अगस्त क्रांति के नायकों के बलिदान को नयी पीढी़ को अवगत कराने की जरूरत--ज्ञानेन्द्र रावत

० योगेश भट्ट ० 

नयी दिल्ली - आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर 1942 के भारत छोडो़ आंदोलन के नायकों की स्मृति में नयी दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के कमला देवी सभागार में समारोह के आयोजन का अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ प्रारंभ हुआ। समारोह के प्रारंभ में प्रख्यात संगीतकार जौहर अली खान के राष्ट्र प्रेम की गीत-ध्वनि और संगीत लहरी और प्रख्यात नृत्यांगना डा० सुमिता दत्त राय की भावभीनी नृत्य प्रस्तुति ने सभी उपस्थित जनों को मंत्रमुग्ध कर दिया। समारोह में उपस्थित विशिष्ठ जनों यथा- प्रख्यात पत्रकार एवं वैदेशिक मामलों के विशेषज्ञ डा० वेद प्रताप वैदिक, 
भारत सरकार के पूर्व सचिव आई ए एस एवं पंचगव्य विद्यापीठ के उपकुलपति डा० कमल टावरी, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के निदेशक नारायण कुमार, सुप्रीम कोर्ट के अपर महाधिवक्ता संजीव सहगल, प्रख्यात समाजवादी नेता,चिंतक रघु ठाकुर, साहित्यकार अलका सिन्हा, इतिहासकार डा० संतोष कुमार पटैरिया, पूर्व केन्द्रीय मंत्री संजय पासवान, पूर्व सांसद संतोष भारतीय व सूरज मंडल, प्रख्यात लेखक शाहनवाज कादरी, संगीतकार जौहर अली खान व प्रसिद्ध नृत्यांगना डा० सुमिता दत्त राय आदि का लोकनायक जयप्रकाश अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विकास केन्द्र के महासचिव व समारोह के आयोजक अभय सिन्हा, 
आयोजन स्वागत समिति के प्रमुख बालाजी ग्रुप आफ एजूकेशन के निदेशक डा० जगदीश चौधरी द्वारा स्मृति चिन्ह व संजीव कुमार, प्रशांत सिन्हा,  सुखविंदर सिंह, मोहसिन खान, आरिफ सिद्दीकी, अरुण कुमार सिंह, राजेश सिन्हा,  विनय खरे व अनु सिन्हा ने पुष्प गुच्छ व पटका पहनाकर स्वागत किया गया। इसके उपरांत स्व० कन्हैय्यालाल खरे द्बारा रचित खण्ड काव्य क्रांतिकारी दुर्गा भाभी नामक पुस्तक का मंचासीन विशिष्ठ अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। इसके उपरांत आयोजक अभय सिन्हा ने सभी अतिथियों-आगंतुकों का स्वागत करते हुए अगस्त क्रांति के भूले-विसरे नायकों की स्मृति में किये जा रहे इस आयोजन के कारणों पर प्रकाश डाला, आयोजन में सहयोग-समर्थन देने वाले सहयोगियों का आभार व्यक्त किया जिनके परिश्रम से यह आयोजन संभव हो सका। उन्होंने आंदोलन में बलिदानी सेनानियों की सिलसिलेवार चर्चा की और आश्वस्त किया कि लोकनायक जयप्रकाश अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विकास केन्द्र देश के आजादी के आंदोलन के भूले विसरे नायकों की स्मृति को जीवंत बनाये रखने के अभियान को जारी रखेगा।
समारोह में जहां डा० वेद प्रताप वैदिक ने अगस्त क्रांति के नायकों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला और आजादी उपरांत उनकी उपेक्षा का सिलसिलेवार वर्णन किया और उनकी स्मृति में स्मारक, केन्द्रों की स्थापना पर बल दिया तथा ऐसे आयोजनों की आवश्यकता को समय की मांग बताया, वहीं समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने आजादी के आंदोलन के नेताओं की भूमिका, गांधी, लोहिया, जयप्रकाश के सपनों के आजाद भारत में हो रहे ह्वास और देश के करोडो़ं करोड़ लोगों की आशाओं के धूल धूसरित होने के कारणों का व्यौरेवार खुलासा किया, वहीं आज पुनः नौजवानों को उठकर खडे़ होने की जरूरत पर बल दिया और कहा कि अब बहुत हो चुका। यदि देश बचाना है तो गांधी, लोहिया, जयप्रकाश का बताया रास्ता ही एकमात्र उपाय है तभी सच्ची आजादी संभव है।  संजय पासवान ने आजादी के दीवानों को देश की धरोहर करार दिया। समारोह में लखनऊ से आये प्रख्यात समाजवादी नेता लोकबंधु राजनारायण के सहयोगी व ख्यातनामा पुस्तक लहू पुकारेगा के लेखक जनाब शाहनवाज कादरी ने भारत छोडो़ आंदोलन की पृष्ठभूमि व उसके नेताओं की भूमिका पर सिलसिलेवार प्रकाश डाला, 
वहीं महोबा से आये प्रख्यात इतिहासकार डा० संतोष कुमार पटैरिया ने देश की आजादी में भारत छोडो़ आंदोलन के महत्व और आंदोलनकारियों के योगदान की क्षेत्रवार व्याख्या की। अपर महाधिवक्ता संजीव सहगल ने जहां गांधी, लोहिया, जयप्रकाश की आंदोलन में भूमिका पर प्रकाश डाला, वहीं  नारायण कुमार ने आंदोलन में अपने परिवार के सहयोग और उसके कारण परिवार को किन किन परेशानियों का सामना करना पडा़ का वर्णन किया। इसके अलावा पूर्व सांसद सूरज मंडल, पूर्व कैबिनेट सचिव कमल टावरी, पूर्व सांसद  संतोष भारतीय, साहित्यकार अलका सिन्हा, केन्द्र के सचिव  विनय खरे आदि वक्ताओं ने आजादी के आंदोलन के नेताओं के कृतित्व पर प्रकाश डाला।

