अग्नि और बरखा’ नाटक का मंचन : नीतिगत सिद्धांतों का वर्णन जो आज भी प्रासंगिक

० अशोक चतुर्वेदी ० 
जयपुरः जवाहर कला केंद्र में ‘अग्नि और बरखा’ नाटक का मंचन किया गया। केंद्र की पाक्षिक नाट्य योजना के तहत आयोजित नाटक में ज़फ़र खान के निर्देशन में कलाकारों ने अभिनय किया। महाभारत के वनपर्व अध्याय में वर्णित यवक्री की कथा पर आधारित नाटक गिरिश कर्नाड़ ने लिखा है। इसका हिन्दी अनुवाद रामगोपाल बजाज ने किया। पौराणिक पृष्ठभूमि वाले नाटक में ऐसे कई नीतिगत सिद्धांतों का वर्णन किया गया है जो आज भी प्रासंगिक है।
नाटक की कहानी रैभ्य के दो पुत्रों परावसु, अरवसु और भतीजे यवक्री के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें दिखाया गया कि स्वार्थ, ईर्ष्या, क्रोध व प्रतिशोध के चलते किए जाने वाले प्रपंचों से पैदा हुई अग्नि जीवन को किस तरह तबाह करती है। इन सबके बीच भी प्रेम रूपी बरखा की बौछार से मनुष्य जीवन निखर उठता है। नाटक में अरवसु और नितिलाई नामक पात्र त्याग, प्रेमभाव से परिपूर्ण हैं। वह दूसरों के लिए त्याग कर संतुष्ट रहते हैं। इस निश्छल, निर्मल, त्यागमयी प्रेम से ही संसार का अस्तित्व है और यही समस्त जीवों को एकता के सूत्र में बांधे रखता है।

अनुराग सिंह, राजदीप, विनोद जोशी, यशेश पटेल, अनुश्री ने क्रमशः रैभ्य, अरवसु, परावसु, यवक्री, नितिलाई की भूमिका अदा की। वहीं कशिश तिवारी ने विशाखा, कजोड़ मीणा ने अरहरा बाबा व आसिफ शेर अली ने ब्रह्मराक्षस का रोल निभाया। मंच से परे भरत बेनीवाल ने म्यूजिक व शहजोर अली ने लाइट की व्यवस्था संभाली।

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