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चित्रा बनर्जी दिवाकरुणी ने लिखी मूर्ति युगल सुधा -नारायण मूर्ति की प्रेम कथा

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० आशा पटेल ०  जयपुर । सबसे बड़े साहित्यिक शो’, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन 1 से 5 फरवरी को होने जा रहा है| ये फेस्टिवल 5 दिन तक साहित्य, संस्कृति और कला के रंगों से रंगा रहता है| फेस्टिवल के 17वें संस्करण में देश-विदेश के 250 से अधिक लेखक, चिन्तक और वक्ता हिस्सा लेंगे| फेस्टिवल का आयोजन जयपुर में होगा| क्ताओं में लोकप्रिय उपन्यासकार चित्रा बनर्जी दिवाकरुणी का भी है| उन्होंने सुधा मूर्ति और नारायण मूर्ति की शादी और शादी से पहले के शुरुआती दिनों को अपनी किताब में दर्ज किया है| मूर्ति युगल की ये प्रेम कहानी वास्तव में इनफ़ोसिस की स्थापना की कहानी भी है  ये इकलौती ऐसी किताब है, जहाँ खुद मूर्ति युगल ने हिस्सा लिया है, लेखिका के साथ बैठकर लम्बे साक्षात्कार दिए और अपने जिंदगी को बयां किया है| किताब की कई हस्तियों ने प्रशंसा की है, जिनमें शामिल हैं इंद्रा नूयी (‘शानदार... थोड़ी बिजनेस, तो थोड़ी रोमांस की कहानी’), मुकेश अंबानी (‘खूबसूरत’), ट्विंकल खन्ना (‘जबरदस्त बयानगी’) और सचिन तेंदुलकर (‘प्रेरक’)| चित्रा बनर्जी दिवाकरुणी कहती हैं “इस किताब को लिखना मेरे लिए बहुत दिलचस्प अनुभव रहा|  मैं खुशनस

विद्या गुप्ता की कहानी संग्रह 'मैं हस्ताक्षर हूं' का लोकार्पण

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० योगेश भट्ट ०  दुर्ग छत्तीसगढ़ ।  विद्या गुप्ता की कहानियां ताकतवर स्त्रियों की कहानियां हैं, जिसमें पठनीयता के तत्व मौजूद हैं। इन कहानियों में संवेदनशील, पारिवारिक मूल्यों को सहेजने वाली सांस्कृतिक रूप से प्रतिबद्ध स्त्रियों के दर्शन होते हैं।  आईआईएमसी के पूर्व महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी का कहना है कि "छत्तीसगढ़ कथा सृजन के लिए सबसे उर्वर प्रदेश है, क्योंकि जैसी विविधता और लोक अनुभव यहां मिलेंगे वह अन्यत्र दुर्लभ हैं।"  यहां कथाकार श्रीमती विद्या गुप्ता के कथा संग्रह 'मैं हस्ताक्षर हूं' के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे।  कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार रवि श्रीवास्तव ने की। आयोजन में कथाकार सतीश जायसवाल, परदेशी राम वर्मा,विनोद साव, आलोचक डा.सियाराम शर्मा, गुलवीर सिंह भाटिया विशेष रूप से उपस्थित रहे। प्रो.द्विवेदी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पं. माधवराव सप्रे द्वारा लिखित 'एक टोकरी भर मिट्टी' हिंदी की पहली कहानी है। इस तरह छत्तीसगढ़ हिंदी कहानी की पुण्यभूमि भी है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में ग्रामीण जीवन भी है, वन्य जीवन भी

नया वर्ष नया हर्ष

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०  डॉ० वहाब ०  नया वर्ष नया हर्ष  नई उमंग नव उल्लास नया उत्साह नव तरंग मन में दूर हो दुःख दूर वेदनाएं सब श्रम से प्राप्त सुख हो मुख पर न हो मुखौटा मन मानव का शुद्ध हो पर निर्भर नहीं आत्म निर्भर हो जनस्वार्थ को त्यागे उपकार परोपकार परमार्थ जानें ईश्वर में हो आस्था छल कपट का भाव न हो मनुष्यता का अभाव न हो हिंसा को कर नकार अहिंसा को अपनाएं बना रहे जन मन यह भाव अक्षुण्ण हो सांप्रदायिक सद्भाव कभी न घेरे निराशा घन आलोडित हों आशाएं मन ।

शिवाजी के किलों की कहानी बताती है ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’

