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मई 31, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विश्व मैत्री मंच की दिल्ली प्रदेश इकाई द्वारा ऑनलाइन ऑडियो कवि सम्मेलन का आयोजन

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नयी दिल्ली - वैश्विक महामारी के इस संकट काल में जबकि मिलना जुलना बिलकुल भी संभव नहीं हो पा रहा है और सारी साहित्यिक गतिविधियां भी बंद हैं ऐसे में ऑनलाइन कवि गोष्ठी ने दिल्ली के सभी मित्रों को आपस में मिला दिया कर कार्यक्रम को यादगार बना दिया गया। जब एक मंच ,एक विषय पर सभी कविताएँ और सभी की मंच पर उपस्थिति रही। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता संतोष श्रीवास्तव ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ सविता चड्डा थीं।   विशिष्ट अतिथि नीलम दुग्गल नरगिस थीं।  डॉ भावना शुक्ला ने सरस्वती वंदना बहुत ही सुरीले स्वरों में प्रस्तुत की, वहीं राधा गोयल ने दीप प्रज्वलन कर सरस्वती मां का वंदन किया । कार्यक्रम का अपने ढंग का अनूठा कार्यक्रम का संचालन सुषमा भंडारी ने किया। 18 कवयित्रियों ने प्रेम ,इंतजार और यादें विषय पर अपनी ,अपनी बेहतरीन कविताएँ सुनाईं। प्रमिला वर्मा ने आह मै गीत की एक पंक्ति हूं तुमने मुझे हंसकर भुला दिया। मुक्ता मिश्रा ने शब्द कितना कहें एक विरह की व्यथा । भावना शुक्ल ने प्रेम है लाजमी जिंदगी के लिए , तुम समर्पण करो बंदगी के लिए। सुषमा भंडारी ने लॉकडाऊन  में खौफ के सुकून का इंतजार ,खामोश जीवन क

ON LINE पत्रकारिता दिवस पर संगोष्ठी:आज के डिजिटल दौर में पत्रकारिता

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नई दिल्ली : हिंदी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय मीडिया महासंघ (एनएमसी) द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार के माध्यम से डिजिटल दौर में पत्रकारिता नामक विषय पर गोष्ठी भी आयोजित की गई। वेबिनार का संचालन राष्ट्रीय मीडिया महासंघ (एनएमसी) के राष्ट्रीय महासचिव शीबू खान ने किया, जिसमें उन्होंने उपस्थित वक्ताओं एवं अन्य का स्वागत करते हुए मीटिंग का एजेंडा बताते कार्यक्रम की शुरुआत की। इस दौरान गोष्ठी की शुरुआत ओडिशा से सांसद व पूर्व मंत्री प्रोफेसर प्रसन्ना पटसानी ने की। इसके बाद मुख्य वक्ता के तौर पर राष्ट्रीय मीडिया महासंघ (एनएमसी) के वरिष्ठ सह संस्थापक एवं वरिष्ठ पत्रकार सुनील डंग ने उपस्थित पत्रकारों के समक्ष हिंदी पत्रकारिता दिवस पर प्रकाश डालते हुए निष्पक्ष पत्रकारिता की बात कही। इसी क्रम में पूर्व मंत्री प्रोफेसर पटसानी ने भी अपने वक्तव्य में पत्रकार एवं पत्रकारिता जगत की बात भी बखूबी अंदाज़ में रखी, उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी दशा में पत्रकारिता धर्म से नही भटकना चाहिए। इसी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार बालासाहेब आम्बेकर व नारायनपुरकर ने भी अपनी बातों को रखा। इसके बाद

पीड़ा के स्वर

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विजय सिंह बिष्ट मैंने कितने अश्रु बहाए जीवन में, अगर संजोया होता सागर भी भर जाता, इतना जहर पिलाया मुझको दुनिया ने, नीलकंठ भी पीता तो वह भी मर जाता। यदि मैं अपनी राम कहानी पहले लिखा देता, भला लिखने को फिर क्या रह जाता। जितने रावण आये मुझसे लड़ने को, एक अकेला राम भला क्या लड़ पाता। अपनी यदि मैं राम कहानी लिख देता, फिर लिखने को शेष भला क्या रह जाता। प्यार किया विश्वास किया अपना माना, जाने क्यों हर अपना धोखा दे जाता। इतना लूटा अपने और परायों ने, धन कुबेर का भी दीवाला पिट जाता। झंझावात भंयकर मैंने जो झेले, प्रलय काल का मनु शायद ही बच पाता। जीवन गुजरा सूखे रेगिस्तानों में, मरूस्थल में कैसे गंगाजल पाता। यदि मैं अपनी राम कहानी लिख देता, फिर लिखने को शेष भला क्या रह जाता। दुर्योधन के दल में शामिल भीष्म यहां, उन्हें मारने कितने चक्र उठाता, लाखों द्रौपदियों की लुटती लाज यहां, किस किस की  मैं लाज बचाने चीर बढ़ाता। इक जैसा ही पाया मैनेलोगों को, भले बुरे का निर्णय कैसे कर पाता। मेरे मन मंदिर में मेरा ईश्वर है मैं औरों के दरवाजों पर क्यों जाता। तुम अपने हिस्से का विष मुझको दे दो, विष पीने से ही तो शं

मोदी सरकार के 2.0 का पहले साल की उपलब्धि

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गांव वाले भी हैं समझदार

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भीषण गर्मी के बीच हुई बारिश से मौसम हुआ सुहाना

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