खतरनाक है अल-नीनो की वापसी

० ज्ञानेन्द्र रावत ० 
तापमान में दिनोंदिन हो रही बढ़ोतरी बेहद चिंता का विषय है। यह खतरनाक संकेत है। खतरनाक इसलिए भी कि इससे देश के कुछ हिस्सों में हीट वेव जैसे हालात बन रहे हैं, वहीं भारतीय समुद्र पहले के मुकाबले ज्यादा गर्म हो रहा है। इसका परिणाम हमारे सामने मानसून के पहले और मानसून के दौरान और बाद में भीषण प्रलयकारी बारिश की घटनाओं में बढ़ोतरी के रूप में आया है। दरअसल समुद्र में उठने वाली तेज लू की भयंकर लहरें भविष्य में इस समस्या को और विकराल व भयावह बना देंगीं। शोध इसके जीते-जागते सबूत हैं। यदि बीते दिनों नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट की मानें तो अब यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि 1870 से लेकर आज तक भारतीय समुद्र के औसत तापमान में 1.4 डिग्री की बढ़ोतरी हो चुकी है जो दूसरे समुद्र के मुकाबले सबसे ज्यादा है। 
यह चिंता का विषय है। असलियत में समुद्र के तापमान में हो रही बढ़ोतरी के चलते वहां पैदा होने वाली समुद्री हीट बेव कहें या मरीन हीट बेव, जिसे दूसरे शब्दों में समुद्री लू भी कहते हैं, उसमें भी पहले के मुकाबले काफी तेजी आ रही है। हालात इस बात के गवाह हैं कि देश में समुद्र का तेजी से बढ़ता तापमान और लम्बे समय तक चलने वाली मरीन हीट बेव या समुद्री लू की घटनाओं की वजह से देश के समुद्र तटीय राज्यों में मानसून के पहले, मानसून के दौरान और उसके बाद में होने वाली बारिश की घटनाओं में दिन-ब-दिन तेजी आ रही है। असलियत में यह बारिश की तेजी से बढ़ती घटनाएं गंभीर होती जा रही हैं जिनका सामना मुश्किल होता जा रहा है। पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों और मौसम विज्ञानियों की चिंता की असली वजह यही है। यदि इससे प्रभावित राज्यों और जिलों की बात करें तो इसका सामना देश के 27 राज्य और 75 फीसदी जिले करने को विवश हैं।
गौरतलब यह है कि यह सभी जिले हाटस्पाट बन चुके हैं। यही नहीं उनकी तकरीबन 63.8 करोड़ आबादी इसकी चपेट में है जो इस जोखिम का सामना कर रही है। सच्चाई यह है कि इन राज्यों के 10 में से 8 भारतीय इस जोखिम का सामना करने को अभिशप्त हैं। गौरतलब है कि इस शोध- अध्ययन के दौरान तकरीबन 30 हजार हीट बेव रिकार्ड की गयीं। रिपोर्ट की मानें तो साल 2000 से पहले कोई भी हीटबेव अमूमन 50 दिनों के भीतर ही समाप्त हो जाती थी लेकिन 2000 के बाद इसमें काफी बदलाव आया और अब इसका समय बढ़कर 50 के बजाय 250 दिन के करीब हो चुका है जो मानसून पर असर डाल रही है। इससे मौसमी चक्र प्रभावित हुआ है। फिर सबसे बड़ी बात यह कि बीते साल कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन में दुनिया ने रिकार्ड बनाया है। इसकी पुष्टि तो अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी भी कर चुकी है। इसके परिणाम भयावह होंगे।

अब सवाल यह उठता है कि हीट बेव की स्थिति कब आती है। जहां तक मैदानी क्षेत्रों का सवाल है, वहां पर जब तापमान 40 डिग्री को पार कर जाता है और पर्वतीय इलाकों में जब तापमान 30 डिग्री हो जाता है, रात का तापमान वहां 40 से अधिक हो और तटीय इलाकों में 37 डिग्री से अधिक होता है ,तब हीट बेव की स्थिति होती है। वर्तमान में उतर भारत में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक है। कमोबेश यह तापमान की स्थिति बरकरार है। मौसम वैज्ञानिक डाक्टर एस एन पाण्डेय के अनुसार यह खतरनाक स्थिति है। उनके अनुसार यह एक डोम के रूप में मौजूद है। मार्च में भी यही स्थिति है जो खतरनाक संकेत है। पहाडी़ राज्यों के निचले इलाकों में अधिकतम तापमान वृद्धि की दर 10 से 11 डिग्री दर्ज की गयी है। असलियत यह है कि देश के बहुतेरे हिस्से 100 फीसदी तक बारिश के अभाव में सूखे ही रह गये। यही नहीं देश के तकरीबन 8 राज्य यथा दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आने वाले दिनों में तापमान में तेजी से बढ़ोतरी का सामना करेंगे।

