कविता // कभी कभी मन भर आता है
विजय सिंह बिष्ट कभी कभी मन भर आता है गांवों से इन बाजारों से, कुटिया से इन दीवारों से, गलियों से इन चौराहों से टूटा टूटा सा नाता है। कभी कभी मन भर आता है। चलते चलते जीवन पथ में, देख गरीबी की उलझन में, लक्ष्य विहीन से जीवन पथ में। कभी कभी पग रुक जाता है, कभी कभी मन भर आता है।। अल्प अतुल बैभव को पाकर, क्षृगार मनमोहक सजाकर, नव लय नव ताल सुनाकर, मन सरगम बन जाता है कभी कभी मन मयूर बन जाता है।। जब घोर निराशा हो मन में, रातों की नींद उड़ जाये आंखों में, स्वपनिल सा जीवन लगता है, बुझा बुझा सा दीपक लगता है।। कभी कभी मन भर आता है।