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वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में हिन्दी कार्यशाला संपन्न

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० लाल बिहारी लाल ०  नई दिल्ली । वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के हिन्दी अनुभाग द्वारा उद्योग भवन के सभागार में हिन्दी कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस कार्यशाला के मार्ग दर्शक के रुप में सहायक निदेशक विवेक सक्सेना, राष्ट्रीय फैशन प्राद्योगिक संस्थान,नई दिल्ली थे। जो सरकारी दफ्तरों में हिन्दी के संवर्धन हेतु जानकारी दिया । इस कार्यशाला में दो दर्जन से अधिक अधिकारी एवं कर्मचारियों ने भाग लिया।  जिसमें नरेश कुमार मित्तल, सौरभ, विवेक, सुशील भल्लाक, लाल बिहारी गुप्ता् , गोपाल कुमार वर्मा, दिनेश कुमार , ललित कुमार बंसीवाल. रॉ विनायक, आर.एस. मीना, सोमवीर, धरमवीर. सुश्री पूजा कुमारी, राजीव कुमार, अनिल कुमार महतो. प्रवेश गुप्तार, गीता वर्मा, चन्द्रवभूषण मौर्य, सीमा, दुर्वेश कुमार सिंह, पंकज धीमान, कमल कान्तम शर्मा, पूजा सिंह, अंशु गुप्ताज बी.एल. मीना, राजीव रंजन रॉय., मो. फरमान, शकील अहमद आदि ने भाग लिया।

आपातकाल का काला अघ्याय के 48 वर्ष

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०  विनोद तकियावाला ०  नयी दिल्ली = देश में आपातकाल लगे 48 साल पूरे हो चुके हैं।आज हम आपात काल लगाने के पीछे पूरी कहानी जानने की कोशिस करेगें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आपातकाल क्यूं लगानी पड़ी । देश को आपातकाल जैसे कोठर र्निणय लेने की क्या मजबुरी थी। क्या इंदिरा जैसे नेत्री के पास इसके अलावे कोई रास्ता नही बचा था।या इसत्रे पीछे कोई वाह्य शक्ति का दबाब था या कोई उनकी पार्टी के बाह्य या आन्तरिक व्यक्तित्व का गलत सलाह या दबाब था।इस बार में किसी निर्णय पर पहुँचे इसके लिए आपातकाल के घटनाक्रम पर सरसरी निगाह डालते हुए यह समझने की कोशिस करते है।भारत के राजनीति के इतिहास का 26 जून 1975 की काली सुबह थी। आसमान में सूर्य की किरणे चमक रही थी लेकिन भारतीय राजनीति के इतिहास का सूर्य को आज ग्रहण लग गया है। भारतीय राजनीति के पंडितयो के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें है। सूचना व संचार के माध्यम इतने विकसित नही थे।उस समय सुचना के श्रोत के रूप में दैनिक समाचार पत्र व आकाशवाणी के कुछ सीमित संख्या में रेडियो स्टेशन थे।आज प्रातःकाल मेंऑल इंडिया रेडियो पर जो सबसे पहली आवाज आई थी वो देश की प्रधानमंत्र

पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ इंडिया PRSI की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन

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० अशोक चतुर्वेदी ०  नयी दिल्ली - Indian Institute of Mass Communication IIMC, दिल्ली में हुई पीआरएसआई की नेशनल काउंसिल की वार्षिक आम सभा और चुनाव में राष्ट्रीय कार्यकारिणी का निर्वाचन किया गया। सर्वसम्मति से डा अजीत पाठक (दिल्ली) राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र मेहता (वाराणसी) उपाध्यक्ष (उत्तर),श्रीमती अनु मजुमदार (गुवाहाटी) उपाध्यक्ष (पूर्व), सत्येन्द्र प्रसाद सिंह, उपाध्यक्ष (पश्चिम) (नागपुर), यू एस सरमा (वाईजैग), उपाध्यक्ष (दक्षिण) और दिलीप चौहान कोषाध्यक्ष चुने गए हैं।

दो जुलाई को कोलकाता भारतीय शास्त्रीय कला और संगीत का गवाह बनेगा

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० संवाददाता द्वारा ०  Kolkata, संगीत और कला का एकमात्र रूप मल्हार (मूसलधार बारिश) के मौसम का एक भव्य उत्सव, हिंदुस्तानी वोकल्स में राग मल्हार और एक शानदार कथक की प्रस्तुति, जो गरजते मानसून के मौसम की चरम और प्रचंड प्रकृति को पकड़ सकता है। कथक की प्रस्तुति पद्म विभूषण पं. बिरजू महाराज जी की पोती शिंजिनी कुलकर्णी करेंगी। हिन्दुस्तानी गायन बनारस घराने की 13वीं पीढ़ी के वंशज पं.दीपक कुमार मिश्रा व पं. प्रकाश मिश्र द्वारा गाया जाएगा। इस कार्यक्रम का आयोजन १९७० में स्थापित संगीत विद्यापीठ, के पं. बूंदी महाराज के द्वारा किया जा रहा है। अपनी स्थापना के बाद से ही विद्यापीठ शो और गहन कार्यशालाओं के माध्यम से भारतीय संगीत के इस प्राचीन और दिव्य रूप की खेती और पोषण करता रहा है। दो घंटे का शास्त्रीय कार्यक्रम जीडी बिड़ला सभागार में आयोजित किया जाएगा, इसका उद्देश्य, जिन्होंने इस कला में महारत हासिल की है, और हर रोज दशकों तक अपने जीवन के के प्रत्येक पल को इस कला को समर्पित किया है, उनके द्वारा लोगों को सबसे मनोरम, उत्तेजक और प्राणपोषक उच्च गति वाले भारतीय शास्त्रीय प्रदर्शनों को दिखाकर,उनके बीच भारती

