गीत गाता दूसरों के
विजय सिंह बिष्ट गीत गाता दूसरों के, अपनी व्यथा किसको सुनाऊं। है मधुर ये गीत प्रियतम, किसकी सुनूं, किसको सुनाऊं। प्यार तुमने है किया, मैं प्यार करना कैसे सिखाऊं। सुगम पथ पर तुम चलो, मै दुर्गम पथ कैसे गिनाऊं। गीत गाता दूसरों के अपनी व्यथा किसको सुनाऊं। जिनको अपना था समझता, वे पराए हो गये , कैसे बताऊं। लूटा चौराहे पर किसीने, क्या लेगये , कैसे गिनाऊं। लाज तो उनकी बची, मेरी लाज लुट गयी कैसे बताऊं। गीत गाता दूसरों के, अपनी व्यथा किसको सुनाऊं। सत्यवादी बनना था सिखाया, अपना असत्य कैसे छिपाऊं। सत् गुण तो तुम्हारे पास हैं, अपने अवगुण कैसे गिनाऊं। गीत गाता दूसरों के, अपनी व्यथा किसको सुनाऊं। साधना में रत तुम रहो, अपनी अराधना कैसे छिपाऊं। चरण वंदन करलो अराध्य के, मैं चरण छूना कैसे सिखाऊं। गीत गाता दूसरों के, अपनी व्यथा किसको सुनाऊं।