कला पर लिखने के लिए कला को गहराई से जानना और समझना ज़रूरी - प्रयाग शुक्ल

० आशा पटेल ० 
जयपुर। 
कला हमें देखना सिखाती है जिसका आधार ठोस होता हैं, असल में कला को देखने का नजरिया महत्वपूर्ण होता हैं। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि जीवन के इतने वर्षों में कोई दिन ऐसा नहीं गया जब कला या कलाकार का सानिध्य ना मिला हो। कला एक अनवरत यात्रा हैं, जिसका कोई अंत नहीं, बस इसका स्वरूप बदलता रहता हैं।मोहनलाल गुप्ता की स्मृति में व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम को रामगोपाल विजयवर्गीय म्यूजियम की तरफ से आयोजित किया गया। लेखक विनोद भारद्वाज के संयोजन में आयोजित इस कार्यक्रम में देश के जाने माने कवि ,कथाकार और कला-समीक्षक प्रयाग शुक्ल ने कला के बदलते स्वरूप पर अपना व्याख्यान दिया।

उन्होंने कहा कि रामगोपाल विजयवर्गीय, मोहनलाल गुप्ता जैसे लोग कलाकारों के लिए एक वातावरण बनाते हैं उन्हीं की वजह से आज मैं यहां आपके समक्ष बोल पा रहा हूं, रामगोपाल विजयवर्गीय के साथ कला के अलग-अलग स्वरूप पर चर्चाएं हुआ करती थी वहीं से संभव हुआ कि सभी कलाओं में दिलचस्पी बढ़ी। उन्होंने बताया कि मोहनलाल गुप्ता कला के रसीक थे। प्रयाग शुक्ला ने मोहनलाल गुप्ता की किताब 'गुलाबी नगर की गुलाबी यादें ' का जिक्र करते हुए जयपुर की शिल्प कला पर बात की। उन्होंने कहा कला के क्षेत्र में राजस्थान का बहुत बड़ा योगदान रहा हैं। यहां के शिल्प कला में अब विदेशी प्रभाव भी नजर आने लगा हैं। पुरानी चीजों में पड़ने वाली नई रोशनी हैं कला।

 जिसे समझने के लिए संवेदनशील होना बहुत जरूरी है। कला-समीक्षक प्रयाग शुक्ल ने ये भी कहा कि कला पर लिखने के लिए कला को गहराई से जानना और समझना बहुत जरूरी हैं। कई ऐतिहासिक जगह ऐसी है जहां एक बार नहीं बार-बार गया और गहराई से उन्हें समझने की कोशिश की, चाहे अजंता हो या खुजराहो।इस मौके पर शहर के कई प्रसिद्ध कलाकार और साहित्यकार मौजूद रहे उन्होंने भी कला को लेकर श्रोताओं के सामने अपनी बात रखी। डॉ भवानी शंकर, लोकेश कुमार 'साहिल', फारुख अफरीदी, कृष्ण कल्पित, अजंता देव और नरेंद्र कुमार 'कुसुम'। जाने-माने साहित्यकार प्रबोध गोविल ने इस प्रोग्राम की अध्यक्षता की और सभी गणमान्य अतिथियों का परिचय करवाया।

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