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पुस्तक : हिन्दवी स्वराज्य दर्शन   लेखक : लोकेन्द्र सिंह मूल्य : 250 रुपये (पेपरबैक) प्रकाशक : सर्वत्र , मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल समीक्षक : प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी लेखक लोकेन्द्र सिंह बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कवि, कहानीकार, स्तम्भलेखक होने के साथ ही यात्रा लेखन में भी उनका दखल है। घुमक्कड़ी उनका स्वभाव है। वे जहाँ भी जाते हैं, उस स्थान के अपने अनुभवों के साथ ही उसके ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व से सबको परिचित कराने का प्रयत्न भी वे अपने यात्रा संस्मरणों से करते हैं। अभी हाल ही उनकी एक पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ मंजुल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज के किलों के भ्रमण पर आधारित है।  हालांकि, यह एक यात्रा वृत्तांत है लेकिन मेरी दृष्टि में इसे केवल यात्रा वृत्तांत तक सीमित करना उचित नहीं होगा। यह पुस्तक शिवाजी महाराज के किलों की यात्रा से तो परिचित कराती ही है, उससे कहीं अधिक यह उनके द्वारा स्थापित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ या ‘हिन्दू साम्राज्य’ के दर्शन से भी परिचित कराती है। हम सब जानते हैं कि जिस वक्त शिवाजी महाराज ने स्वराज्य का स्वप्न देखा था, उस समय भारत के

90 के दशक तक स्त्रियाँ घर-संसार से बंधी अपने कैरियर के प्रति उदासीन दुधारी तलवार पर चलती थीं : मीता दास

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०  मुज़फ्फर सिद्दीकी ०  भोपाल : अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच का अभिनव आयोजन, कहानी संवाद ‘दो कहानी दो समीक्षक’ गूगल मीट पर आयोजित किया गया। इस मौके पर संस्था की संस्थापक अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि " एक सफलता के कई पहलू हैं, मापदंड हैं। आज के विज्ञापन युग में स्वयं को प्रूफ करते हुए बार - बार, हर जगह दस्तक देते हुए लेखक खुद ज़माने की जद्दो-जहद से गुज़रता है। कई लेखक तो उनकी रचनाओं का मूल्यांकन हुए बिना ही इस दुनिया से बिदा हो जाते हैं, मुक्तिबोध। उनकी मृत्यु के बाद ही उनकी रचनाओं का मूल्यांकन हुआ। लेखक का मुख्य उद्देश्य पाठक के दिल पर दस्तक देना ही होना चाहिए। " अध्यक्षता कर रहीं वरिष्ठ साहित्यकार मीता दास ने पढ़ी गई दोनों कहानियों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि दोनों कहानियों को सचेत कहानियों के अंतर्गत रखा जा सकता है। महिमा श्रीवास्तव वर्मा की कहानी 'निर्णय', आज के दौर के नारी सचेतन कैरियर की तरफ आकर्षित करती है। 90 के दशक तक स्त्रियाँ घर - संसार से बंधी अपने कैरियर के प्रति उदासीन या दबाव सहन करते हुए दुधारी तलवार पर चलती थीं। जया आनंद की कहानी &

पाठक को नकार कर कहानी आगे नहीं बढ़ सकती

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० योगेश भट्ट ०  नई दिल्ली. पाठक के अधिकार ही लेखक का कर्त्तव्य होता है। लेखक को हमेशा पाठक के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। पाठक जिन विषयों के बारे में जानना चाहता है यदि लेखक उस पर नहीं लिखेंगे तो उन्हें पाठक भी नहीं मिलेंगे। पाठक का सबसे बड़ा अधिकार यही है कि उसे जो किताब पसन्द ना हो, उसे ना खरीदें। लेकिन पाठकों की अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती है। यह बातें  राजकमल प्रकाशन समूह की विचार-बैठकी की मासिक शृंखला ‘सभा’ में वक्ताओं ने कही। ‘सभा’ की आयोजित परिचर्चा का विषय ‘पाठक के अधिकार’ पर केन्द्रित रहा। इंडिया हैबिटैट सेंटर के गुलमोहर हॉल में आयोजित इस परिचर्चा में लेखक ममता कालिया, सम्पादक रवि सिंह, कार्टूनिस्ट राजेन्द्र धोड़पकर, अनुवादक जितेन्द्र कुमार बतौर वक्ता उपस्थित रहे। वहीं ‘सभा’ का संचालन आलोचक मृत्युंजय ने किया। विषय प्रवेश करते हुए मृत्युंजय ने कहा,  “यह ऐसा विषय है जिस पर बहस के अनेक पहलू हैं। पहले पाठकों के पास अपनी बात पहुँचाने या फीडबैक देने के लिए विकल्प नहीं थे। अब सोशल मीडिया के आने से एक खास किस्म का लोकतंत्रीकरण हुआ है। इससे कई तरह के नए पाठक सामने आए हैं। अब

