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निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के संरक्षक कौन लोग हैं.? 

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निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के बचाव के लिए  उठाए गए कदम ने चौंकाया है और गम्भीर सवाल को जन्म दिया है. अतः सरकार इस तथ्य की जांच CBI, IB या NIA से करवाए कि निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के संरक्षक कौन लोग हैं, उनका एजेंडा क्या है...?  ज्ञात रहे कि पूरा देश इस तथ्य से भलीभांति परिचित है कि निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारी एक निजी बस के ड्राईवर कंडक्टर खलासी क्लीनर का काम करते थे. अतः उनकी अर्थिक पृष्ठभूमि/स्थिति का आंकलन आसानी से किया जा सकता है. पूरा देश इस कटु सत्य से भी भलीभांति परिचित हैं कि भारतीय अदालतों में मुकदमेबाजी कितनी महंगी है, विशेषकर जब यह मुक़दमेबाजी हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचती है तो खर्च की सारी सीमाएं तोड़ देती है. यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के बचाव के लिए की जा रहीं अभूतपूर्व कोशिशों के कारण एक गम्भीर सवाल पिछले कई महीनों से मेरे मन को मथ रहा था. लेकिन उन घृणित हत्यारों के बचाव के लिए आज उठाए गए कदम ने तो मुझे बुरी तरह चौंकाया है. आज मैं तब स्तब्ध हो गया जब यह समाचार मैंने पढ़ा कि निर्भया के हत्

क्षेत्रीय शिक्षक पुरस्कार वितरण समारोह

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शिमला से फागु और कुफरी का खूबसूरत नज़ारा

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क्षेत्रीय शिक्षक पुरस्कार 17 अध्यापकों,4 सर्वोत्तम विद्यालय तथा 4 सर्वोत्तम चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को सम्मानित किया

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नयी दिल्ली - क्षेत्रीय शिक्षक पुरस्कार वितरण समारोह एक नये अंदाज में महापौर द्वारा पश्चिमी क्षेत्र के 17 अध्यापकों , 4 सर्वोत्तम विद्यालय तथा 4 सर्वोत्तम चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को सिविक सेन्टर में सम्मानित किया गया। इस मौके पर सुनीता कांगड़ा महापौर,डॉ नंदिनी शर्मा अध्यक्ष शिक्षा समिति,सदस्य शिक्षा समिति यशपाल आर्य,अतिरिक्त आयुक्त शिक्षा श्री राहुल गर्ग ,पूर्व अध्यक्ष शिक्षा समिति सुनील सहदेव सहित मुख्यालय के सभी डी डी ई डॉ सुरेन्द्र भांडोरिया, मुक्तमय मण्डल, कंवलजीत, श्रीमती पुष्पा, श्रीमती गीता व पश्चिमी क्षेत्र के डी डी ई रिषिपाल राणा व सभी अधिकारी अनीता डागर,महेश चंद्रा,प्रागी लाल ,सुभाष चंद सुषमा भंडारी उपस्थित रहे I पश्चिमी क्षेत्र की इस वर्ष की उपलब्धियों से सम्बन्धित तीन मिनिट की सक्षिप्त विडियो क्लिप भी दिखाई गई। महापौर सहित सभी गणमान्यों ने मैडल,प्रतीक चिन्ह, प्रमाण-पत्र देकर पुरस्कृत किया व सभी 17 पुरस्कृत शिक्षकों+ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को 5000/-रूपये की राशि उनके खाते में पुरस्कार स्वरूप देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर सुप्रीति चावला द्वारा मंच संचालन सुंदर और गरिमापू