असलियत में तापमान में यह बढ़ोतरी अल-नीनो की वापसी का नतीजा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार वैश्विक तापमान में वृद्धि अल-नीनो की वापसी की संभावना को बल प्रदान करती है। डब्लयू एम ओ की मानें तो ला-नीना के तीन सालों तक लगातार सक्रिय रहने के कारण दुनिया के अलग- अलग हिस्सों में तापमान बढ़ोतरी और बारिश के चक्र की पद्धति में असाधारण रूप से काफी बदलाव आया है। दरअसल ला नीना भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर की सतह में निम्न हवा के दबाव बनने की स्थिति में बनता है। सच्चाई यह है की यह एक प्रतिसागरीय धारा होती है जो पश्चिमी प्रशांत महासागर में तब पैदा होती है जबकि पूर्वी प्रशांत महासागर में अल-नीनो का असर खत्म हो जाता है।

 ऐसी स्थिति में समुद्र की सतह का तापमान कम हो जाता है। तात्पर्य यह कि ला नीना के दौरान उष्णकटिबंधीय प्रशांत द्वारा गर्मी को एक सोख्ता की तरह सोख लिया जाता है। इससे पानी का तापमान बढ़ता है। यही गर्म पानी अल नीनो प्रभाव के दौरान पश्चिमी प्रशांत से पूर्वी प्रशांत तक बहता है। ला नीना के लगातार तीन बार या यों कहें कि तीन दौर गुजरने का सीधा मतलब यह है कि गर्म पानी की मात्रा चरम पर है। जहां तक अल-नीनो का सवाल है, यह उष्णकटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में होने वाले बदलाव के लिए जिम्मेदार समुद्री घटना है। इसी बदलाव के चलते समुद्री सतह का तापमान बढ़ जाता है। इसकी मार्च से मई महीने के बीच दक्षिणी दोलन यानी ई एन एस ओ में तटस्थ स्थिति में 90 फीसदी आगे बढ़ने की प्रबल संभावना है।

इसका अहम कारण प्रशांत महासागर क्षेत्र में भारतीय मानसून की दृष्टि से उपयुक्त माने जाने वाले ला नीना का प्रभाव का खत्म होना है। नेशनल ओसियन एण्ड एटमास्फेयरिक ऐडमिनिस्ट्रेशन यानी नोवा के अनुसार ला नीना का अल नीनो में रूपांतरण अप्रैल तक चलेगा जो 21वीं सदी में हुयी पहली पुनरावृत्ति है। असलियत में यह अबतक का चलने वाला सबसे लम्बा दौर भी है जो लगातार तीसरी बार पड़ना एक दुर्लभ और विलक्षण घटना है। इसको "ट्रिपिल डिप" ला नीना के नाम से भी जानते हैं। इसका असर 1950 से अभी तक केवल दो ही बार 1973 से 1976 और 1998 से 2001 के बीच ही पड़ा है। इस बार इसका असर अप्रैल तक होगा जो 80 फीसदी तक असर डालेगी। नोवा के मुताबिक मई से जुलाई तक इसमें बढ़ोतरी होगी ।आंकड़ों के अनुसार इस दौरान 60 फीसदी देश में सूखा पड़ने की संभावना रहती है।

गौरतलब है कि तापमान में बढ़ोतरी और बारिश के चक्र में आये बदलाव के कारण न केवल समुद्र में हलचल बढ़ रही है, सूखे की संभावना बलवती हो रही है, वहीं इंसान और जानवरों के बीच तकरीबन 80 फीसदी बढ़ रहे संघर्ष का कारण भी बना है। यूनिवर्सिटी आफ वाशिंगटन का शोध- अध्ययन इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि जंगल से लेकर समुद्र तक इंसान और जानवरों के बीच संघर्ष जारी है। कारण जलवायु परिवर्तन से हर जीव-जंतु का जीवन प्रभावित हो रहा है। खाने और पानी का संकट भी भयावह रूप लेता जा रहा है। वन क्षेत्र में बढ़ते इंसानी दखल ने वन्य जीव-मानव संघर्ष बढ़ाने में भी अहम भूमिका निबाही है। समुद्री जीव भी इससे प्रभावित हुए नहीं रहे हैं।

 उनकी प्रवृत्ति में भी काफी बदलाव आ रहा है। समुद्र में जहाजों की संख्या बढ़ने से व्हेल मछली बडे़-बडे़ जहाजों को टक्कर मार रही है जिससे दोनों को नुकसान हो रहा है। तंजानिया में पड़ने वाले सूखे से पानी का संकट पैदा हो गया है। वहां खाने की तलाश में हाथी उग्र हो रहे हैं। वहां हाथी और दूसरे जानवर फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। इसकी अहम वजह यह है कि जीव-जंतु मौसम में तेजी से हो रहे बदलाव को स्वीकारने को कतई राजी नहीं हैं। तापमान में बेतहाशा बढ़ोतरी और बारिश में बढ़ता असंतुलन खतरनाक संकेत है और चुनौतीपूर्ण भी जिनका समाधान बेहद जरूरी है।

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