गढ़वाल के बेड़ा समाज पर पुस्तक का हुआ लोकार्पण

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० योगेश भट्ट ०  नयी दिल्ली - इंदिरा गांधी राष्टीय कला केंद्र द्वारा गढ़वाल का बेड़ा समाज पर एक किताब व डोक्यूमेंट्री बनाई गई है जिसका लेखन किया है मनोज चंदोला व उनकी टीम द्वारा गढ़वाल के सुदूर छेत्रो से लुप्त होती बेड़ा समाज के इतिहास को फिर से उनको संजोने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए कई महीनों की रिसर्च के बाद यह कार्य पूरा हो सका । जिसका विमोचन इंदिरा गाँधी राष्टीय कला केंद्र दिल्ली मे हुआ। विमोचन में मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत रहे ।   इस अवसर पर प्रोफेसर के अनिल कुमार व डॉ सचितानन्द जोशी व लेखक मनोज चंदोला सहित समाज के गणमान्य लोग मौजूद रहे। लेखक मनोज चंदोला ने इस अवसर पर बेड़ा समाज पर प्रकाश डाला व उम्मीद जताई कि समाज व देश इस विधा को जान पायेगा ओर फिर से इसे संजोने का कार्य करेगा।कार्यक्रम में समाज के बुद्विजीवी वर्ग के साथ समाजसेवी,पत्रकार व कला साहित्य से जुड़े लोग भी पहुचे ओर सभी ने इस पहल का स्वागत करते हुए लेखक को बधाईयां दी।

चर्चित लेखिका संतोष श्रीवास्तव को अंतर्राष्ट्रीय सेतु उत्‍कृष्‍टता सम्मान

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० संवाददाता द्वारा ०  भोपाल - चर्चित लेखिका संतोष श्रीवास्तव अंतर्राष्ट्रीय सेतु उत्‍कृष्‍टता सम्मान 2023 से सम्मानित , पिट्सबर्ग अमेरिका की द्विभाषी साहित्यिक पत्रिका ने भारत की संतोष श्रीवास्तव को उनके उत्कृष्ट लेखन के लिए पुरस्कृत किया है। यह जानकारी पत्रिका के संपादक अनुराग शर्मा ने दी। आठवें दशक की बहुचर्चित लेखिका संतोष श्रीवास्तव का इस वर्ष प्रकाशित उपन्यास "कैथरीन एवं नागा साधुओं की रहस्यमई दुनिया" बेस्ट सेलर की लिस्ट में है। उनकी अब तक आत्मकथा सहित विभिन्न विधाओं में 23 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। तथा देश-विदेश के 23 पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं । उनके लेखन पर भारत के सात विश्वविद्यालय से शोध कार्य एवं एमफिल हुए हैं। संतोष जी की रचनाएं चेन्नई के SRM विश्वविद्यालय में ba के कोर्स में , महाराष्ट्र बोर्ड के 11वीं के कोर्स में,CBSE बोर्ड के सातवीं एवं 12वीं के कोर्स में ,तथा गोवा ,महाराष्ट्र,कर्नाटक राज्य के 32 महाविद्यालयों के सरल हिंदी पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती है। राही रैंकिंग द्वारा वर्ष 2014 से अब तक विश्व के 100 सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेखकों में नाम सहित वर्ल

