मीडिया को विकासवादी सकारात्मक राजनीति का वाहक बनना होगा- उपराष्ट्रपति


मीडिया को भी विकासवादी सकारात्मक राजनीति का वाहक बनना होगा, “मीडिया सरकारों और राजनैतिक दलों की जवाबदेही अवश्य तय करे परंतु उसके केन्द्र में जनसरोकार हों न कि सत्ता संस्थान। मीडिया यथा स्थितिवादी राजनीति में बदलाव का कारक बने। मीडिया को दलीय राजनीति से ऊपर उठकर जनकेन्द्रित मुद्दे उठाने चाहिए।”


रांची  - उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि “मीडिया राष्ट्रीय संसाधन है। जिसे पत्रकार बंधु जन विश्वास या ट्रस्ट में प्रयोग करते हैं।” उन्होंने कहा कि यदि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि “संसद और मीडिया एक दूसरे के सहयोगी हैं। दोनों ही संस्थान जनभावनाओं को अभिव्यक्ति देते हैं।”



उपराष्ट्रपति झारखंड प्रदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र प्रभात खबर के 35वें वार्षिक समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया के दौर में प्रेस के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा “शब्दों का सौंदर्य, विचारों का विस्तार, पत्रकारिता की गंभीरता, अभिव्यक्ति की मर्यादा-अखबार के पन्नों में ही दिखते हैं। टेक्नोलॉजी के इस युग में मीडिया के नए माध्यम तो आएंगे ही लेकिन लिखे हुए शब्दों की मर्यादा सदैव बरकरार रहेगी।”


मीडिया की सकारात्मक भूमिका को सामाजिक बदलाव के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि “स्वच्छता अभियान को जनआंदोलन बनाने में मीडिया की भूमिका अभिनंदनीय रही है। स्थानीय समुदाय में नागरिकों द्वारा किये जा रहे – सकारात्मक प्रयासों, परिवर्तनों से वृहत्तर देश को अवगत कराऐं। सामुदायिक स्तर पर जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, नवउद्यम जैसे सकारात्मक प्रयासों को पत्रकारिता में स्थान दें। आपके प्रयासों से जनता का विश्वास बढ़ेगा, सामुदायिक चेतना बढ़ेगी।”



उपराष्ट्रपति ने कहा कि “चुनाव भविष्य के विकास के ऐजेंडे पर लड़े जाने चाहिए। उम्मीदवार के आचरण, विचारधारा, क्षमता और निष्ठा के आधार पर चुनाव होना चाहिए, न कि जाति, धर्म, बाहुबल, धन बल या आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर।”



राज्य में होने वाले आगामी चुनावों की ओर संकेत करते हुए नायडु ने कहा कि “कुछ समय बाद राज्य में फिर चुनाव होंगे - एक बार पुन: मीडिया को अवसर मिलेगा कि वे जनसरोकारों, जन भागीदारी को चुनाव के केन्द्र में रखें।” उन्होंने कहा कि प्राय: देखा गया है कि चुनावों के दौरान मीडिया में मतदान और मतदाताओं के जातीय विश्लेषण किये जाते हैं। “इससे समाज में जातीय और सांप्रदायिक विभाजन और गहरे होते हैं, जो स्वस्थ राजनीति के उद्देश्य को ही विफल कर देते हैं। मैं आग्रह करूंगा कि देश में लोकतंत्र के नये संस्कारों को विकसित करें।”


उन्होंने कहा कि चुनाव हमारे नागरिकों विशेषकर युवाओं की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति है - “मैं मीडिया से आग्रह करूंगा कि वे जाति, धर्म के संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठकर युवाओं, महिलाओं, किसानों, उद्यमियों की अपेक्षाओं को स्वर दें।”


 


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