संस्कृत इसलिए भी पढ़ना जरुरी है कि इससे संस्कृति की रक्षा होगी

० योगेश भट्ट ० 
नयी  दिल्ली । कुलपति प्रो पंडित ने कहा कि संस्कृत को भारतवर्ष का औफिसीयल लौंग्येज होना चाहिए और इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर भी संस्कृत को लेकर यही सोच रखते थे । लेकिन आश्चर्य है कि यह क्यों नहीं हो पाया ? उन्होंने यह भी कहा कि सीएसयू सन् 1970 तथा जेएनयू1969 में स्थापित हुआ है । अतः ये दोनों विश्वविद्यालय बहन की तरह हैं और यह समय आ गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020को चरितार्थ करने के लिए मिल कर काम करें क्योंकि भारतीय ज्ञान परंपरा मूलतः संस्कृत में ही सन्निहित है ।लेकिन आधुनिक विषयों को लेकर का करने वालों को प्राचीन ज्ञान परंपरा को उन्मीलित करने में भाषागत कठिनाई होती है ।
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , दिल्ली इस साल अपना 52वां स्थापना दिवस आजा़दी के अमृत महोत्सव के विशेष उपलक्ष्य में प्रदेश में अवस्थित अपने विविध परिसरों में विभिन्न व्याख्यानों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के सोल्लास मनाया गया । इसी क्रम में आज इन परिसरों के मुख्यालय, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के सारस्वत सभागार में इसका स्थापना दिवस बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया । समापन अवसर पर देश के अनेक संस्कृत विद्वानों को सीएसयू, दिल्ली के कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी की अध्यक्षता तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , दिल्ली के कुलपति प्रो शान्तिश्री धूलीपुड़ी पण्डित मुख्य अतिथि तथा आचार्य बालकृष्ण , कुलपति , पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार विशिष्ट अतिथि की उपस्थिति में सम्मानित किया गया ।

अतः: भारतीय दृष्टि से शोध प्रविधि को और समन्वित तथा समुन्नत करने के लिए शोधकर्ताओं को एक दूसरे की भाषा पढ़ना समझना बहुत त जरुरी है । यही कारण है कि धर्म का अंग्रेजी भाषा में जो रीलिजन शब्द अनुवाद कर दिया गया है उसको दुर्भाग्यवश स्वीकार भी कर लिया गया है । धर्म का रीलिजन अनुवाद भारतीय परिप्रेक्ष्य में हो ही नहीं सकता है ।अतः संस्कृत विश्वविद्यालयो, महाविद्यालयों तथा विद्यालयों में भी समान तथा सम्यक् रुप से पहुंचना चाहिए । तभी भारतीय चिन्तन की मूल धारा राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ सकेगी । उन्होंने द्रौपदी को दुनिया का पहला स्त्रीवादी कहा ।

आचार्य बालकृष्ण ने भी भारतीय शब्दों को लेकर अंग्रेजी अनुवाद की चूक की बात उठायी ।साथ ही साथ संस्कृत के क्षेत्र में आज के अध्ययन तथा शोध की चर्चा की और कहा कि जैसे विदेशी लोग दूसरी भाषाओं के अच्छे शोध पत्रों को अपनी भाषा में अनुवाद कर के पढ़ते हैं । उसी तरह हमें भी अनुसंधान परक आलेख लिखना चाहिए ,ताकि वे संस्कृत शोध पत्रों को अपनी भाषा में अनुवाद कर के पढ़ने लिए बाध्य हो सके । इससे संस्कृत का भी स्वत: विकास होगा । उनका कहना था कि संस्कृत इसलिए भी पढ़ना जरुरी है कि इससे संस्कृति की रक्षा होगी । आचार्य बालकृष्ण जी का कहना था कि आज 25-30 प्रतिशत लोग मानसिक अपसाद से ग्रस्त हैं ,उसके निदान में संस्कृत की भूमिका आज पूरी दुनिया में बहुत ही महत्वपूर्ण होगी । 

उन्होंने अपने विश्वविद्यालय में वर्ल्ड हर्बल इन्साइक्लोपीडिया की जानकारी देते कहा कि इसके माध्यम से वनस्पतियों के नामों तथा उनकी पहचानों को सुरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है ।यह सच है कि जब हम संस्कृत को आगे लाएगें तो स्वयं भी आगे आ जाएंगे  ।कुलपति प्रो वरखेड़ी ने कहा कि सीएसयू की यह स्थापना दिवस शास्त्र रक्षण के साथ साथ शास्त्र में नवाचार करने के लिए भी संकल्प का दिवस है ,ताकि संस्कृत में शोध का एक नवोन्मेषी विचार जन जन तक उनकी भलाई के लिए पहुंच सके ।

आज़ादी के अमृत महोत्सव पर गठित इस कुलपति पुरस्कार योजना के अन्तर्गत केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विविध परिसरों के अतिरिक्त उन विद्वानों को भी राष्ट्रीय स्तर पर चयनित कर पुरस्कृत किया है जिन्होंने संस्कृत की गुरुकुलीय शिक्षा तथा शास्त्र परंपरा ,संगणक तथा पुस्तकालय विज्ञान तथा अकादमिक प्रशासन आदि के क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान दिया है । इस योजना के अन्तर्गत डा के एस महेश्वरन् , चेन्नई, प्रो ईश्वर भट्ट ,जयपुर , डा ए वी

नागसमि्पगे बंगलोरू , योगेन्द्र दीक्षित , जम्मू,सुज्ञान कुमार माहान्ती,भोपाल ,प्रो मदन मोहन झा,जम्मू , डा के. वरलक्ष्मी , हैदराबाद , प्रो मिनति रथ,पुरी तथा डा नवीन डोबरियाल इन सभी विजेताओं को - 50000/- सम्मान राशि (सीड मनी ) ,शौल तथा प्रशस्ति पत्रों से अलंकृत किया गया । यह सीड मनी विजेताओं को उनके शोध तथा शैक्षणिक उन्नयन हेतु व्यय करने के लिए दिया गया है । इस नये सम्मान योजना में आठ पुरस्कारों का नाम ' शिक्षाश्री ' तथा एक का 'शिक्षान्यासी' रखा गया है । इन नौ पुरस्कारों में एक ऐसा भी पुरस्कार है जिसमें इस विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं ने मिल कर अपने पसंद के एक शिक्षक को चयनित किया है। इसे भी अपने आप में एक अभिनव प्रयोग का अनूठा सम्मान योजना कहा जा सकता ।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय मुख्यालय से त्रिमासिक पत्रिका 'संस्कृतवार्ता' का भी विमोचन किया गया तथा संस्कृत भाषा शिक्षण से जुड़ी प्रो कुलदीप शर्मा ,प्रो लीना सक्करवाल तथा मनीष जुगरान लिखित पुस्तकों का भी विमोचन हुआ । प्रो वाई एस रमेश ने इन सरल माणक संस्कृत शिक्षण पुस्तकों की उपादेयता पर प्रकाश डाला ।प्रो गया चरण त्रिपाठी की पुस्तकों का भी विमोचन हुआ।साथ ही साथ सीएसयू तथा पतंजलि विश्वविद्यालय के बीच एक एमओयू भी किया गया है ।

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