राजस्थानी भाषा में फिल्म निर्माण प्रोत्साहन एवं अनुदान नीति 2022 पर चर्चा

० संवाददाता द्वारा ० 

जयपुर। राजस्थानी सिनेमा आज भी पिछड़ा हुआ क्यूं है? राजस्थानी फिल्मों को दर्शक नहीं मिलने के कारण क्या हैं? नए उभरते फिल्मकारों के लिए प्रदेश के सिनेमा में क्या सम्भावनाएं हैं? क्या सरकार की नीतियां वास्तव में राजस्थानी सिनेमा को प्रोत्साहित करती हैं? इस तेवर के कितने ही प्रासंगिक प्रश्न हैं, जो शुक्रवार की दोपहर उठाए गए। गौरतलब है कि जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की ओर से राजस्थान फिल्म टूरिज़्म प्रमोशन पॉलिसी 2022 के लिए फोरम आयोजित किया गया, जहां सरकार की ओर से बनाई गई नीति पर सिने विशेषज्ञों जैसे के सी मालू, एम् डी सोनी, महेंद्र सुराणा, श्रवण सागर, धनराज दाधीच, राजेंद्र सारा, अजीत मान, नमन गोयल, राहुल सूद, अशोक बाफना, नंदू झालानी, अमिताभ जैन, राजेंद्र गुप्ता, नितिन शर्मा , राजेंद्र बोड़ा और हनु रोज ने भाग लिया और अपने विचार रखे.
इस गंभीर विमर्श का आयोजन जयपुर अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह (जिफ) ने राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति में किया था। सभी की यह राय तो थी कि राज्य सरकार ने राजस्थान में और राजस्थानी में फिल्मों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए जो नीति बनाई है वह एक सकारात्मक कदम है मगर यह भी माना कि सरकारी तंत्र के जरिये इसकी सफलता सुनिश्चित नहीं की जा सकती। कुछ ने इस नीति की सफलता के प्रति गंभीर संदेह भी व्यक्त किए। फ़िल्म नीति के अनुरूप फैसले लेने में बड़े पैमाने पर सिने कलाकारों और सिने कारोबार के लोगों की भागीदारी हो और शासन तंत्र के लोग सिर्फ उनके फैसलों के क्रियान्वयन की भूमिका में हों तब ही राजस्थान अपनी विराट क्षमता का उपयोग कर सकेगा।

फिल्म पर्यटन नीति और राजस्थानी फिल्मों की अनुदान नीति पर अधिकतर वक्ताओं ने उनकी उन प्रमुख खामियों को रेखांकित किया जो उनके क्रियान्वयन में बाधक बनेगी जिसमें एक प्रमुख शर्त यह है कि सिनेमाघरों में राज्य जीएसटी की रकम कम करके टिकिट बेचे जाएंगे और दर्शक से नहीं ली गई रकम फिल्मकार राज्य सरकार को जमा कराएगा जिसे सरकार बाद में वापस लौटा देगी। एक युवा फिल्मकार का दर्द था कि लघु फ़िल्में बनाने वालों को तो इस नीति में कोई स्थान ही नहीं दिया गया है। एक सर्वसम्मत राय थी कि राज्य सरकार को अन्य भाषाई राज्यों से सीख लेकर सिनेमाघरों में राजस्थानी फिल्मों का किसी निश्चित संख्या का प्रदर्शन अनिवार्य करना चाहिए। एक महत्वपूर्ण बात यह भी आई कि फिल्मकार रचनाकार होता है और रचनाकर्मी आम तौर पर कागजों में हिसाब किताब में कच्चा होता है और यह नीति हिसाब किताब तथा आंकड़ों की ही बारे करती है।

