संस्कृत की जीवंतता को लेकर कोई प्रश्न ही नहीं उठता -कुलपति प्रो वरखेड़ी

० योगेश भट्ट ० 

नयी दिल्ली । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी की अध्यक्षता में मनाये जा रहे संस्कृत सप्ताह के दूसरे दिन 'अमृत भारत वैभवम् कविसपर्या ' नामक कार्यक्रम का का आयोजन किया गया । इसमें संस्कृत भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कृत विद्वान तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रो विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र की मौलिक तथा विविध भारतीय भाषाओं में अनूदित रचना गुच्छ तथा व्यक्तित्व पर चर्चा की गयी । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के उन्नयन तथा शास्त्र संरक्षण के लिए कटिबद्ध है । इसी क्रम में साहित्यशास्त्र की कविता विधा को लेकर कविता का यह विषय रखा गया है ।इस कवि - समीक्षा चर्चा में प्रो माधव जनार्दन रराटे , धर्मशास्त्र मीमांसा संकाय ,बीएचयू ,प्रो रमाकान्त पाण्डेय , निदेशक ,सीएसयू,भोपाल परिसर तथा प्रो मीरा द्विवेदी , संस्कृत विभाग , दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखें।
प्रो पाण्डेय ने संस्कृत के आधुनिक काल खंड के निर्णय पर चर्चा करते हुए कहा कि इस काल खंड में न केवल अनेक मूल रचना लिखी गयीं , अपितु अनेक शास्त्र ग्रंथों के साथ साथ पाश्चात्य पुस्तकों का भी अनूवाद किया गया । इस दृष्टि से संस्कृत के आधुनिक साहित्य को समृद्ध बनाने में सुकवि - नदीष्ण अनुवादक आचार्य विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र जी का महनीय योगदान है । कविवर ने संस्कृत में सवैया का भी सृजन किया है जिसे अंग्रेज़ी के सोनेट जैसा माना जाता है । प्रो पाण्डेय ने यह भी कहा कि पद्मश्री रमाकान्त शुक्ल ने इनकी पहली कविता को प्रकाशित किया जो भगवती राधा पर आधृत है । कवि मिश्र ने चैतन्य सम्प्रदाय को लेकर नये विषय पर भी अपनी लेखनी उठा कर 'संस्कृत रस निर्झरी नामक रचना भी लिखी है ।।उन्होंने उनसे अपने पुराने संबंधों को लेकर भी अनेक संस्मरणों को साझा किया और स्वरचित कुछ संस्कृत ग़जल तथा कविताओं का भी सस्वर पाठ किया ।
प्रो मीरा द्विवेदी ने कवि मिश्र की अनूठी रचनावली 'अनुवदति शुकी ' पर अपना व्याख्यान दिया और कहा कि चर्चित कवि मिश्र ने इसमें अपनी मूल रचनाओं के साथ साथ कुछ वेद सूक्तों को शार्दूल छंद में बड़ा ही ललित संस्कृत अनुवाद किया है ।उसी प्रकार भागवत के कुछ श्लोकों का ब्रजभाषा तथा बुन्देली में जो मनोरम अनुवाद किया उससे संस्कृत तथा भारतीय भाषाओं की साझी संस्कृति को जीवन्त बनती है । उन्होंने अपने इस रचनावली में बच्चू लाल अवस्थी तथा मैथिली शरण गुप्त('साकेत' के कुछ अंश) आदि की रचनाओं को भी सजीव रुप में अनूदित किया है ।इसके अतिरिक्त धम्मपद तथा प्राकृत के भी संस्कृत अनुवाद पठनीय है ।प्रो द्विवेदी ने प्रस्तुत सुकवि मिश्र की प्रस्तुत रचनावली से जुड़ी कुछ रचनाओं को सस्वर भी सुनाया जिससे चर्चा जीवंत हो उठी ।उनका मानना था कि प्राकृत भाषा यद्यपि अधिक लोगों के बीच आज नहीं बोली जाती है। लेकिन लेकिन जब उसका संस्कृत अनुवाद पढ़ते हैं तो भाव और निखर उठता है जो कवि की विशेषता है ।उसी प्रकार गांधी जी के प्रिय गुजराती प्रार्थना 'वैष्णव जन.......'का संस्कृत अनुवाद भी महत्वपूर्ण माने जा सकते हैं ।
प्रो रराटे ने भी कवि मिश्र के ' अनुवदति शुकी 'पर ही अपने विचार रखें । लेकिन उन्होंने कवि मिश्र के अनुवाद लालित्य पर विशेष प्रकाश डाला और इस सन्दर्भ में उन्होंने आचार्य बच्चू लाल अवस्थी की कविता जिसे प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी ने उल्लेख किया है ।इससे कवि मिश्र की अनुवाद धार्मिकता पर भी प्रकाश पड़ता है । प्रो रराटे ने कहा कि इनके अनुवाद में नूतनता के साथ मौलिकता का भी पूरा निर्वहन किया गया है । यही कारण है कि इनके लेखन तथा व्याख्यान में शास्त्रीयता है ।इनकी रचना में अनुप्रास अलंकार आदि आदि बलात् नहीं बल्कि सहज रुप में आ जाते हैं। इन्होंने वैदिक सूक्तों को लौकिक संस्कृत में जो अनुवाद किया है ।उस अनुवाद को भी नवोन्मेषी शैली का कहा जा सकता है ।

