लौट कर फिर गांवों की ओर चलें
विजय सिंह बिष्ट छोड़ा था जिन गांवों को, चलो फिर से लौट चलें। शहरों की बेबस आपा-धापी में, अब जीवन सूना सूना लगता है, खाना पानी रहना पास नहीं, यहां रहकर भी क्या करना है। जिन सीमाओं को लांघ बसे यहां, अब उन्हीं सीमाओं की ओर चलें लौट कर फिर गांवों की ओर चलें। आरोप लगाते थे जिन गांवों को, शिक्षा रोजगार का अभाव था जहां, असभ्यता की संज्ञा दे भागे यहां वहां। आज उन्ही गांवों की यादों में रोते हैं, राहें ढूंढें मन से जिन्हें संजोए होते है चलो उन्ही राहों पर लौट चलें। अज्ञात शत्रु के भय से भाग रहे हैं, बीबी बच्चों को घसीटे जा रहे हैं। मन में एक ही आश लगाए चलो चलें, गांवों की चौपालों पर चलें, आओ गांवों की ओर लौट चलें। लौट चलें उन खेतों में, जिन्होंने हमें पाला था, लौट चलें उन हसीन वादियों में, जिन्होंने मधुर संगीत सुनाया था। उस स्वर्गभूमि की ओर लौट चलें, फिर से गांव की ओर लौट चलें।