भूल गए हैं लोग,भ्रमण पर जाना
विजय बिष्ट स्मृति शेष। भूल गए हैं लोग,भ्रमण पर जाना, चौराहों के रास्ते और पार्कों में आना। हंस हंस कर बातें करना,हाथ मिलाना। गुपचुप बातें करना, हंसना हंसाना, भूल गए लोग,पार्कों में जाना। योगा करना, सत्संग में जाना, अनुलोम-विलोम करना,हाथ पांव चलाना। मशीनों की बर्जिस,चर्खी घुमाना। भूल गए लोग, घूमने को जाना। भूल चुके सब कुछ, नाते रिस्तों को निभाना। नाना नानी भूल चुके, भूल चुके मायके पीहर जाना। मंदिर मस्जिद भूल चुके, भूले धूप दीप चढ़ाना। शादी व्याहों की रौनक, जन्म दिवसों का मनाना। भूल गए लोग,सारे रीति-रिवाज मनाना। आज नहीं आता कोई अपना, नहीं कोई परदेशी अनजाना, भूल चुके सारे नाते रिस्ते, एक दूसरे के घर आना जाना। मुंह में रक्षा कवच लगा है, ललचाई नज़रों से आंखें मिलाना। अपनों से दो गज की दूरी, नहीं प्यार से अंग लगाना। कितना भयावह शत्रु खड़ा है, अपनों से ही डर कर रहना, विध्वंस कर दिया सृष्टि का, चेतन और नव चेतना का मर जाना। भूल गए हैं लोग प्यार जताना। पग पग पर मृत्यु खड़ी है, ये क्रूर संदेश देकर जाना, भूल चुका मानव,देशाटंन करना, अंतरिक्ष की उड़ानों में जाना, भूल चुका मानव , मानव को