आज के उत्सव कवि प्रो विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्रा ने अपनी कुछ रचनाओं को सस्वर पाठ किया और केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित अपनी किताब के लिए विश्वविद्यालय को धन्यवाद दिया जिस पर उन्होंने साहित्य अकादेमी से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला ।उनकी रचनाओं पर चर्चा करने वाले विद्वानों तथा विदूषी विशेष कर कार्यक्रम के अध्यक्ष कुलपति प्रो वरखेड़ी को धन्यवाद देते कहा कि कविता ईश्वर के रुप में कवि के मुख से निवृत होती है ।यह पूर्व जन्म का संस्कार होता है ।

कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि लब्धप्रतिष्ठ कवि आचार्य विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र की गरिमामय उपस्थिति तथा वैदुष्य पूर्ण व्याख्यानों से यह कवि सपर्या धन्य हो गया ।कुलपति प्रो वरखेड़ी ने कहा कि जीवन का नाम अमृतत्व है ।सृष्टि जीवन का लक्षण है । सृष्टि नहीं तो जीवन नहीं । सुकवि मिश्र की तरह यशस्वी कवि ही अपनी रचनाओं की नवोन्मेषशालीनि शैली से सृष्टि का निर्माण करते हैं ।अतः संस्कृत की जीवंतता को लेकर कोई प्रश्न उठता ही नहीं है। प्रो वरखेड़ी ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि कवि मिश्र जी की कविताएं राष्ट्रधर्मी तथा युगधर्म से ओत प्रोत है । अतः आज़ादी के अमृत महोत्सव में इनकी चयनित कविताओं को पढ़ने पढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए । सुकवि मिश्र जी के कृतित्व पर आधारित आज के इस चर्चा से अमृत वाणी वैभव साकार हो उठा । संस्कृत अमृत है । यह कौन नहीं मानता है?

साहित्य के इस बौद्धिक उत्सव में गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद,के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो कमलेश चौकसे ने दिल्ली विश्वविद्यालय,जवाहर लाल विश्वविद्यालय तथा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अध्यक्ष क्रमशः प्रो ओम नाथ विमली,प्रो सुधीर कुमार तथा प्रो जय प्रकाश तथा इन्हीं विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों के साथ मिल कर कुलपति प्रो वरखेड़ी को शाल तथा दुर्लभ भोज पत्रों आदि से सम्मानित करते हुए उनके द्वारा संस्कृत तथा संस्कृति के प्रति अहर्निश सेवा के लिए आभार जताया । कार्यक्रम के संयोजक डा रत्न मोहन झा ने अतिथियों का स्वागत किया ।इसका संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन क्रमशः प्रो आर् जी. मुरली कृष्ण तथा प्रो पवन कुमार ने किया ।

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