लघुकथा -"हैप्पी न्यू ईयर दीदी"
'' धर्मु ••• अरे ओ धर्मु •••।अरे उठा नहीं अब तक ? छः बज गए ,सूरज चढ़ आया सिर पर ,रजाई में पड़ा है अभी तक ।" उसकी रजाई खींचते हुए दादी बोली। उनकी तेज आवाज से मेरी नींद भी खुल गई । आज ठंड बहुत ज्यादा थी । अभी से सूरज कहां उग आया? पता नही दादी सुबह-सुबह क्यों झूठ बोलती हैं ? नव वर्ष के आने की खुशी में देर रात तक पार्टी चलने के कारण सभी देर से सोए थे। धर्मु भी रसोई का सारा काम निपटाकर ही सोया था ताकि सुबह आराम से उठे,पर दादी ने उसका कंबल खींच कर उठा ही दिया और कान पकड़कर बोली, " हैं रे धर्मु , कल मैंने तुझे गैराज से कुतिया के बच्चे बाहर गली में रखकर आने को कहा था, पर वे तो अभी भी वहीं हैं। कुतिया ने गंद फैला रखा है, एक बार में समझ नही आता •••?" " दादी, अभी वे बहोत छोटे हैं । उनकी तो आँखें भी नहीं खुली। बाहर ठंड में मर जाएँगे । मुझे पाप लगेगा दादी !" धर्मु ने कुतिया के बच्चों के प्रति दया दिखाते हुए कहा । "जुबान लड़ाता है मुझसे, तेरी इतनी हिम्मत ? पाप- पुण्य के बारे में मुझे बताएगा ? हर रोज मंदिर जाती हूँ ।ठाकुर जी को भोग लगाए बिना मुँह झूठ