अक्सर बुराई तभी पनपती है जहां उम्मीदें ज्यादा हो
संत कुमार गोस्वामी आज सुबह-सुबह वह अपने मूड का ख्याल किए बिना चिंता के गर्त में डूबते चले गए। लगभग 2 घंटे चिंताओं का सिलसिला उनके दिमाग को थका दिया उसके बाद एक बात उनके मन में आया। काश हमें भी सब कुछ होता सारे जहां की खुशियां मेरे पास होती ऐसे पुला वी पकवान मन में बुनते रहे तब तक पुतुल गिरी ने आवाज लगाई सूरज ......सूरज भाई उठो सुबह के 8:00 बज गए हैं इस सारी बातें सूरज की दिमाग की गतिविधि को पुतुल समझ गई हर रोज की तरह आज भी दिमाग मन को थका रहे हैं...... फिजूल व्यर्थ की चिंता उनको हर रोज कमजोर व चिरचिरा बना दिया है l पुतुल जानते हो सूरज किसी का परवाह नहीं करता बस उम्मीदें ज्यादा करने से किसी पर पूरा ना होने के कारण भरोसा भी टूट जाता है आदमी आदमी से दूर होते चला जाता है जानते हो ऐसा क्यों होता है समझा दो मुझे पुतुल बहन...... पुतुल गुस्से में जानती है सूरज भाई इस काम के सिवा तुम्हें कुछ सूझता नहीं बस एक ही रट लगाए रहते हो कोई मेरे काम आता नहीं आएगा भला कैसे यह बातें पुतुल सूरज को समझाती हुई बोली अक्सर हम तभी टूटते हैं जब किसी पर ज्यादा भरोसा करने लगते हैं यही कारण है आप सूरज भाई ज्याद