बिना विपक्ष के पक्ष का लिया गया निर्णय महत्वहीन है
पक्ष और विपक्ष की चेतना शक्ति एक जैसी होनी चाहिए,तर्क सार्थक हो उसको कुतर्क में नहीं लेना चाहिए। पक्ष और विपक्ष प्रकृति के अभिन्न अंश हैं। एक सिक्के दो पहलू।इसका स्पष्ट अर्थ है बिना विपक्ष के पक्ष का लिया गया निर्णय महत्व हीन है क्योंकि उसमें आलोचना,समालोचना और प्रत्यालोचना का कोई स्थान नहीं था। यह एक बिशुद्ध प्रक्रिया है।इसी लिए संसद के दो सदन हैं जहां सार्वभौमिक रूप से किसी भी विषय की शुद्धता के साथ गहनता से अध्ययन किया जाता है। आज ऐसा दिखाई नहीं देता। क्योंकि पक्ष अपने को शासक और विपक्ष दंमित समझने लगता है। यह मात्र अहंकार और अहंकारी होना सावित करता है उदाहरण के लिए हमारे मुंह में दंत पंक्ति भी विपक्षी बन जाते हैं, तो वह काट खाते हैं नुकसान किसका हुआ,हम खा नहीं पाते फिर शरीर कमजोर तो होगा। यही हमारे समाज में भी जातिवाद ऊंच नीच आरक्षण पार्टी और चाटुकारिता के संमोहन में समाज को काटता जा रहा है। इतिहास की नजर में आज देश अनपढ़ लोगों का नहीं जहां एक ने जो कहा सबने भेड़ चाल में मान लिया। आज पढ़े-लिखे विद्वान वैज्ञानिक,इंन्जीनियर सैनिक , किसान और समाज का उच्चस्तरीय नागरिक निवास करता है।