लंबे समय बाद यह एक ऐसा मौका था जब राजस्थान में फिल्मों से जुड़ी लगभग सभी हस्तियां एक जगह मौजूद जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल प्रवक्ता राजेन्द्र बोड़ा ने राजस्थान फिल्म पर्यटन प्रोत्साहन नीति 2022 और राजस्थानी भाषा में फिल्म निर्माण प्रोत्साहन एवं अनुदान निति 2022 के प्रमुख बिन्दू सभी के सामने रखे, और फिर निर्बाध संवाद का सिलसिला आगे बढ़ा। वरिष्ठ फिल्म पत्रकार, लेखक, गीतकार, फिल्म निर्माता, सिनेकारों और सिने व्यवसाय व मनोरंजन जगत से जुड़े लोग, फिल्म वितरक और राजस्थानी सिनेमा के अभिनेताओं ने चर्चा में साफ़गोई से अपना पक्ष रखा। जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के फाउण्डर हनु रोज़ ने कहा कि अभी तक हालिया बनाई गई इस पॉलिसी के बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है। ऐसे में इस पर खुलकर बात करना और सुधार की दृष्टि से सुझाव देना हम सभी राजस्थानवासियों के लिए निस्सन्देह लाभप्रद रहेगा। मुख्य रूप से राजस्थानी भाषा में फिल्म निर्माण प्रोत्साहन एवं अनुदान निति 2022 पर चर्चा की गयी.

रिटायर्ड आई.ए.एस. ऑफिसर तथा दूरदर्शन पर प्रश्नोत्तरी के लिए लोकप्रिय रहे महेन्द्र सुराणा ने बेबाक़ी से अपनी बात रखते हुए कहा कि सर्वश्रेष्ठ फिल्मों का चयन करने के लिए जो समिति बने, वहां सारे सदस्य निर्णय लेने वाले होने चाहिए। किसी एक का एकाधिकार नहीं होना चाहिए। उन्होने कहा कि फिल्मों से जुड़े विशेषज्ञ मिलकर निर्णय लें, और प्रशासन से जुड़े अधिकारी उन निर्णयों को अमलीजामा पहनाने का कार्य करें। सुराणा ने साफ़गोई से कहा कि ग़र हम राजस्थान सरीखे ऐतिहासिक विरासत वाले प्रदेश के लिए पर्यटकों का आकर्षण नहीं बढ़ा पा रहे हैं, तो यह हमारी विफलता है। उन्होने सरकारी तंत्र की ख़ामियों पर खुलकर अपनी राय रखी।

राजस्थानी फिल्म निर्माता तथा फिल्म वितरक राजेंद्र गुप्ता ने मुखरता से कहा कि अनुदान के लिए चुनी जाने वाली फिल्मों के लिए सरकार की ओर से जो समिति बनाई गई है, उसमें सिनेमा से जुड़े विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल हों। इससे फिल्मों का चयन बेहतर होगा। वहीं उन्होने कहा कि सरकारी नीति में यह प्रावधान जोड़ा गया है कि एक फिल्म निर्माता को दस वर्षों में 2 बार ही अनुदान मिल सकता है, जो सर्वथा अनुचित है। इस पर पुनर्विचार होने की ज़रूरत है।

क्या सरकार की हालिया नीति में डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्मों के लिए अनुदान का प्रावधान है? यह प्रश्न किया फिल्म निर्माता – अभिनेता राहुल सूद ने, जिनके अनुसार अनुदान देते हुए सरकार को छोटे बजट की फिल्मों को भी ध्यान में रखने की ज़रूरत है। सरकारी नीति के मुताबिक किसी फिल्म को बनाते हुए कम से कम दो करोड़ रुपए [फिल्म शूटिंग एवं अन्य खर्चे] राजस्थान में खर्च हो, जो सभी निर्माताओं के लिए सम्भव नहीं है। ऐसे में कम बजट की फिल्मों के लिए सम्भावनाएं तलाशनी होगी। वहीं सूद ने कहा सरकारी विभागों में बजट की उपलब्धता के आधार पर ही अनुदान दिया जाता है, और ऐसे में बजट कम अथवा नहीं होने पर राजस्थानी फिल्मों को क्या मिलेगा, इसमें सन्देह है।