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

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सुरेखा शर्मा  (लेखिका/समीक्षक) जब भी गांधी जी का नाम लिया जाता है तो सोहन लाल द्विवेदी जी की ये पंक्तियाँ स्वतः ही स्मरण हो आती हैं----- आँसू बिखराते बीतेंगी जलती जीवन की घड़ियां बिना चढ़ाए शीश, नहीं टूटेंगी माँ की कड़ियाँ। आइंस्टाइन ने गांधी जी के लिए कहा था---- आने वाली पीढ़ियाँ शायद ही विश्वास करेंगी कि इस तरह का हाड-माँस का कोई  व्यक्ति  इस धरती पर चला था।वास्तव में  ही साबरमती के संत ने वो कर दिखाया जिसे आज सम्पूर्ण विश्व नमन करता है। "एकाएक चल पड़ा आत्मा का पिंजर,मूर्ति की ठठरी।  नाक पर चश्मा, हाथ में डंडा, कंधे पर बोरा ,हाथ में बच्चा ।''आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए । आजादी कोई वस्तु नहीं है जो उपहार में मिल जाए।उसे हासिल करना पड़ता है ,और हासिल करने के लिए लड़ना पड़ता है। ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी भी एक लंबी लड़ाई के बाद मिली थी ।इसकी शुरुआत हुई थी गाँधी जी के चंपारण  आन्दोलन से,जिसके अब सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं।आज यह कल्पना करना मुश्किल है कि चंपारण की लड़ाई कैसी थी।यह अहिंसक आन्दोलन था। अब तक का एक ऐसा आन्दोलन जिनमें न जलूस निकले,न लाठी चार्ज न गोली बारी हुई, न

जिसे प्यार नहीं मातृभूमि से मृतक और अभागा है

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विजय सिंह बिष्ट गुफा कंदराओं से उतराखंण्डी जागा है। जिसे प्यार नहीं मातृभूमि से मृतक और अभागा है। गंगा यमुना का उद्गम उफन कर आया है। किरीट हिमालय का उत्तराखण्ड पर छापा है। बोल उठा जनमानस उत्तराखण्ड हमारा है। नर नारी बाल वृद्ध का यही एक नारा है। सुन नहीं रहा मुलायम चुप्पी साधे शासन है। नारी का चीरहरण किया वह दुष्ट दुशासन है।। भूल चुका वह अब भी कई कृष्ण मुरारी हैं। मातृभूमि की रक्षा में अनेकों नेक पुजारी हैं। लेके रहेंगे उत्तराखण्ड पक्का संकल्प हमारा है। जनमानस मुखरित हो उठा यह प्रदेश हमारा है। सड़कों गलियों गांव गांव से आज एक ही नारा है।                                                                                          उत्तराखण्ड लेके रहेंगे  यह प्रदेश हमारा है। इस पावन धरती पर शिव ने अलख जगाया था। गोरखों को पछाड़ा फिरंगियों को भगाया था। उस धरती के बीर सपूतों ने फिर संघर्ष उठाया है। गुफा कंदराओं से नरसिंह बन फिर दहाड़ा है। बद्री केदार के संत तपस्वी प्राणों की आहुति देंगे। प्राणों की बलि देकर भी उत्तराखंडी राज लेंगे। सुनो देश के कर्णधार मत चुप्पी साधो। अच्छा होगा उत्तराखण्ड की सीमा

सतासीन सरकारें जो भी आई है समस्त उतराखंडियों की उपेक्षा ही कर रही है

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उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण की घोषणा मुख्यमंत्री द्वारा किए जाने का हार्दिक अभिनंदन, बीस वर्ष का समय व्यतीत हो चुका है लेकिन राज्य की स्थापना के पश्चात भी उत्तराखण्ड का जनमानस यह नहीं समझ पाया है कि आखिर राज्य की स्थाई राजधानी कहां है। राज्य प्राति के लिए जिन लोगों ने संघर्ष किया अपना बलिदान किया आज ऐसा लगता है राज्य की सतासीन सरकारें जो भी आई है समस्त उतराखंडियों की उपेक्षा ही कर रही है। गैरसैंण ही क्यों? बीस वर्ष पहले गैरसैंण मात्र एक खाली भू भाग था। लेकिन उस समय के बिचारकों और प्रबुद्ध जनों ने यह निर्णय लिया था कि यह स्थान उत्तराखण्ड के सभी तेरह जनपदों का केंद्र है। राजधानी बनने से सभी जनपदों के संपर्क मार्ग बनेंगे, और "जहां राह है वहां चाह है" के आधार पर पर्वतीय राज्य का विकास होगा। किंतु शासन के पांव देहरादून में रुके और अंगद के पैर की तरह जम गये।  अब्ल तो प्रदेश की नींव जहां केंद्र शासित होना था हुआ नहीं।बाद में पिछड़े प्रदेश की भिक्षा भी नहीं मिली। बर्तमान में राज्य सरकार एक राजधानी का व्यय बाहन नहीं कर पा रही है फिर दूसरी खंडाला जैसी अव्यवस्थित जगह पर रा