उत्तराखंड में हर छात्र के घर और हर शिक्षक के हाथ में लैपटॉप पहुंच गया
० योगेश भट्ट ० नयी दिल्ली - वर्ष 2020 में, दुनिया लगातार महामारी की चपेट में थी और उस कठिन समय के दौरान हमने डिजिटल नवाचार की उल्लेखनीय शक्ति देखी। भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण देश है जिसे डिजिटल क्रांति की लहर ने बदल दिया है। शिक्षा, मनोरंजन और यहां तक कि नौकरियां भी सब कुछ ऑनलाइन हो गया। लेकिन इस तेजी से बदलाव में, हमें एक कड़वी सच्चाई का भी सामना करना पड़ा - डिजिटल अंतर जिसने शहरी और ग्रामीण भारत को अलग कर दिया। एक गहरे उद्देश्य से प्रेरित एकरूपे फाउंडेशन ने इस अंतर को पाटने के लिए अपना पहला कदम उठाया। हमारी यात्रा एक छोटी लेकिन हार्दिक पहल के साथ शुरू हुई। 27 दिसंबर, 2021 को प्रोजेक्ट शगुन बावन का जन्म हमने उत्तराखंड के सुंदल गांव में बच्चों के एक समूह को वाई-फाई वाला एक लैपटॉप प्रदान करके शुरुआत की। यह सरल कार्य इन युवा दिलों में नए अवसर लाने का वादा था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमें एहसास हुआ कि हमारा मिशन केवल प्रौद्योगिकी के बारे में नहीं था। यह इन युवा मनों में आशा और जिज्ञासा जगाने के बारे में था। हमने कैरम और शतरंज जैसे इनडोर खेल और फुटबॉल, वॉलीबॉल, क्रिकेट और बैडमिंटन