समस्या मुक्त भारत के लिए जनता को केवल वोटर या सपोर्टर नहीं ‘नागरिक’ बनना होगा

० संवाददाता द्वारा ० 
जयपुर - जन सम्प्रभुता संघ की पहल पर समग्र सेवा संघ, हम भारत के लोग ग्रुप एवं सर्वहारा एकता मंच के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बैठक में देश में बढ़ते शोषणकारी, दमनकारी, हिंसक, विघटनकारी, अलोकतांत्रिक एवं संविधान विरोधी वातावरण में नागरिकों की स्थिति, नागरिक अधिकारों की रक्षा एवं नागरिकता बोध के सृजन में नागरिकों की भूमिका को लेकर गहन विचार मंथन हुआ। मंथन का शुभारम्भ भारतीय संविधान की प्रस्तावना वाचन से हुआ । मंथन के दौरान समस्या मुक्त भारत के निर्माण के लिए जनता को वोटर या सपोर्टर की भूमिका से निकालकर ‘जागरूक नागरिक’ की भूमिका में लाने पर तथा वर्तमान फासीवादी ताकतों के कार्यकलापों का विश्लेषण करके एक विस्तृत ब्लैक पेपर तैयार करने एवं उसे जनता के बीच प्रचारित एवं प्रसारित करने पर बल दिया गया।

बैठक में राजेन्द्र कुम्भज, अनिल यादव, समग्र सेवा संघ के अध्यक्ष सवाई सिंह राठौड, डॉ. वरूण पुरोहित, महेश चौमाल, राजेश नंदन, प्यारेलाल शकुन,एडवोकेट रमेश जैन, जोहाना मेहरात, नरेन्द्र सालवी, एडवोकेट उमेश शर्मा, राजपाल सिंह, रामनिवास दहिया, सुन्दर जैन, हनुमान बैरवा, एडवोकेट ओमप्रकाश कुरोतिया, श्यामसिंह बिस्सा, शिव रतन पारीक, राजेश चौधरी, डॉ. महेन्द्र आनन्द, पूर्व जज सिद्धार्थ जैन, संतोष कुमार मीरवाल, राव चैनपुरिया, पत्रकार आर.सी.गौड़ एवं अंजूरानी किराडिया आदि जागरूक नागरिकों ने अपने विचार रखे । बैठक की अध्यक्षता पूर्व सिविल जज सिद्धार्थ जैन ने की । कार्यवाही का संचालन जन सम्प्रभुता संघ के अध्यक्ष एवं पत्रकार अनिल यादव ने किया ।

बैठक में जन सम्प्रभुता संघ के कार्यकारी अध्यक्ष राजेन्द्र कुम्भज ने कहा कि आजादी के संघर्ष में शामिल महान् लोग जैसा देश बनाना चाहते थे उसकी बजाय आज देश बिलकुल विपरीत दिशा में जा रहा है। देश को बर्बादी से बचाने के लिए हमें दो दिशाओं में एक साथ कार्य करना होगा। सर्वप्रथम हमें एकजुट होकर फासीवादी ताकतों को हर हाल में रोकना होगा और उसके साथ ही नागरिकों के बीच ‘जन-सम्प्रभुता’ के भाव का सृजन करना होगा ताकि देश , देश के असली मालिकों यानी हम भारत के लोगों की इच्छा एवं हित के अनुसार संचालित हो ना कि लोकतंत्र के नाम पर जारी छलावे के आधार पर । कुम्भज ने कहा कि फासीवादी ताकतों का परास्त करने हेतु समाज के प्रबुद्ध जन को आगे आना होगा ।

जन-सम्प्रभुता संघ के अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा कि देश की सबसे बड़ी समस्या देश में बढ़ता पूंजीवाद व निजीकरण तो है परन्तु इस समस्या के लिए जिम्मेदार है गत 76 सालों से देश में जारी छद्म लोकतंत्र और इस ‘छद्म लोकतंत्र’ को लम्बे समय से ना सिर्फ झेल रहे वरन् उसे अपनी नासमझी के कारण लगातार मान्यता दे रहे ‘हम भारत के लोग’। लोकतंत्र के धोखे में हम बार-बार व्यवस्था परिवर्तन का प्रयास करते हैं और सिर्फ सत्ता परिवर्तन तक सीमित रह जाते हैं जबकि हमारी समस्या का इलाज सत्ता परिवर्तन नहीं है, हमारी समस्याओं का इलाज है व्यवस्था में परिवर्तन । यदि हम भारत के लोग सत्ता में नहीं व्यवस्था में परिवर्तन चाहते हैं तो हमें इस छद्म लोकतंत्र की बजाय देश में वास्तविक लोकतंत्र लाने के लिए यानी देश में जन-सम्प्रभुता पैदा करने के लिए संगठित प्रयास करना होगा । 

यदि हम ‘जन-सम्प्रभुता’ सृजन के संकल्प के साथ एकजुट हो जाएं तो देश में ना सिर्फ अभूतपूर्व व्यवस्था परिवर्तन वरन् ‘जन स्वराज’ की युगप्रतीक्षित संकल्पना भी साकार हो सकती है । समस्या मुक्त भारत के लिए जनता को केवल वोटर या सपोर्टर नहीं ‘नागरिक’ बनना होगा । एडवोकेट वरूण पुरोहित ने लक्ष्य की एकता पर बल देते हुए सुझाव दिया कि फासीवादी ताकतों से अलग-अलग स्तर पर मुकाबला कर रहे विभिन्न संगठनों को व्यापक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक समंवय समिति के रूप में एकजुट होकर काम करना चाहिए तथा युवाओं एवं जनता को आकर्षित करने हेतु प्रयास करना चाहिए ।

