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जून 5, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पक्षियों के लिए स्कूली छात्रों ने पेड़ो पर बाँधा दाना एवं जल पात्र

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० संवाददाता द्वारा ०  छिंदवाड़ा- शासकीय हाई स्कूल चारगांव प्रहलाद में ग्रीष्म काल की भीषण गर्मी में बच्चो ने पक्षियों की भूख-प्यास मिटाने के लिए दाना, जल पात्र एवं घोंसला बनाकर स्कूल परिशर के वृक्षों में लगाया । यह प्रेरणा एवं जीव सेवा का भाव बच्चों को समर कैंप के कार्यक्रम अंतर्गत शिक्षिका नमिता अहिरवार, सरिता परतेती, संगीता नागोत्रा एवं प्राचार्य आर. एस. बघेल के कुशल मार्गदर्शन में बनाना सीख कर किया जा रहा है। शाला परिसर के पेड़ों में लगाया गया जलपात्र से चिड़िया दाना खाने और पानी पीने आती है या नही। जब चिड़ियाँ आई एवं दाना चुगा और पानी पीकर उड़ गई सभी बच्चों को बहुत अच्छा लगा। पानी पीते हुए चिड़िया को देखकर बच्चे बहुत खुश हुए और उन्हें यह अनुभव हुआ कि पक्षियों को भी गर्मी में हमारे समान बार-बार प्यास लगती हैं और वे पानी के लिए भटकती है। प्राचार्य आर एस बघेल ने बताया कि सभी बच्चों ने संकल्प लिया कि हम अपने अपने घरों में भी पक्षियों के लिए जलपात्र,दाना पात्र की व्यवस्था करेंगे ।  चारगांव प्रहलाद के पूर्व छात्र से श्याम कोलारे एवं सुनील बंदेवार ने इस कार्य के लिए सराहना की और कहा कि स्कू

द बॉडी शॉप की ब्रिटिश रोज़ स्किनकेयर रेंज से पायें त्‍वचा के लिये जरूरी देखभाल

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० योगेश भट्ट ०  नयी दिल्ली : द बॉडी शॉप का मशहूर ब्रिटिश रोज़ कलेक्‍शन दुनिया की सबसे प्रमुख और जानी-मानी उत्‍पाद श्रृंखलाओं में से एक है और आपकी त्‍वचा पूरे साल कोमलता, प्‍यार और देखभाल (टीएलसी) दे सकती है। ब्रिटेन में जन्‍मे अंतर्राष्‍ट्रीय और नैतिक ब्‍यूटी ब्राण्‍ड की ब्रिटिश रोज़ रेंज को इसके बीस्‍पोक कम्‍युनिटी फेयर ट्रेड प्रोग्राम के माध्‍यम से प्राप्‍त गुलाब के अर्क, एलोवेरा और दूसरी सामग्रियों से बनाया गया है, जो आपकी त्‍वचा को तरोताजा, हाइड्रेटेड और बहुत लचीला बनाते हैं। यह आपकी त्‍वचा को सबसे बढ़िया पोषण और देखभाल देते हैं। और तो और, इसका इस्‍तेमाल हर उम्र के लोगों द्वारा किया जा सकता है! प्राकृतिक मूल की 91% सामग्रियों से बना, द बॉडी शॉप का ब्रिटिश रोज़ ईयाउ डे टॉयलेट आपको एक फलते-फूलते बगीचे की सुगंध देगा। इसका फ्लोरल सेंट द वीगन सोसायटी से प्रमाणित है और 42% पुन:चक्रित शीशे की बोतल में आता है। इसकी 100 एमएल की बोतल का मूल्‍य 1595 रूपये है, इसकी सुगंध लंबे समय तक बनी रहती है और आपकी त्‍वचा को शुष्‍क नहीं होने देती है। आपको बस इसे अपनी गर्दन और कलाइयों पर छिड़कना है और आप कही

सैंगल की स्थापना भाजपा को 2024 में पुनः सता का सिहांसन दिला पायेगी ?

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०  विनोद तकियावाला ०  नयी दिल्ली - वैश्विक राजनीति के दिप्तमान क्षितिज पर भारतीय राजनीति का सूर्य की रशिम किरणें घुन्धली व धुमिल हुई है। विगत दिनों विश्न के सबसे बड़े प्रजातंत्र भारत के नव निर्मित संसद भवन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को आमंत्रित नही करने पर 21 विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा बहिष्कार किया गया था । सतापक्ष - विपक्ष दोनो दलों की एक ही मंशा है कि किसी तरह इस बर्ष राज्यस्थान,मध्य प्रदेश व छतीसगढ के विधान सभा चुनाव व आगामी वर्ष में होने वाले लोक सभा के आम चुनावों में जनता को अपने पक्ष में कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना है। केन्द्र मे सतारूढ भाजपा व उनके सहयोगी पारी इस का श्रेय लेने की होड में है। 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैदिक रीलि रिवाज व मंत्रोचारण के साथ लोकसभा के अध्यक्ष के आसन के पास सैंगल स्थापित कर दिया। इस घटना चक्र ने भारतीय राजनीति व राजनीति पंडितो को यह सोचने के लिए विवस कर दिया है कि आज भारतीय राजनीति किस ओर जा रही है।लोकतंत्र के इस नये मंदिर में सैगल की स्थापना को लेकर पक्ष विपक्ष द्वारा कई सवाल उठाये है। भाजपा इ

जन भागीदारी के बिना पर्यावरण संरक्षण असंभव

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० लाल बिहारी लाल ०  नई दिल्ली । जब इस श्रृष्टि का निर्माण हुआ तो इसे संचालित करने के लिए जीवों एवं निर्जीवों का एक सामंजस्य स्थापित करने के लिए जीवों एवं निर्जीवों के बीच एक परस्पर संबंध का रुप प्रकृति ने दिया जो कलान्तर मे पर्यावरण कहलाया। जीवों के दैनिक जीवन को संचालित करने के लिए उष्मा रुपी उर्जा की जरुरत पड़ती है। और यह उर्जा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षरुप से धरती के गर्भ में छिपे खनिज लवण,जल ,वायु एवं फसलों के उत्पादन से अन्न एवं फल-फूल से प्राप्त होती हैं। लेकिन धीरे-धारे आबादी बढ़ी तो इनकी मांग भी बढ़ने लगी।  लेकिन आबादी तो गुणात्मक रुप से बढ़ी पर संसाधन प्राकृतिक रुप से ही बढ़े । इस बढ़ती हुई आबादी की मांग को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनो पर दबाब तेजी से बढ़ा फलस्वरुप प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तेजी से हुआ। जिससे पर्यावरण की नींव हिल गई । और इस प्रकृति द्वारा दिए सीमित संसाधनों के भण्डार के दोहन से मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ने लगा है । 1844 में औद्योगिक क्रांति के बाद पर्यावरण पर दवाव काफी बढ़ा जिससे बढ़ती हुई आबादी को बसाने ,यातायात के लिए परिवहन हेतु सड़कों का निर्माण स