बद्रीनाथ पुनर्विकास परियोजना के लिए संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता

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० चंडी प्रसाद भट्ट ०  श्री बद्रीनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण एवं सौंदर्यीकरण के कारण पंच धाराओं में से दो धाराओं, कुर्म धारा एवं प्रहलाद धारा का पानी छीज हो गया है। यह भी बताया जा रहा है कि, दो बुल्डोजर(पोक्लैंड) मंदीर के निचले भाग में खुदाई कर रहे हैं। इन कार्यों के दुष्प्रभावों को लेकर कई आशंकाएं जन्म ले रही हैं। मैंने विगत 9 दशकों से इस क्षेत्र की अप्रितम, नैसर्गिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहर को अनुभव किया है। इसमें हो रही अंधाधुंध छेड़ छाड़ विगत कुछ समय से मेरे लिए अतीव कष्टप्रद रही है। तीन दिसंबर 2022 को मुझे श्री बद्रीनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्यों के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाले भाष्कर खुल्वे से भेंट करने का अवसर मिला। मैंने उन्हें विशेषज्ञों की राय लेकर निर्माण कार्य को आगे बड़ाने की सलाह दी थी। इसी संदर्भ में मैंने 07जनवरी 2023 को प्रधानमंत्री मोदी एवं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर अपनी चिंताओं से अवगत कराया। मुझे 05 मई 2023 को एस.एम.एस द्वारा सूचित किया गया कि, शिकायत का निराकरण कर दिया गया है। बाद में मुझे यह ज्ञात हुआ कि मेरे

थाई-भारत गौरव सम्मान से सम्मानित हुए प्रो. रवि शर्मा 'मधुप'

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० योगेश भट्ट ०  नई दिल्ली | देश के प्रतिष्ठित महाविद्यालय श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रवि शर्मा ‘मधुप’ थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में आयोजित एक समारोह में थाई-भारत गौरव सम्मान से अलंकृत किए गए | हिंदी के जाने-माने साहित्यकार एवं समर्पित शिक्षक प्रोफेसर ‘मधुप’ को उनके सुदीर्घ हिंदी शिक्षण एवं साहित्य-सृजन हेतु यह सम्मान प्रदान किया गया | थाईलैंड हिंदी परिषद् के अध्यक्ष सुशील धनुका, थाई-भारत कल्चरल लॉज (बैंकॉक), के सचिव राकेश माटा, जी.आई.एस. बैंकॉक की विभागाध्यक्ष एवं कवयित्री शिखा रस्तोगी, टोक्यो (जापान) की पत्रिका ‘हिंदी की गूँज’ की संपादक रमा पूर्णिमा शर्मा, मारवाड़ी युवा मंच कुआलालंपुर (मलेशिया) की संरक्षक अंजु पुरोहित, केंद्रीय हिंदी संस्थान में नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग के अध्यक्ष प्रो. उमापति दीक्षित, साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन के अध्यक्ष मनोज कुमार, सचिव डॉ. सुमन रानी की गरिमामयी उपस्थिति में सम्मान समारोह संपन्न हुआ | थाई-भारत कल्चरल लॉज, थाईलैंड हिंदी परिषद एवं साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन के संयुक्त तत्त्वावधान में थाईलैंड में दो दिवसीय अंत

संस्कृत उपन्यास 'मानवी' बाल साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

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० योगेश भट्ट ०  नयी दिल्ली - साहित्य अकादमी द्वारा संस्कृत बाल साहित्य पुरस्कार उपन्यासकार आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी को उनके संस्कृत बाल उपन्यास 'मानवी 'के लिए दिया है । इसमें नवोन्मेषी बिम्बों से बाल मन के लिए पक्षियों आदि के द्वारा पर्यावरण के महत्त्व का बड़ा ही मनभावन ढंग से खाका़ खींचा गया है जो आम तौर पर आज के बाल साहित्य पर प्रौढ मानसिकता के दवाब के आरोपों को सर्वथा अपाकृत करता मालूम पड़ता है । यद्यपि यह रचना पक्षी विशेषज्ञ पद्मश्री सलीम अली को समर्पित है । लेकिन इस उपन्यास में जो सलीम नाम का चरित्र है ,उसे पद्मश्री अली से कुछ भी लेना देना नहीं है ।   जाने माने समीक्षक तथा इस उपन्यास के लेखक प्रो त्रिपाठी  ने इसमें न ही कोई अपनी भूमिका लिखी है और न ही किसी से इस पुस्तक के बारे में कोई अनुशंसा लिखवाई है । इससे साफ़ है कि कथानक की सफलता या असफलता का निर्णय पूरा का पूरा पाठक पर ही छोड़ दिया है जो अमूमन आज के पुस्तकों में ऐसा नहीं देखा जा रहा है ।इसका कारण यह भी लगता है कि लेखक अब मान बैठे हैं कि दिग्गजों की पुस्तक अनुशंसा से ही उनकी किताबों की तूती अधिक बोली जाती