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नवंबर 24, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया ने ‘फोरम मंच-2019’ का आयोजन किया

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'खुला मंच' के संयोजक प्रकाश रेड्डी ने फेडरेशन के इतिहास के बारे में जानकारी दी। इस सोसाइटी को भारत के महान फिल्‍मकार सत्यजीत रे ने 1959 में की थी और इसमें 350 से अधिक फिल्म सोसाइटी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि 'फोरम मंच' को 1988 में 'प्रयोग' के रूप में शुरू किया गया था और तब से यह एक नियमित कार्यक्रम बन गया है। उन्होंने कहा कि मंच, फिल्म निर्माताओं के लिए साथी फिल्म निर्माताओं, शोधकर्ताओं के साथ बातचीत करना और लेखकों को अपनी किताबें जारी करने के लिए प्रोत्साहित करने का अवसर प्रदान करता है। पिछले 31 वर्षों से 'फोरम मंच' भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्‍सव में एक नियमित कार्यक्रम रहा है। फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया ने  'फोरम मंच-2019' का आयोजन किया है। इसका विषय है आईएफएफआई @ 50: फ्लैश बैक एंड मूविंग फॉरवर्ड।  फिल्म महोत्सव निदेशक और महोत्सव निदेशालय (डीएफएफ) के एडीजी चैतन्य प्रसाद, फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष किरण शांताराम, फिल्म निर्माता और आईएफएफआई 2019 की तकनीकी समिति के अध्यक्ष ए.के बीर, किनोएटर पत्रिका, रूस के कार्यका

‘मैं 'दृष्टिहीन' शब्द का उपयोग नहीं करना चाहती-अभिनेत्री तापसी पन्‍नू

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गोवा - अभिनेत्री तापसी पन्‍नू ने कहा, 'मैं 'दृष्टिहीन' शब्द का उपयोग नहीं करना चाहती। वास्तव में आपकी अन्य इंद्रियां हमारे मुकाबले कहीं अधिक मजबूत हैं। मुझे खुशी है कि ऐसी फिल्में आप तक पहुंच सकती हैं।' उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि भविष्‍य में उानकी फिल्मों को भी ऑडियो फिल्मों में भी बदली जाएंगी। आईएफएफआई के 50वें महोत्‍सव को एक समावेशी आयोजन बनाने के लिए 'एक्सेसिबल इंडिया- एक्सेसिबल फिल्म्स' श्रेणी के तहत विशेष आवश्यकता वाली तीन फिल्मों का प्रदर्शन किया रहा है। यह आईएफएफआई, सक्षम भारत और यूनेस्को का एक संयुक्त भागीदारी है। इसका उद्देश्य ऑडियो के जरिये दिव्‍यांग लोगों के लिए समावेशी जगहों के सृजन को बढ़ावा देना है। राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' के साथ इस श्रेणी का उद्घाटन हुआ। इसे इस महोत्‍सव के निदेशक चैतन्य प्रसाद, ईएसजी के वाइस-चेयरमैन सुभाष फलदेसाई, ईएसजी के सीईओ अमित सतीजा और अभिनेत्री तापसी पन्नू ने लॉन्च किया। इस कार्यक्रम में लोकविश्‍वास प्रतिष्‍ठान, दृष्टिहीन स्कूल, पोंडा और नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड के छात्रों ने भाग ल

मां की मृत्यु पर तुम चले जाओ मैं पिता की मृत्यु पर चला जाऊंगा

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हमारे बुजुर्ग एक कहानी सुनाया करते थे। श्रवण कुमा र और उनके अंधे माता की। तब उस कहानी का अर्थ हमें नहीं आता था।मग्गा धरती,उसका नाम आता था। जिसका अर्थ "बेपीर धरती"था। कहते थे उसमें ही महाभारत का युद्ध लड़ा गया। जो चंद धरती के लिए लड़ी गई। उसमें भाई भाई आपस में लड़ें ,नारी धर्म की रक्षा तो दूर उसे भरी सभा में वस्त्र हीन करना बहादुरी  दिखाना था।          कहानी आगे कहती है कि श्रवण कांवर में रख कर माता पिता को देशाटन करवाया करते थे।जब वे इस धरती से गुजर रहे थे तब उनका मन भ्रांति में फंस गया कि इन्हें कंधे में लादकर ले जा कर मुझे क्या लाभ है। अच्छा है इन्हें किसी कुंए बावड़ी में डाल दूं, इसी उहापोह में वह अगली धरती में पग बढ़ाने लगा, उसकी तंद्रा टूटी माता पिता को झटके के साथ कुछ आभास हुआ तो पूछ बैठे बेटा क्या हुआ तब श्रवण ने मन की बात कह डाली कि मेरे मन में पाप  बैठ गया था ,वे बोले यह तुम्हारा दोष नहीं इस धरती का कसूर है।        यही कहानियां हमने पढ़ी और पढ़ाई हैं किंतु आज हम देखते हैं कि वे श्रवण पूरी तरह बदल गये हैं। मैं ऐसे लोगों को जानता हूं जिनकी कहानी आहत करने वाली है। सिद्ध