हरी भरी वसुंधरा इसको न तू छेड़
सुषमा भंडारी ये साँसों की खान हैं जीवन का वरदान। प्राण सींचते वृक्ष ही मान तू या न मान ।। जंगल में मंगल करें वृक्ष बडे अनमोल शुद्ध हवा इनसे मिले मत कर इनका मोल।। मन हर्षित हो जाय है जब जब देखूं पेड़ । हरी भरी वसुंधरा इसको न तू छेड़। । अपने जीवन के लिये एक लगा तू पौध। यही तुम्हारी खोज है यही तुम्हारा शोध।। खुशियां अपरम्पार हों जग का हो विस्तार। जीवन देते वृक्ष जब मृत्यु जाये हार।। आज लगाई पौध ये देगी जीवन लाभ। स्वास्थ्य लाभ के वास्ते आओ बोयें ख्वाब।। जल संरक्षण भी करें, जल की मारम्मार। दुरुपयोग न कर कभी न हो तू लाचार।। वन्य जीव जलने लगे वृक्षों की क्या बात। स्वार्थ- सिद्धि के लिये मानव दे आघात।। नित्य करें सब योग हम जीवन सफल बनाय । रोग दूर तन स्वस्थ हो मन सुन्दर हो जाय।। ( पर्यावरण दिवस ) पीहू पीहू बोलता मनुआ हुआ अधीर। कुहू -कुहू मैं करूं सुन ले मेरी पीर ।। मन मन्दिर जिस पल हुआ तन दीपक की बाति । शुद्ध- स्वच्छ पर्यावरण ज्योत जले दिन राति। । डाल- ड़ाल पर फूल हों कली-कली पर भौर। नीम निबोरी मिल गले देखें सुन्दर भोर।। नया पाठ जब हम पढें हो स्वच्छता की बात । पर्यावरण गर शुद्ध हो सुख के हो