समारोह में वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, स्तंभकार एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत ने अपने संबोधन में देश के प्रथम स्वातंत्र्य आंदोलन से लेकर भारत छोडो़ आंदोलन तक में अपना सर्वस्व होम करने वाले बलिदानियों की चर्चा करते हुए दुख व्यक्त किया कि जिनके असंख्य बलिदानों की कीमत पर आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं, उनको आज हम बिसार चुके हैं। आज उनके त्याग और बलिदान से हमारी आज की पीढी़ अनजान है। एक षडयंत्र के तहत उनके बलिदान को भुलाने का काम किया गया है। इसे हमें समझना होगा। सबसे बडा़ दुख तो यह है कि जिस झंडे को लेकर आजादी के संघर्ष के दौर में 8 से 14 साल के नौनिहालों ने अंग्रेज रेजिडेंसियों पर फहराने की खातिर बरतानिया हुकूमत के सैनिकों की गोलियां खायीं, उनका नामलेवा भी कोई नहीं है।

यही नहीं जिस झंडागीत को गाते हुए आजादी के दीवाने हजारों की संख्या में सड़कों कर निकल पड़ते थे, उस "झंडा ऊंचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा" गीत के रचियेता श्यामलाल गुप्त पार्षद को अभावों में जीना पडा़ । वह बात दीगर है कि उनको पद्मश्री से सम्मानित किया गया लेकिन अंत समय में उनके पार्थिव शरीर को शासन ने वाहन तक मुहैय्या नहीं कराया। न प्रदेश सरकार का कोई मंत्री उनके संस्कार में ही शामिल हुआ।हां कानपुर वासियों ने उनका अंतिम संस्कार पूरे सम्मान से किया। यह बडे़ शर्म की बात है कि जिन आजादी के सेनानियों की कुर्बानी की बदौलत आज हम आजाद हैं, उनके परिवारों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। असलियत में आज का दिन उनकी स्मृति का दिन है। हमारा दायित्व है कि हम उन बलिदानियों के बलिदान को जीवंत बनाये रखें। उनको विस्मृत न होने दें और उनके बलिदान से नयी पीढी़ को अवगत करायें। यही हमारी उनको सबसे बडी़ श्रृद्धांजलि होगी।

अंत में स्वागत समिति के अध्यक्ष डा० जगदीश चौधरी ने इस आयोजन के मान्य अतिथियों और आंगंतुक महानुभावों का आभार व्यक्त किया और कहा कि हमारी पीढी़ का यह दायित्व है कि हम अपने उन महावीरों जिन्होंने हमारे जीवन को सुखी बनाने के लिए अपना सर्वस्व देश के लिए न्यौछावर कर दिया, उनके बलिदान को न केवल याद करें बल्कि नयी पीढी़ को उससे अवगत भी करायें। तभी हम सच्चे अर्थों में भारतीय कहलाने के अधिकारी होंगे। ऐसे कार्यक्रम हम सदैव करते रहेंगे, यह हमारा आप सबसे वादा है।

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