सिंधिया और पायलट जैसे युवा नेताओं के राजनीतिक फैसलों में वह विचारधारा क्यों नहीं दिखती
ज्योंतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट का शुमार काफी हद तक कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीबी और स्थापित नेताओं में होता था। दोनों का सम्बंध पुराने राजनीतिक घरानों के साथ–साथ कांग्रेस कुनबे से भी रहा है। कांग्रेस पार्टी को इन युवा नेताओं से भविष्य में बहुत उम्मीदें भी रही होंगी। लेकिन सिंधिया सीधे भाजपा की गोद में जा बैठे तो सचिन पायलट ने, भाजपा से सांठगांठ से इनकार करते हुए भी, भाजपा शासित राज्य में अपने बाग़ी विधायकों के साथ पनाह ली। इससे कांग्रेस पार्टी के भीतर वैचारिक दीवालियापन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान की सत्तासीन कांग्रेस में भी बगावत के बाद वहां का हश्र क्या होगा यह तो आने वाले समय में तय होगा। लेकिन कांग्रेस के दो युवा नेताओं, जिन्हें अपने राज्यों में भविश्य का कर्णाधार माना जाता था और जो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की कोर टीम का हिस्सा थे, इस तरह से पद और सत्ता की लालसा में बिखर जाना सवाल तो खड़े करता है। कांग्रेस का हमेशा से दावा रहा है कि वह केवल एक राजनीतिक दल नहीं बल्कि एक विचार धारा भी है। क्या वह भाजपा की विचार धारा से मेल खाती है?