साहित्यकार हरीश करमचंदानी ने संवाद को आगे बढ़ाते हुए कहा कि फिल्म सलेक्शन कमेटी में फिल्मों का आर्थिक पक्ष समझने वाले तो हों, वहीं सिने जगत के ऐसे विशेषज्ञ भी शामिल हों, जो निर्विवाद रहे हों। करमचंदानी मानते हैं कि राजस्थानी सिनेमा अभी अपने शिशुकाल में है और हमें अपनी फिल्मों की कहानियों को बेहतर करने की ज़रूरत है। फिल्मों के आर्थिक पक्ष की बात को ठीक है, लेकिन क्या राजस्थानी सिनेमा देखने वाले दर्शक भी हैं? कई राजस्थानी फिल्मों में अभिनय कर चुके सागर ने यह सवाल उठाते हुए कहा कि हम राज्यवासी एक दूसरे की आलोचना करने के बजाय अपनी फिल्मों को प्रोत्साहित करें। सागर ने कहा कि एक स्क्रीनिंग कमेटी बनने की ज़रूरत है, जो फिल्म देखे और उसका निष्पक्ष मूल्यांकन करे।

गौरतलब है कि चर्चा में हिस्सा लेने वाले सभी विशिष्ट जनों से प्राप्त सुझावों की सूची [नाम और हस्ताक्षर सहित] सरकार को प्रेषित की जाएगी, जिससे वर्ष राजस्थान फिल्म पर्यटन प्रोत्साहन नीति 2022 और राजस्थानी भाषा में फिल्म निर्माण प्रोत्साहन एवं अनुदान निति 2022 की ख़ामियों को दूर कर इसे अधिक लाभप्रद और व्यवहारिक बनाया जा सके।

फिल्म चयन समिति में फिल्मों के एक्सपर्ट हो जिन्होंने अच्छा काम किया हो. तभी कुछ भला हो सकता है. दस साल में निर्माता निर्देश को को दो बार से अधिक सहायता के पात्र नहीं होने वाला नियम होना ही नहीं चाहिए. हमें सब्सिडी से पहले सिनेमा हॉल्स में फ़िल्में दिखाने का नियम चाहिए. ये फिल्म प्रोत्सान निति नहीं लगती है. - राजेंद्र गुप्ता, फिल्म निर्माता शॉर्ट फिल्मों के लिए भी आर्थिक सहयोग की बात होनी चाहिए. - दीपेश गौड़ 10 साल में निर्माता निर्देश को को दो बार से अधिक सहायता के पात्र नहीं होने वाला नियम बहुत ही बेकार नियम है. राजस्थानी फिल्मों को सरकार द्वारा सिनेमा हॉल्स में मुक्त दिखाना अनिवार्य किया जाना चाहिए. - अमिताभ जैन, पूर्व जनरल मैनेजर आयनॉक्स, राजस्थान

एक राजस्थानी फिल्म के लिए 56 शो दिखाना अनिवार्य हो. इस पॉलिसी में 2K और 35M वाला नियम आउटडेटेड है. इस पर आज फ़िल्में बनती ही नहीं है. ना ही सिनेमा हॉल्स में अब सुविधा है, होगी भी तो 25 से 30 सिनेमा हॉल्स में. शूटिंग के लिए एक अलग से कोर टीम हो. बातचीत सरकार इंडस्ट्री के लोगों के साथ करें. - नंदू झालानी, फिल्म प्रोड्यूसर और डिट्रीब्यूटर मराठी सिनेमा को सिनेमा हॉल्स में दिखने के लिए जिस तरह राज ठाकरे ने संघर्ष किया वैसा राजस्थान में भी हो. - अशोक बाफना, फिल्म प्रोडूसर मैं एक बार सरकार द्वारा आयोजित मीटिंग में गया था. दूसरी बार नहीं बुलाया गया. सबसे पहले राजस्थानी सिनेमा के लिए सकारत्मक वातावरण बनाया जाना चाहिए - प्रदीप सिंह राजावत

