।।।।।।तबादला ।।।।।। लघुकथा
सुषमा भंडारी चलो जी अब यहां से भी दाना पानी उठ गया। सामान बाँध लो रीतेश ने पत्नी से कहा क्यूँ जी , ऐसा क्यूं कह रहे हो , उषा बोली। कुछ नहीं उषा फिर से तबादला हो गया है । परेशान हो गया हूं यहां से वहां , वहां से यहां अरे पापा! मेरा फिर से स्कूल में दाखिला कराना पडेगा , कहते हुये राजू , नीतेश का बेटा , दुखी हुआ। अच्छा पापा ये तो बताया नहीं अब कहां तबादला हुआ है हूं कश्मीर -----' कहते हुये लम्बी सांस खींची नीतेश ने। थोड़ी देर के लिये खामोशी फैल गई पूरे घर में। अन्दर दादा जी , नीतेश के पिता सब की बातें सुन रहे थे। उठ कर बाहर आये और बोले बेटा नीतेश , फौजियों का तो यूं ही तबादला होता रह्ता है जिस दिन इस नौकरी को देश की सेवा समझ कर करोगे किसी तबादले से कोई परेशानी नहीं होगी । नीतेश ही नहीं घर के सभी सदस्यों को दादा जी की सीख का अह्सास हो गया था सब खुशी- खशी अपनी पैकिंग करने में व्यस्त हो गये।