साहित्य अकादमी द्वारा चरणजीत और दिनेश शर्मा की पुस्तकों का लोकार्पण

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० योगेश भट्ट ०  नई दिल्ली : साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित किए जा रहे 'पुस्तकायन' में 'पुस्तक लोकार्पण एवं परिचर्चा-कार्यक्रम' आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार तथा हिंदी साहित्य सम्मेलन दिल्ली की अध्यक्ष इंदिरा मोहन, अध्यक्ष के रूप में श्री वेंकटेश्वर कॉलेज के हिंदी विभाग से वरिष्ठ समालोचक एवं शिक्षाविद् डाॅ. मुकुल शर्मा और बतौर विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध कवि गजेन्द्र सोलंकी, वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार और समीक्षक विष्णु शर्मा, वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं पत्रकार नीरज बधवार,  अद्विक प्रकाशन के संस्थापक अशोक गुप्ता द्वारा वरिष्ठ गज़ल़कार चरणजीत 'चरण' के दो गजल संग्रह 'मुनासिब' और 'कश्मकश' तथा कैथल के वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश शर्मा 'दिनेश' की शोधपरक पुस्तक 'साहित्य के आईने में कैथल जनपद', साक्षात्कार संकलन 'कुछ कही, कुछ अनकही', काव्य संग्रह 'आ अब लौट चलें' का लोकार्पण हुआ।  मुख्य अतिथि इंदिरा मोहन ने कहा कि 'साहित्य के आईने में कैथल जनपद' में पुराण है, वेदांत है और इतिहास भी है। पुस्तक के हर

पुस्तक "मैं हूं चौकीदार" का लोकार्पण

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० योगेश भट्ट ०  नयी दिल्ली -  डॉ. चंद्रभानु का रचना संसार व्यंग्य विधा की अद्भुत मिसाल है। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के हरिशंकर परसाई सम्मान से सम्मानित चंद्र भानु शर्मा ने अनेकों पुस्तकों की रचना की है। जिनमें वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, आर्थिक विषयों पर उनकी लेखनी की तेज धार ने निष्पक्ष व्यंग्य लेखन किया है।  व्यंग्य पुस्तक मैं हूं चौकीदार का लोकार्पण स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में डॉ. दयानंद वत्स भारतीय, विनोद कुमार बब्बर, सर्वेश शर्मा, हीरालाल बाल्यान, ओमप्रकाश सपरा, राकेश शर्मा, बृजेश शर्मा के सान्निध्य में मुख्य अतिथि पश्चिमी दिल्ली से लोकसभा सांसद प्रवेश साहिब सिंह और समारोह की अध्यक्षता कर रहे पत्रकार पद्मश्री राम बहादुर राय ने अपने कर कमलों द्वारा किया।  दयानंद वत्स भारतीय ने मुख्य अतिथि सांसद प्रवेश साहिब सिंह का शाल, श्रीफल और पुष्प भेंट कर स्वागत किया।   सांसद प्रवेश साहिब सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि उन्हें इस बात की बेहद खुशी है कि पुस्तक के लेखक डॉ.चंद्र भानु शर्मा उनके पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में विकासपुरी के निवासी हैं। पश्चिमी दिल्ली क

डॉ. बीआरसी की पुस्तक 'द सर्केडियन डॉक्टर' का विमोचन

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० योगेश भट्ट ०  नई दिल्ली : हिम्स के संस्थापक, आचार्य मनीष ने आयुर्वेद की अविश्वसनीय उपचार क्षमता के बारे में शंकाओं को दूर करते हुए और आशा जगाते हुए, कैंसर, लिवर फेल, किडनी फेल और थैलेसीमिया जैसे जटिल रोगों के इलाज में आयुर्वेद की प्रभावशीलता को सामने रखा।   डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी ने अपनी पुस्तक - द सर्केडियन डॉक्टर का अनावरण किया, जो समग्र स्वास्थ्य के लिए नज़रिया पेश करती है।  कार्यक्रम ने न केवल आयुर्वेद की जीत का जश्न मनाया, बल्कि स्वास्थ्य और जीवन शक्ति के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशने वालों को आशा की एक किरण भी दिखाई। इसके साथ ही वहां आपात स्थिति से निपटने और दर्द प्रबंधन के लिए वासो-स्टिम्यूलेशन थेरेपी भी पेश की गई।  "द सर्केडियन डॉक्टर सिर्फ एक किताब नहीं है; यह हमारे स्वास्थ्य के प्रति दृष्टिकोण में एक आदर्श बदलाव है। अपने शरीर की प्राकृतिक लय को समझ कर और उसके साथ तालमेल बिठाकर, हम पुरानी बीमारियों को रोकने और उलटने के लिए खुद को सशक्त बना सकते हैं। द सर्केडियन डॉक्टर किताब बॉडी क्लॉक के महत्व पर प्रकाश डालती है, जो स्वास्थ्य को नियंत्रित करने वाली एक समयबद्ध मानवीय घटना ह