राजेश चौधरी ने कहा कि यदि फासीवादी ताकतों को रोकना है तो हमें गैर फासीवादी बहुसंख्यक लोगों एवं संगठनों को अपनी ताकत को बंटने से रोकना होगा। इतना ही नहीं हमें स्कूल कॉलेज के विद्यार्थियों के बीच विषयवार ढंग से विषय विशेषज्ञों के माध्यम से संविधान, लोकतंत्र आदि विभिन्न मुद्दों पर युवाओं के बीच जानकारी पहुंचानी होगी । शिव रतन पारीक ने कहा कि फासीवादी ताकतों की विचारधारा बेहद संकीर्ण है इनके पास विकास का कोई एजेंडा नहीं है, ये सिर्फ समाज को नफरत के आधार पर बांटकर लूटने वाली ताकते हैं ।

श्याम सुंदर बिस्सा ने कहा कि हमें युवाओं के बीच विषय विशेषज्ञों के माध्यम से बेहद सरल भाषा में संविधान एवं लोकतंत्र की समझ विकसित करनी होगी, हमें उन्हें नागरिक होने का अर्थ समझाना होगा तथा उनके बीच नागरिकता बोध सृजित करने के तरीकों पर विचार करना होगा, हमें नागरिकों खासकर युवाओं, किसानों, मजदूरों के आजीविका संकट को दूर करने की उपाय सोचने होंगें तथा बिना किसी खास राजनीतिक विचारधारा में फंसे जन-प्रतिनिधियों के रूप में अच्छे विकल्पों को ना सिर्फ पेश करना होगा वरन् उनसे प्रासंगिक मुद्दों पर सवाल जवाब करते रहना होगा ।

सुंदर जैन ने आजादी के संघर्ष में गैर-फासीवादी ताकतों की भूमिका को इंगित करते हुए कहा कि फासीवादी ताकतें देश में धर्म एवं नफरत के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है।
हनुमान बैरवा ने देश में चुनावी सीजन में जातिगत महापंचायतों पर तंज कसा और राष्ट्रीय मुद्दों पर एकजुटता दिखाने का आह्वान किया।राजपालसिंह ने कहा कि हमारी चुने हुए जनप्रतिनिधियों एवं सरकारों की जनवादी व्यवस्था की बजाय पूंजीवादी व्यवस्था के पोषण की मंशा ही देश की विभिन्न समस्याओं की मूल जड़ है।जेहाना मेहरात ने पूंजीवाद को फासीवाद का जनक बताते हुए देश में नागरिकवाद की आवश्यकता को समय की मांग बताया।

पत्रकार आर.सी.गौड़ ने कहा कि अपरिचित का परिचत, परिचित को मित्र एवं मित्र को सजग कार्यकर्ता बनाना एक कला है और संगठन व विचार के विस्तार हेतु हमें इस कला का विकसित करना होगा।
एडवोकेट ओमप्रकाश करोतिया ने कहा कि संविधान को समझना व संविधान के असली दुश्मनों को पहचानना होगा, हमें इतिहास में जरूरत से ज्यादा नहीं भटकना है तथा युवा शक्ति का सही प्रयोग करना होगा।सर्वहारा एकता मंच प्यारेलाल शकुन ने कहा कि देश में राजनीतिक आजादी का मायना तब तक नहीं है जब तक आर्थिक व सामाजिक स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं की जाती है, आज सरकार मजदूर व किसान के अधिकार छीनकर पूंजीपतियों को सौंप रहा है।

हम भारत के लोग ग्रुप से अंजू कराडिया ने कहा कि धार्मिक पाखंड शोषण को बढ़ाता है, फासीवादी ताकतें हर युग में रही हैं परन्तु हमें मिलकर इनका मुकाबला करना होगा, अतः लोगों को अपनी पहचान केवल ‘नागरिक’ के रूप में स्थापित करना व ‘नागरिक बोध’ का अहसास करते हुए बोलना रहना आज समय की मांग है। सरकारी धन से धार्मिक स्थल बनाना विकास का नहीं मूर्खता का प्रतीक है, सरकार का काम विद्यालय ,उद्योग व सामूहिक सुविधाओं को विकसित करना है।

बैठक के अध्यक्ष एवं पूर्व सिविल जज ने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं को फासीवाद को आज़ाद कराना एक चुनौती है, हम एक छद्म लोकतंत्र में जी रहे हैं, पत्रकार या तो यूट्यूबर हो गए हैं या गोदी में बैठ गए हैं, फासीवादी ताकतों द्वारा समाज में फैलाए गए जहर को हमें अप्रभावी करना होगा और इसके लिए कई सालों की मेहनत करनी होगी, इसके लिए गैर-फासीवादी राजनीतिक व गैर राजनीतिक ताकतों को एकजुटता के लिए मजबूर करना होगा ।

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