल्प भी लिया गया। दिल्ली से पधारीं सलिल की पुत्र वधू पूर्व संपादक-‘वनिता’,मीना पाण्डेय व उनकी पुत्री- सहित विशाल संख्या में युवा छात्र,व वरेण्य साहित्यिक मनीषी व गणमान्य जन इस महत्व पूर्ण आयोजन के साक्षी बने।

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