फीचर और शार्ट फ़िल्में के साथ डाक्यूमेंट्री फ़िल्में भी राजस्थानी फिल्म पॉलिसी हो. अभी तक ये होता आया है की कुछ बजट बच जाता है उसको केवल बांटा जाता है. ऐसा ना हो. प्रॉपर नियमों के साथ सब्सिडी दी जाए. - राहुल सूद, एक्टर और फिल्म निर्माता एक जो नियम है की राजस्थान में 2 करोड़ रुपये खर्च हो, ठीक नहीं है. 2 करोड़ ना दे एक करोड़ दें. पर 15% वाले नियम को 30 से 35 % किया जावे. - नमन गोयल, फिल्म निर्माता निर्देशक, न्यूयार्क फिल्म एकडमी, अमेरिका से पासआउट राजस्थानी फिल्म या पर्यटन किसे प्रमोट करना है. इसका फैसला पहले हो. - अजीत मान, फिल्म निर्माता क्वालिटी फ़िल्में बने. राजस्थानी बोले जाने वाले काम होते जा रहे हैं. राजस्थानी सिनेमा और राजस्थानी को आगे बढ़ानी के लिए राजस्थानी पढ़ाया जाना जरूरी है. - राजेंद्र सारा, फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर पॉलिसी में एक राजस्थानी फिल्म फेयर भी हो ताकि राजस्थानी बनाने वाले एक मंच पर आ सकें. उनको सम्मान मिल सके. - धनराज दाधीच, फिल्म लेखक

राजस्थानी सिनेमा बनाने वालों का मनोबल बढ़ाने वाला काम सबसे पहले होना चाहिए. राजस्थानी भाषा की फिल्म को ग्रेड अनुसार 5 लाख से 25 लाख रुपये अधिकतम या 25 % जो भी कम हो आर्थिक सहायता दी जाएगी. अब आप बताओ मैं 2 करोड़ रुपये की फिल्म बनाऊंगा। मुझे अधिकतम मिलेंगे 25 लाख रुपये या 25 %. अब इससे जयादा तो GST ही पे कर दूंगा। तो मुझे अनुदान क्यों चाहिए. या फिर हमें लेन देन के साथ छेड़ छाड़ करनी होगी. कमेटी में जो लोग हैं अनुदान के लिए उनको मैनेज करना पडेगा. तो हम ऐसी निति बनाये ही क्यों. दस साल में दो बार से जयादा वाला नियम के लिए लोग किसी दूसरे के नाम से फ़िल्में बना देंगे. तो ऐसे नियम बनाते ही क्यों हैं हम. हर सिनेमा हॉल्स में एक फिल्म का एक शो दिखाया जाना जरूरी हो. फिल्म स्क्रीनिंग कमेटी में फिल्मों से जुड़े बेहतरीन नाम हो. सारे लोग एक साथ फ़िल्में देखें ना की अभी जो हो रहा है वैसे. - श्रवण सागर, फिल्म अभिनेता और निर्माता