नागरिकता, महामारी और राजसत्ता’ विषय पर परिचर्चा

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० योगेश भट्ट ०  नई दिल्ली. 'रचयिता' और 'नेहरू डायलॉग्स' के संयुक्त तत्वावधान में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित प्रवीण कुमार के उपन्यास अमर देसवा के सन्दर्भ में ‘नागरिकता, महामारी और राजसत्ता’ विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। इस परिचर्चा में डॉ. रविकांत, डॉ. नरेश गोस्वामी, डॉ. धनंजय राय, डॉ. कमल नयन चौबे और डॉ. मुन्ना कुमार पांडेय बतौर वक्ता उपस्थित रहे।
 कार्यक्रम में प्रो.अपूर्वानंद ने कहा कि ‘नेहरू अगर राजनेता न होते तो एक बड़े लेखक होते।’ पुस्तक पर बोलते हुए डॉ. राय ने कहा कि ‘अमर देसवा’ के परिप्रेक्ष्य में कोरोना महामारी के दौरान फैली हुई दशाओं को रेखांकित किया गया है। इस उपन्यास में नागरिकता के हक में आवाज उठाई गई है।  डॉ. कमल नयन चौबे ने कहा कि यह उपन्यास जब पढ़ा तब कोरोना महामारी खत्म हो रही थी। इस उपन्यास में लेखक प्रवीण इस वकील साहब की भूमिका में है।  कमल नयन चौबे कहते हैं कि जातियों की राजनीति बहुत होती है। मैला आंचल का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ‘अमर देसवा’ उपन्यास उसी कड़ी में जाना जाएगा। इस उपन्यास में हमारे वर्तमान समय के चरित्रों को प्रवीण कुमार ने उठाय

कहानी में देह भाषा का बहुत महत्त्व होता है"- ब्रजेश कानूनगो

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०  मुज़फ्फर सिद्दीकी ०  भोपाल - अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच का अभिनव आयोजन, कहानी संवाद ‘दो कहानी दो समीक्षक’, गूगल मीट पर आयोजित किया गया। इस अवसर पर संस्था की संस्थापक अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि“कहानी का उद्देश्य पाठकों को भ्रमित करना नहीं होना चाहिए।” आपने कहानी के तत्व पर विस्तार से चर्चा की और नए लेखकों को वर्तमान में लिखी जा रही कहानी की पत्र - शैली और संवाद - शैली के बारे में समझाया। मुख्य अतिथि शकुंतला मित्तल ने कल्पना मनोरमा की कहानी "गुनिता की गुड़िया" की गहन और सारगर्भित समीक्षा करते हुए कहा कि "कहानी कार ने बोल्ड अभिव्यक्ति शालीनता के शब्दों को उढ़ा कर की है।भ्रूण हत्या का अभिशाप हमारे समाज को वर्षों से डस रहा है।"अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार ब्रजेश कानूनगो ने अपने सम्बोधन में चेखव के कोट को उद्धरित किया। "जब मैं लिखता हूँ तो मुझे पूरा भरोसा होता है कि पाठक उन तत्त्वों को जोड़ लेगा जो अव्यक्त हैं। " आपने दोनों कहानियों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि लेखक की खूबी ये होना चाहिए कि कहानी को इस तरह पाठक को पहुंचाए कि वह पठनीय बन स

हरीश बिम्ब के नहीं भाव के कवि हैं

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० योगेश भट्ट ०  नई दिल्ली। ‘समकालीन कविता के दौर में भी हरीश अरोड़ा ने नयी कविता की परंपरा को बरकरार रखा है। उनकी कविताएँ अभिधात्मक शैली मे लिखी कविताएँ हैं लेकिन ये कविताएँ आयरनी में हैं।‘ ये विचार हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ आलोचक पवन माथुर ने अद्विक प्रकाशन, किआन फाउंडेशन और अरुंधति भारतीय ज्ञान परंपरा, पी जी डी ए वी कॉलेज (सांध्य) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वरिष्ठ साहित्य  हरीश अरोड़ा के दो कविता संग्रहों ‘कैनवास से बाहर झाँकती लड़की’ और ‘तटस्थ नहीं मैं’ तथा कोयल बिस्वास द्वारा किए गए इनके अंग्रेजी अनुवाद के लोकार्पण के अवसर पर रखे। उन्होंने यह भी कहा कि हरीश बिम्ब के नहीं भाव के कवि हैं। भले ही इनकी कविता में बिम्ब मिलते हैं लेकिन इनके दोनों संग्रहों की रचनाओं में भावुकता अधिक दिखाई देती है। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ गीतकार रमाकांत शर्मा उद्भ्रांत ने कहा कि हरीश ने पैंतीस वर्षों में अपनी कविता यात्रा में जो रचा है उसमें तत्कालीन समाज की आवाज मौजूद है। वे समाज को बेहद करीब से देखते हैं और कविता में ढालते हैं। कविता के साथ-साथ आलोचना और अन्य साहित्यिक विधाओं मे

