बिहार की घोघाड़ी नदी में श्रीराम ने लक्ष्मण एवं अपने गुरू विश्वामित्र के साथ धोए थे पैर

0 संत कुमार गोस्वामी 0
बिहार-मशरक (सारण) मशरक प्रखंड क्षेत्र के बड़वाघाट घोघाड़ी नदी तट पर भगवान श्रीराम लक्ष्मण एवं अपने गुरू विश्वामित्र के साथ यही पर रात्रि विश्राम किया था । क्षेत्र में प्रचलित है कि सब जगह के नहान, बड़वाघाट के गोरधोवान बराबर है कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन लगने वाला यह मेला सारण जिले उत्तरी छोड़ पर सिवान एवं गोपालगंज जिले के सीमा पर स्थित मशरक प्रखंड के बड़वाघाट घोघाड़ी नदी के किनारे सदियो से लगने वाले गोरधोवान मेला ग्रामीण सभ्यता, संस्कार एवं परम्परा को समेटे इस मेला को लेकर क्षेत्र में लोगों के बीच तरह-तरह की चर्चाए होती रहती है। 

कार्तिक पुर्णिमा के दुसरे दिन लगने वाला गोड़धोवन मेला को लेकर मशरक के ग्रामीण मुन्ना सिंह मशरक अभय किशोर सिंह शिक्षक एवं रहमत अली मंसुरी शिक्षक व जिला परिषद प्रत्याशी सिन्टू सिह के साथ ग्रामीण भी सक्रिय दिख रहे थे । वही दुरगौली पंचायत के वीडीसी प्रतिनिधि शशिभूषण सिंह भी मेला में ब्यवस्था को लेकर कार्यकर्ताओं तथा अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ मौजूद थे । वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता सुदीश सिंह मेला के हर गतिविधियों पर नजर बनाए हुए थे। आपको बता दें कि बड़वाघाट बर का अर्थ होता है दूल्हा। प्राचीन काल में इतिहास हैं 

अयोध्या से जनकपुर जाने के क्रम में हिन्दू धर्म के मर्यादा पुरुषोत्तम राम सारण जिले के मशरक प्रखंड के बड़वाघाट के पावन घोघाड़ी नदी के पावन संगम पर पैर धोये थे। भगवान श्रीराम लक्ष्मण एवं अपने गुरू विश्वामित्र के साथ यही पर रात्रि विश्राम भी किए थे। इसी पर क्षेत्र में प्रचलित है कि सभी जगह के नहान, आ बड़वाघाट के गोरधोवान । दोनो का पुण्य एक बराबर होता है। इस क्षेत्र के बीचों बीच बहने वाली घोघाड़ी नदी में खाड़ी नदी मिलकर पावन संगम बनाती है। संगम के पश्चिमी तट पर भगवान राम और जगत जननी सीता का भव्य मंदिर का निर्माण बगल के गांव छपिया चान्दबरवा के बाबुओ द्वारा कराया गया। नदी के पूर्वी तट पर भूतभावन भगवान भोले नाथ एवं कलयुग के रक्षक हनुमान का भव्य मंदिर इस जगह की सुन्दरता में चार चाॅद लगाता है। 

कार्तिक मास के पूर्णिमा के गंगा स्नान के एक दिन बाद यहाॅ एक दिवसीय भव्य मेला लगता है। जिसमें मिट्टी से बने बर्तन व लकड़ी से बने सामान की बिक्री बड़े पैमाने पर होती है। पर समय एवं परिस्थितियां इस मेले के नाम को बदलती रहीं। पहले गोरधोवान मेला से प्रसिद्ध था परन्तु क्षेत्र में अलुआ सुथनी बड़े पैमाने पर उपजती एवं बिक्री होती थी तो लोग इसे सुथनिया मेला कहने लगे थे।स्थानीय चौकीदार महेश राय ने बताया कि थानाध्यक्ष रितेश कुमार मिश्रा के निर्देशानुसार मेले मे चुस्त दुरुस्त विधि व्यस्था के साथ ही मेला सम्पन्न कराया गया ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

बेफी व अरेबिया संगठन ने की ग्रामीण बैंक एवं कर्मियों की सुरक्षा की मांग

“द ग्रेट इंडियन ट्रेवल बाजार 2024“ का आयोजन 5 से 7 मई जयपुर में

प्रदेश स्तर पर यूनियन ने मनाया एआईबीईए का 79वा स्थापना दिवस