सरकार को पॉलिसी से पहले फिल्मों के लिए कोइ संस्था बनानी चाहिए. सरकार को खुद निर्माता निर्देशों को आमंत्रित करके राजस्थानी भाषा में फ़िल्में बनाने और रिलीज करनी चाहिए. इससे अच्छा माहौल बनेगा. इस निति में ऐसा भी हो. - हरीश करमचंदानी, पूर्व, दूरदर्शन निदेशक सबसे पहले सरकार को सीरियस होना चाहिए. फिर मूल उद्देश्य पर बात हो और इसके बाद पॉलिसी बनानी चाहिए. फिल्म पॉलिसी और फिल्मों के लिए अलग से दमदार नोडल ऑफिसर नियुक्त किया जाना चाहिए. राजनीति अलग राखी जाए. निर्णय लेने वाले लोग यहां हो. मुख्य सचिव के लेवल का व्यक्ति इसको लीड करे. ब्यूरोक्रेटस को इससे अलग रखा जाए. ब्यूरोक्रेट्स केवल पॉलिसी को एग्जिक्यूट करने का काम करें. किसी की सिफारिश वाला काम नहीं हो. इस पॉलिसी एक बार फिर से रिव्यू हो. इसको सिम्पलीफाई किया जावे. अब जो पॉलिसी बनी है वो फिल्मों के लिए कम पर्यटन के लिए जयादा है. फ्लोर पर जाने वाली फिल्म को पहले ही अनुदान दिया जाना चाहिए. अभी जो पॉलिसी बनी है वो अच्छी पॉलिसी नहीं कही जा सकती है. ये पॉलिसी बेकार है. - महेंद्र सुराणा, पूर्व IAS, पूर्व फिल्म सिटी कमेटी मेंबर मूल्यांकन समिति में दो लोग सिनेमा से और बाकी सरकार से हैं. इसका उलटा होना चाहिए. इस पॉलिसी में संगीत का कॉलम है ही नहीं. साउंड और ध्वनी मुद्रण को दो बिंदु हैं. इसमें सरकार अंतर बता पाएगी. रजत कमल के पुरस्कार वाला नियम ठीक नहीं है. - एम् डी सोनी, फ़िल्म समीक्षक

मैं कमेटी का मेंबर हूँ. मुझे ही नहीं पता ये पॉलिसी कबी बन गयी और रिलज हो गयी. मुझे तो मीडया से पता चला. इस पॉलिसी का नाम राजस्थानी फिल्म प्रमोशन पॉलिसी होना चाहिए. ये पॉलिसी तो टूरिज्म के पोषण के लिए है और बाकी के शोषण के लिए है. अभी तक बजट में बचे रुपये अनुदान के रूप में बाँटते आये हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए इस पॉलिसी में. क्रेडिट कैसे राजस्थानी में लिखे जाएंगे. सरकार स्पष्ट करे. हाँ साहित्यिक पुस्तक पर बनी फिल्म पर अनुदान वाला वाली अच्छी बात है. सबसे खतरनाक बात जो है इस पॉलिसी में की पहले फिल्म रिलीज करो, टैक्स जुटाओ, सरकार के खाते में जमा कराओ और फिर उस टैक्स को रियम्बरसमेंट के रूप में वापस लेने के लिए सरकार के चक्कर लगाओ. बिचारा फिल्म बनाने वाला तो बर्बाद हो जाएगा. - के सी मालू, चेयरमैन, वीणा कैसेटस

इस फिल्म प्रमोशन पॉलिसी का एक क्लियर ऑब्जेक्टिव होना चाहिए. ऑब्जेक्टिव ये की कैसे राजस्थानी में फ़िल्में बने. अच्छी फ़िल्में बने. - नितिन जैन, UFO, जनरल मैनेजर सबसे पहले सरकार को राजस्थान फिल्म डवलपमेंट कॉर्पोरेशन या कोइ अन्य नाम वाली संथा का गठन पर्यटन विभाग और कला और संस्कृति विभाग से अलग किया जावे. इसके बाद इस संस्था मे राजस्थान, भारत और विदेश से एक अनुपात में सिनेमा से जुड़े बेहतरीन लोगों को इसकी कमेटी में लिया जाए. उनका निर्णय सर्वमान्य हो. ये नाम ऐसे हो जो किसी दबाव में काम नहीं करें. ईमानदारी से सिनेमा के लिए काम करें. सरकार की तरफ से एक अधिकारी इसको एक्ज्यूक्युट करने में डेप्यूट किया जावे. इसके बाद फिल्म पॉलिसी और फिल्म निर्माण पर काम शुरू किया जावे. - हनु रोज, जिफ फाउंडर

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