इंडिया हैबिटेट सेंटर में भारतीय भाषाओं का जलसा ‘समन्वय’

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० योगेश भट्ट ०  नई दिल्ली. इंडिया हैबिटेट सेंटर में भारतीय भाषाओं का जलसा ‘ आईएचसी समन्वय’ कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। 24 से 26 नवंबर तक चलने वाले इस कार्यक्रम में भाषा, संस्कृति और सामयिक महत्व के अनेक विषयों पर चर्चा-परिचर्चा होगी। इंडिया हैबिटेट सेंटर द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में राजकमल प्रकाशन समूह बतौर सहभागी सम्मिलित हो रहा है।  कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों के दौरान पुष्पेश पन्त, पुरुषोत्तम अग्रवाल, अजय सोडानी, जैरी पिंटो, जोराम यालाम नाबाम, अनुज लुगुन, पार्वती तिर्की, राही सोरेन, मृत्युंजय समेत कई लेखक मौजूद रहेंगे।

फ़िज़ाओं में ज़हर घोला आज मुस्कान रूठी

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०  सुषमा भंडारी ०  हवाओं में ज़हर घोला फ़िज़ाओं में ज़हर घोला आज मुस्कान रूठी है खुशी मानव ने लूटी है हमारे पास सब प्रश्नों के हल मौजूद हैं लेकिन अभी भी रौन्द कर धरती ख़ज़ाना कर रहे खाली------ कभी काटे यहाँ पर्वत कभी रोका है पानी को खड़ी की हैं इमारत पर लूट खेतों की रानी को गाँव के गाँव खाली हो गये , उजडे पशु - पक्षी हुए हैं सब यहाँ विकसित मगर संस्कार से खाली------- कार खाने गगन चुम्बी बदरिया हो गई धूमिल केमिकल बन के नागिन सा गया नदियों में जैसे मिल बचें अब किस तरह से आज इस फैले ज़हर से हम हुई घर घर में बीमारी , हुये हैं घर के घर खाली----- आई दीवाली जगमग फिर बंदिशे साथ लाई है कुसूर अपना हमारा है अब! नियमों में भलाई है पटाखे -बम्ब- विस्फोटक हैं जीवन के लिए खतरा आओ मन से जला दें हम ईर्ष्या -द्वेष-बदहाली और हंसकर कहें सब से सभी को शुभ हो दीवाली---

खुशियां कितनी लाई दीवाली

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०  नेहा  ०  देखो देखो आई दीवाली , खुशियां कितनी लाई दीवाली । छोड़ो ईर्षा , छोड़ो तकरार , दिल मे रखो बस प्यार प्यार। दीपक का है पर्व ये श्री राम की जीत का निष्कर्ष है ये।  मिठाइयां हमे है बहुत है खानी, सभी परेशानियों को है भगानी। बस कर लो तुम इतना उपकार पटाखे जलाना थोड़ा कम इस बार , नहीं तो हो जाएगा जीना दुश्वार। । ०  कक्षा 8 एफ बिंदापुर कन्या विद्यालय नयी दिल्ली ।

