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कविता // एकाकी जीवन जीना सीखें

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विजय सिंह बिष्ट एकाकी जीवन जीना सीखें। जीवन साथी कब बिछुड़ जाये, पग पग पर मौत खड़ी है, जाने कब बुलावा आ जाये। उगता सूरज लिए लालिमा, सांझ ढले धीरे ढल जाए। अपना भी उदय हुआ है, कब मौत गले लग जाये। एकाकी जीवन जीना सीखें, जीवन पथ पर कौन भला , किस राह पर कहां रुक जाये। खिलता धीरे पूनम चांद कभी, अमावास में पूरा छिप जाये। नदिया बहती पर्वत शिखर से, घुलते मिलते सागर में मिल जाते। अपना भी जीवन बहता पानी, जाने कहां तिल तिल मर जाये। खिलते पत्ते नव योवन लेकर, जाने कब पतझड़ में गिर जाये। भव सागर में जीवन नाव खड़ी है।  ईश्वर जाने डूबे या पार लग जाये। साथ उड़ते पंछी नील गगन में, उड़ते थकते कहीं बिछुड़ न पाये। हम भी साथी जीवन भर के, पता नहीं कौन दिशा कब भटक जाये। एकाकी जीवन जीना सीखें, कब जोड़ा छूटे या रह जाये। यह श्रृष्टि का खेल अनोखा, कोई आये कोई जाए। जीवन जीना एकाकी सीखें, हंसों का जोड़ा कब छूट जाये।          

कविता // कोरोना और काव्य

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● डॉ• मुक्ता ● कोरोना और काव्य बन गये एक-दूसरे के पर्याय ऑन-लाइन गोष्ठियों का सिलसिला चल निकला नहीं समझ पाता मन क्यों मानव रहता विकल करने को अपने उद्गार व्यक्त शायद!लॉक-डाउन में नहीं उसे कोई काम काव्य-गोष्ठियों में वह व्यस्त रहता सुबहोशाम पगले!यह स्वर्णिम अवसर नहीं लौट कर आयेगा दोबारा तू बचपन में लौट कर बच्चों-संग मान-मनुहार मिटा ग़िले-शिक़वे तज माया-मोह के बंधन उठ राग-द्वेष से ऊपर थाम इन लम्हों को कर खुद से ख़ुद की मुलाक़ात कर उसकी हर पल इबादत मिटा अहं, नमन कर प्रभु की रज़ा को  अपनी रज़ा समझ  घर में रह,खत्म कर द्वंद्व और सुक़ून से जी अपनों संग 

शब्दाक्षर द्वारा ऑनलाइन ‘जश्न-ए-आजादी

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Dehradun दिवंगत आत्माओं की स्मृति में वृक्षारोपण

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Uttarakhand रोज़गार के अनेक अवसर पैदा किये जा सकते हैं

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जिस्म में तू जान तू ही है,प्रार्थनाओं में तू अज़ान तू ही है

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जयपुर में भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालात

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गंगा जमनी तहज़ीब मैं मानूं ,पाखंड का खंडन करती हूँ

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Uttrakhand लंगूरों के आतंक से फसल,फलों की खेती बर्बाद

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.....लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना

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बिहार बाढ़ पीड़ितों ने सुनाई अपनी दर्द भरी दास्तान

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बिहार बाढ़ राहत शिविर में बुनियादी सुविधाऐं तक नहीं मिल रही

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पुस्तकालय समिति एंवम सद्भावना मंच द्वारा दिवंगत आत्माओं की स्मृति में वृक्षारोपण

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देहरादून - राष्ट्रीय महा पर्व स्वतंत्रता दिवस के सुअवसर पर पुस्तकालय समिति एवं सद्भावना मंच कौलागढ़ दीनदयाल नगर द्वारा तमशा नदी के किनारे सघन वृक्षारोपण का कार्य दिवंगत आत्माओं की स्मृति में सम्पन्न किया गया। यह कार्य मातृशक्ति के मंत्रोंचारण के साथ किया गया। प्रत्येक वृक्ष पर दिवंगत व्यक्ति की नाम पट्टिका अंकित की गई है। इस समस्त कार्य का श्रेय संगठन के प्रमुख एस0 एस0 बिष्ट के सफल प्रयास और प्ररेणा फलानुभूत से किया गया। भविष्य में पौधों का संरक्षण निराई गुड़ाई का कार्य संगठन के सदस्यों पर निर्भर होगा। इस सराहनीय कार्य के लिए जन जाग्रति तथा हरित क्रान्ति के रूप में साकारात्मक कार्य का प्ररेणा श्रोत है। यह स्वतंत्रता दिवस के दिन वृक्षारोपण शहीदों और पूर्ववर्ती दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांज्जलि है। प्रथम चरण में 96 वृक्ष लगाये गए तथा दुसरे चरण में 60 वृक्षारोपण कर टोटल 156 वृक्षपुर्वजो की स्मृति में लगाकर एक नया अध्याय बनाया है