संगीत और कला को बच्चों की भाषा से जोड़ने की जरूरत

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० योगेश भट्ट ०  नई दिल्ली. बच्चों को सुनने के लिए धैर्य की जरूरत होती है, जिसकी आजकल हमारे पास बहुत कमी है। बच्चे जब किसी के साथ संवाद करते हैं तो वह उससे अपनी शब्दावली को बना रहे होते हैं। बच्चों का भाषा जगत बहुत तार्किक और सृजनात्मक होता है। हमें भाषा के साथ खेलने के लिए, नए प्रयोग करने के लिए बच्चों का हौसला बढ़ाना चाहिए। यह बातें राजकमल प्रकाशन समूह की विचार-बैठकी 'सभा' 'भाषा में बच्चों की जगह' विषय पर परिचर्चा के दौरान वक्ताओं ने कही। इस परिचर्चा में शिक्षाविद् मुकुल प्रियदर्शिनी, सम्पादक मनीषा चौधरी, रूम टू रीड के डायरेक्टर शक्तिब्रत सेन और अंकुर के सम्पादकीय सलाहकार जोज़फ़ मथाई से लेखक-अध्यापक सुदीप्ति ने संवाद किया।  सत्यानन्द निरुपम ने कहा कि आमतौर पर जो चर्चाएं होती है वह अक्सर राजनीति से शुरू होती है और राजनीति पर ही खत्म हो जाती है। हमने इस परिपाटी से हटकर सोचते हुए परिचर्चा का विषय भाषा में बच्चों की जगह पर केन्द्रित रखा है।  सुदीप्ति ने कहा, “भाषा ने ही मनुष्य को अन्य सभी प्राणियों से अलग बनाया है।” विषय प्रवेश करते हुए उन्होंने कहा, "बच्चों को सुनने के

'भारतीय नवजागरण का स्त्री-पक्ष' विषय पर गोष्ठी आयोजित

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० योगेश भट्ट ०  नयी दिल्ली -उनका जीवन अति नाटकीय, तूफानों और उथल-पुथल से भरा हुआ था। 19वीं सदी, जो कि एक पुरुष प्रधान सदी थी, वह उसमें अपने पांव जमा पाने में सफल रहीं। जिस तरह का वह समाज था, उस समय उनके चरित्र पर कई लाँछन लगे होंगे। उनके इसी निर्भीक व्यक्तिव ने मुझे प्रभावित किया।" औरतों के हक़ में न केवल बौद्धिक हस्तक्षेप किया अपितु समाज सेवा का वह क्षेत्र चुना जो किसी अकेली स्त्री के लिए उस समय लगभग असंभव माना जाता था।  उनके द्वारा विधवा महिलाओं के आश्रम की स्थापना, उनके पुनर्विवाह तथा स्वावलंबन की पहल और यूरोप तथा अमेरिका में जाकर भारतीय महिलाओं के लिए समर्थन जुटाने का उनका भगीरथ प्रयास अक्सर धर्म परिवर्तन के उनके निर्णय की आलोचना की आड़ में छिपा दिया गया। यह किताब उस दौर की उन अनेक महिलाओं के बारे में भी ज़रूरी सूचनाएँ उपलब्ध कराती है जिन्हें आधुनिक इतिहास लेखन करते हुए अक्सर छोड़ दिया जाता है  इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से नारीवादी लेखक-आलोचक सुजाता की किताब 'विकल विद्रोहिणी : पंडिता रमाबाई' के सन्दर्भ में 'भारतीय नवजागरण का स्त्री-पक्ष'

नागा साधुओं के विषय में आम धारणाएं और भ्रम को तोड़ता उत्कृष्ट उपन्यास

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०  मुज़फ्फर सिद्दीकी ०  भोपाल "बचपन से ही मेरे मन में आकांक्षा थी कि मैं नागा साधुओं पर काम करूं। नागा साधु हर एक पल मेरे मन में जिज्ञासा जगाते थे किंतु उनके विषय में न तो मुझे आंकड़े मिल रहे थे और ना कोई संदर्भ ग्रंथ या पुस्तक। जब जनवरी 2012 में प्रयागराज में 55 दिनों का महाकुंभ का मेला भरा। इस मेले में जाने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। नागाओं के विभिन्न अखाड़ों में से जूना अखाड़े के महंत से मेरा साक्षात्कार हुआ। उन्होंने मुझे नागा पंथ की संपूर्ण जानकारी दी। इस प्रत्यक्ष जानकारी के आधार पर ही मैंने यह उपन्यास लिखा। न केवल नागाओं के विभिन्न अखाड़े बल्कि अघोरी पंथ, शक्तिपीठ का भी इसमें जानकारी युक्त वर्णन किया है।" उक्त विचार संतोष श्रीवास्तव ने हिंदी भवन के महादेवी वर्मा सभागार में "उपन्यास लेखन का उद्देश्य एवं नागा साधु बनने की प्रक्रिया पर" एक प्रश्न के उत्तर में व्यक्त किये। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मंत्री संचालक तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष कैलाश चंद्र पंत ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि "साहित्यकार एक संवेदन शील व्यक्ति होता है । यही कारण है क